जन्मदिन विशेष: देश के बंटवारे से लेकर राम मंदिर निर्माण तक...कैसा रहा भारत के लाल LK अडवाणी का जीवन

देश के बंटवारे से लेकर राम मंदिर निर्माण तक...कैसा रहा भारत के लाल LK अडवाणी का जीवन
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देश के बंटवारे से लेकर राम मंदिर निर्माण तक...कैसा रहा भारत के लाल LK अडवाणी का जीवन

Lal Krishna Advani Birthday : साल 1947 को भले ही भारत आजाद हो गया था लेकिन लाखों - करोड़ों लोगों के विस्थापन और घर छूट जाने के दर्द ने आजादी के जश्न की खुशी महसूस कहां होने दी थी। किसे ही पता था कि, जिस आजादी के लिए वे संघर्ष कर रहे हैं उसके मिलने पर वे अपने ही देश से निकाल दिए जाएंगे। कई तो पड़ोसी भी अब दो अलग - अलग देश के नागरिक हो गए थे। ऐसे में अपने परिवार के साथ सामान बांधकर एक व्यक्ति 12 सितंबर, 1947 को निकल पड़ा था। जिस भूमि पर रहकर वे मां भारती की सेवा करना चाहता था अब अचानक वो भूमि ही किसी पराए मुल्क की हो गई थी।

आंखों में नमी और दिल में मलाल लेकर परिवार संग ये व्यक्ति दिल्ली आ गया और एक अच्छे सेवक की तरह मां भारती की सेवा में लग गया। दुःख था, अपना घर छूट जाने का, जो संभव होता तो शायद ये व्यक्ति पूरा सिंध ही अपने साथ ले आता लेकिन अफसोस ये असंभव था। ये कहानी है भारत रत्न लाल कृष्ण आडवाणी की। भारत के राजनीतिक सफर में इनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। राम रथ यात्रा से लेकर भारत उदय यात्रा तक आडवाणी का सफर अमर है और आगे भी रहेगा। स्वदेश विशेष में जानिए लाल कृष्ण अडवाणी की पूरी कहानी...।

राष्ट्रवाद के लिए दृण लेकिन समय आने पर लचीला हो जाना आडवाणी जी का स्वभाव है - यह बात अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे। भारत में सबसे मजबूत पार्टी कही जाने वाली कांग्रेस के लिए चुनौती बन गई भारतीय जनता पार्टी के गठन में लाल कृष्ण आडवाणी का अहम रोल रहा। उन्होंने भाजपा के अध्यक्ष के रूप में सत्ताधारियों के सामने देश की जनता की वो आवाज उठाई जिसे सुनना कई लोग बंद कर चुके थे। तीन दशक तक सांसद रहे फिर गृह मंत्री और अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट में उप - प्रधानमंत्री। यह उनके राजनीतिक जीवन का बड़ा ही संक्षिप्त परिचय है असल में उनके योगदान की कहानी लंबी है। उनके राजनैतिक जीवन से पहले जान लेते हैं उनका प्रारंभिक जीवन।

8 नवंबर 1927 को आज के पकिस्तान और तब के भारत के सिंध प्रान्त में किशन चंद आडवाणी और ज्ञानी देवी आडवाणी के घर एक बालक ने जन्म लिया था। इस बालक का नाम रखा गया लाल कृष्ण आडवाणी। वह कराची के सेंट पैट्रिक्स स्कूल में पढ़ें हैं और अपनी क्लास के टॉपर रहा करते थे। देश के हालात को वे काफी कम उम्र में समझने लगे थे। काफी छोटी उम्र में उन्होंने तय कर लिया था कि, जीवनपर्यन्त वे मां भारती की सेवा करेंगे। हैरानी होगी यह बात जानकर की वे मात्र 14 साल के थे जब उन्होंने आरएसएस की सदस्यता ली। 1942 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सदस्य बनने के बाद उन्होंने कभी पीछे पलट कर नहीं देखा।

साल 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। अडवाणी कहां पीछे रहने वाले थे। उन्होंने 1942 में भारत छोडो आंदोलन के दौरान गिडूमल नैशनल कॉलेज में दाखिला ले लिया। इसके बाद साल 1944 में कराची के मॉडल हाई स्कूल में बतौर शिक्षक नौकरी की। इस दौरान वे आरएसएस में भी सक्रीय थे।

आजादी के बाद आडवाणी क्या कर रहे थे :

देश आजाद हुआ तो आडवाणी को ख़ुशी थी लेकिन उनके प्यारे सिंध को छोड़कर जाना उनके लिए बेहद कष्टदाई था। क्या ही कर पाते आडवाणी, लकीरें खींच दी गई थी और उनका घर भारत की सरहद के पार किसी पाकिस्तान नाम के मुल्क में आता था। उन्हें सिंध छोड़ना ही पड़ा। वे आजादी के बाद दिल्ली आ गए थे। आजादी के बाद उनके कन्धों पर आरएसएस को संगठित करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। 1947 से 1951 तक उन्होंने राजस्थान के अलवर, भरतपुर, कोटा, बुंडी और झालावार में आरएसएस को संगठित किया।

एक कहानी दिल्ली में भी लिखी जा रही थी। जनसंघ देश की राजनीति में पांव पसार रहा था। अटल बिहारी वाजपेयी भी दिल्ली में सक्रिय थे। 1957 में जब अटल बिहारी वाजपेयी को एक सहयोगी की जरूरत थी तो वे दिल्ली शिफ्ट हो गए। 1958 से 63 तक उन्होंने दिल्ली प्रदेश जनसंघ में सचिव का पदभार संभाला। 1960-1967 में वे ऑर्गनाइजर में शामिल हो गए। यह जनसंघ द्वारा प्रकाशित एक मुखपत्र है। इसके बाद अप्रैल 1970 में उन्होंने राज्यसभा में प्रवेश किया। दिसंबर 1972 में उन्हें भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

अब तक सब काफी हद तक ठीक चल रहा था कि, 26 जून, 1975 को देश में लगा दी इमरजेंसी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के टारगेट जनसंघ के नेता थे। होते भी क्यों न उनकी सरकार के बड़े - बड़े दावों की पोल खोल, खोकले वादे जो उजागर कर दिए गए थे। अडवाणी उन नेताओं की सूची में शामिल थे जिन्हे सबसे प्राथमिकता से जेल में ठूसे जाना था। अडवाणी और अटल जेल भेज दिए गए। उन्होंने आपातकाल के समय सरकार का हर अत्याचार सहा। जब मुसीबत के बादल छटे तो देश में लोकतंत्र बहाल हुआ।

देश में कांग्रेस के बिना पहली बार सरकार बनी। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और लाल कृष्ण आडवाणी को सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया। कुछ समय बाद इंदिरा वापस सत्ता में आ गईं तब जनसंघ के नेताओं को नई रणनीति बनानी पड़ी। एक नई पार्टी बनाई गई - भारतीय जनता पार्टी (BJP)। फिर 1980 से 1990 के बीच आडवाणी ने भाजपा को एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी।

2 सीटों से शुरू किया था सफर :

भाजपा ने अपना सफर दो सीटों से शुरू किया था। ये अडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी की मेहनत ही थी जिसने 2 सीट लाने वाली पार्टी को देश की सबसे बड़ी पार्टी बना दिया। 1984 में महज 2 सीटें हासिल करने वाली पार्टी को लोकसभा चुनावों में 86 सीटें मिली जो उस समय के लिहाज से काफी बेहतर प्रदर्शन था। भाजपा की स्थिति 1992 में 121 सीटों और 1996 में 161 पर पहुंच गई। आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर थी और बीजेपी सबसे अधिक संख्या वाली पार्टी बनकर उभरी थी।

अब लाल कृष्ण आडवाणी की बात हो और राम मंदिर आंदोलन की चर्चा न की जाए यह तो नाइंसाफी हो जाएगी। 1980 की शुरुआत में विश्व हिंदू परिषद द्वारा अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन शुरु हो गया था। आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी राम मंदिर अंदोलन का चेहरा बन गई। आडवाणी ने अपनी यात्रा के शुरुआती बिंदु के रूप में सोमनाथ को चुना क्योंकि लूट और डकैती के मलबे पर मंदिर का पुनर्निर्माण एक बड़ा सन्देश था। यात्रा का समापन अयोध्या में रखा गया था क्योंकि राम जन्मभूमि की मुक्ति इस यात्रा का अगला पड़ाव था।

लालकृष्ण आडवाणी उन अग्रणी नेताओं में से थे जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन के लिए आवाज उठाई। राम मंदिर आंदोलन में शामिल होने के लिए उनकी आलोचना भी की गई कई तरह के आरोप भी लगाए गए। बावजूद इसके लाल कृष्ण आडवाणी राम मंदिर आंदोलन समेत उन तमाम मसलों पर अपनी बात पुरजोर तरीके से रखते रहे जिन पर उन्हें दृण विश्वास था।

आज 8 नवंबर 2024 को लाल कृष्ण आडवाणी 97 साल के हो गए हैं। उनके जन्म दिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत राष्ट्रपति ने उन्हें शुभकामनायें दी हैं।

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