ज़रा से संकोच से उस दिव्य मिश्री को नहीं सुन सका....
वेबडेस्क। जीवन में संकोच कभी नहीं रखना चाहिए जो भी मन में हो सामने वाले से बिना हिचक कह दो अगर किस्मत में मिलना होगा तो मिल जाएगा नहीं मिलना होगा तो उसे नियति समझकर संतोष कर लेना चाहिए।
अगर उस दिन मैं संकोच के कारण मना न करता तो दूर से ही सही लता दीदी से बात तो हो जाती।हुआ यूं कि उन दिनों सब टीवी पर कविता का एक कार्यक्रम आया करता था " वाह वाह", जिसे श्री अशोक चक्रधर होस्ट किया करते थे उनके 1 एपिसोड में जब मैं अपना एक गीत 'थाल पूजा का लेकर चले आइए' पढ़ रहा था तो उस एपिसोड को मुंबई में बैठकर क्रांति, रोटी कपड़ा मकान जैसी अनेक हिट फिल्मों के निर्माता निर्देशक अभिनेता श्री मनोज कुमार जी टीवी पर मुझे सुन रहे थे। उनको मेरे गीत ने अपील किया तो उन्होंने अशोक चक्रधर जी को फोन मिला कर मुझसे संपर्क करने की इच्छा जाहिर की।
अशोक जी ने मुझे फोन किया कि मनोज कुमार जी तुमसे मिलना चाहते हैं उन्होंने फोन नंबर दिया मेरी बातचीत हुई। फोन पर ही मेरा यही गीत किश्तों में सुनकर बहुत आनंदित हुए। फिर आए दिन हमारी उससे आधा आधा घंटा बात होने लगीं। एक दिन मुझे अपनी आने वाली फिल्म पेट्रियट के लिए इस गीत को तथा एक नया गीत लिखने का आदेश दिया। सिचुएशन बताने के बाद मैंने जब उन्हें गीत लिख कर दिखा दिया तो वह बहुत प्रसन्न हुए मुझे मुंबई में मुलाकात के लिए भी बुलाया। वहां बताया कि यह गीत मैं उत्तम कुमार जी से कंपोज करा रहा हूं तुम एक बार बात कर लो और अपनी ओरिजिनल धुन उनको बता दो।
इसके बाद एक दिन मनोज जी ने मुझे फोन किया कि तुम्हारे इस गीत को लता जी गाएंगीं, मैं चाहता हूं एक बार लता जी से बात कर लो मैं नंबर देता हूं मेरी बात हो गई है उनसे। लता जी का नाम सुनते ही मेरे तो शरीर में कंपन होने लगा, दिल तेज़ी से धक धक करने लगा। जिस देवी को सुन सुनकर हम बड़े हुए हैं वह देवी हमारे शब्दों को गाएगी? ये सोचना ही मेरे लिए स्वप्न जैसा था, हिम्मत ही नहीं हुई आगे कुछ बोलने की साहस जुटाकर मैंने मनोज जी से कहा ना.. ना... ना...सर, मैं लताजी से बात नहीं कर पाऊंगा।
उस दिव्य आवाज को सुनने की सामर्थ्य मेरे कानों में नहीं है आप ही बात करके जो फाइनल करना हो कर दीजिए वह इतनी बड़ी बड़ी गायिका मैं कविता की दुनिया का सबसे छोटा कलमकार! में कैसे हिम्मत जुटा पाऊंगा उनसे बात करने की। उन्होंने बार-बार मुझे समझाया कोई भी कलाकार एकदम बड़ा थोड़े ही होता है उसके पीछे बहुत सारे हाथ होते हैं अच्छे गीतों के शब्द ना मिले होते अच्छे संगीतकार ना मिले होते अच्छी सिचुएशन पर अगर वह गीत ना फिल्माए गए होते तो क्या वह इतनी महान गायिका बन पातीं, उनकी साधना तथा उनके साथ मिलने वाले सभी उत्तम घटकों ने उन्हें स्वर की देवी बनाया है। उनके इतना समझाने पर भी मैं संकोच के कारण मना ही करता रहा।
अब लगता है ये संकोच मेरा कितना बड़ा अवगुण है। मैं उनकी बात अगर उस दिन मान लेता तो आंखों को तृप्ति मिलती तब मिलती कम से कम कानों को तो दिव्य मिश्री से आपूरित कर लेता