भगवान परशुराम असत्य और अन्याय के विरोधी थे

भगवान परशुराम असत्य और अन्याय के विरोधी थे
X
माधवशरण द्विवेदी पूर्व उप प्राचार्य शिवपुरी

वेबडेस्क। ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र परशुराम के रूप में भगवान विष्णु ने अक्षय तृतीया के दिन छटवा अतवार लिया था। भगवान परशुराम भी अक्षय हैं और आज भी जीवित हैं। श्री परशुराम शंकर जी के परम शिष्य हैं। शिव जी ने अपने शिष्यों को बताया था कि अन्याय के विरूद्ध संघर्ष करना प्रत्येक धर्मशील व्यक्ति का कर्तव्य हैं। अन्याय करने वाला कितनी ही ऊँची स्थिति का क्यों न हो अन्याय को सहन करते रहा जायेगा तो इससे अनीति बढ़ेगी और संसार में अशांति उत्पन्न होगी। अत्याचारी के विरूद्ध परशुराम जी के मन में आग जलती रहती है, अत्याचार को समाप्त करने के लिए परशुराम जी को हिंसात्मक नीति अपनानी पढ़ी। अन्याय के विरूद्ध क्रोध मानवता का चिन्ह है।

स्वार्थ या अहंकार की रक्षा के लिए किया गया क्रोध वर्जित है। नम्रता और ज्ञान से सज्जनों को और प्रतिरोध तथा दण्ड से दुष्टों को जीता जा सकता है। परशुराम जी ने कहा था मुख से चारों वेदों का प्रवचन करके और पीठ पर धनुष-बाण लेकर चला जाये। ब्रह्य शक्ति और शास्त्र शक्ति दोनों ही आवश्यक हैं। शास्त्र से और शस्त्र से भी धर्म प्रयोग सिद्ध करना चाहिए। हिंसा और अहिंसा का समन्वय करने वाले परशुराम जी के विचार हमारे मस्तिष्क में विद्यमान रहते हैं। मेरा क्रोध धर्मयुक्त है और मेरी हिंसा भी अनीति के प्रतिकार में प्रयुक्त होती है। अपने शिष्यों की मनोवृत्ति की परीक्षा के लिए शिव जी ने शिष्यों से अन्याय अनुचित आचरण किया था और उनकी प्रतिक्रिया देखनी चाही थी। अन्य शिष्य तो संकोच में दब गये पर परशुराम से न रहा गया तो गुरू के विरूद्ध लड़ने को खड़े हो गये और साधारण समझाने-बुझाने से काम न चला तो फरसे का प्रहार कर डाला चोट गहरी थी। शिव जी का सिर फट गया उन्होंने बुरा न माना परशुराम जी परीक्षा में सफल रहे, शिव जी को परशुराम पर गर्व है।

शिव जी ने प्रसन्न होकर शास्त्र, शस्त्र में पारंगत होकर सदा विजयी होने का आशीर्वाद दिया। शंकर जी ने उन्हें अस्त्र, शस्त्रों का प्रयोग संहार-उपसंहार की विधि मंत्र सहित प्रदान की विजया धनुष, कवच, रथ, तरकश देते हुए कहा ‘‘इससे युद्ध भूमि में तुम्हारी पराजय कदापि नहीं होगी, इच्छानुसार तुम्हारी शक्ति की वृद्धि होती रहेगी‘‘ भीष्म, द्रोण व कर्ण ने शस्त्र विद्या प्रशिक्षण परशुराम जी से लिया था। परशुराम जी असत्य व अन्याय के विरोधी थे। यही कारण था कि जब कर्ण के जाति संबंधी असत्य के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने श्राप दिया कि ‘‘यह विद्या तुम अपने संकटकाल में भूल जाओगे‘‘ और महाभारत के समय ऐसा हुआ भी था।

भगवान राम के द्वारा सीता स्वयंवर के समय धनुष को तोड़ा गया था तब भगवान परशुराम क्रोध में इसलिये प्रकट हुए क्योंकि यह धनुष स्वयं भगवान परशुराम के द्वारा त्यागा गया शिव जी का धनुष था। भगवान राम ने परशुराम जी से क्षमा याचना करते हुए अपने आप को धनुष तोड़ने का दोषी बताया। वहाँ जैसे ही परशुराम जी को राम के पराक्रम और धर्मनिष्ठा व सत्य का बोध हुआ और वह आश्वस्त हो गये कि इस धरती को योग्य क्षत्रिय कुलभूषण प्राप्त हो गया है तो उन्होंने स्वतः परशु सहित अपने समस्त अस्त्र-शस्त्र राम को सौप दिये और महेन्द्र पर्वत पर तपस्या करने चले गये। उन्होंने अपने जीवन में केवल राम का ही लोहा माना।

अनीति से लड़ने का कठोर व्रत लेना भी धर्म साधना का अंग है। देश में शस्त्र विद्या के सबसे बड़े ज्ञाता और प्रयोक्ता परशुराम जी रहे। परशुराम जी ने दक्षिण में समुद्र से भूमि छीनकर भारत को ‘‘केरल‘‘ जैसा उपहार दिया कन्या कुमारी और रामेश्वरम् की स्थापना उन्होंने ही की थी। केरल में ‘‘कलारी पयट्ट‘‘ के रूप में दुनिया के पहले मार्शल आर्ट स्कूल के स्थापना उन्होंने की। ‘‘अयप्पा‘‘ (गणेश) की मूर्ति का निर्माण भी परशुराम जी ने ही किया था। कांवड़ यात्रा का शुभारम्भ परशुराम जी ने किया था। परशुराम जी ने समाज सुधार और समाज के शोषित, पीड़ित वर्ग को कृषि फार्म से जोड़कर उन्हें आत्मनिर्भरता का मूलमंत्र दिया था। गंगा की सहयोगी नदी रामगंगा को भी ये अपने पिता जमदग्नि की आज्ञा से इस धरा पर लाये थे। परशुराम जी ने हथियारों का अविष्कार इसलिये किया था ताकि समाज से अन्याय को मिटाया जा सके।

रावण, कंस, हिरण्यकश्यप की तरह हैहय जाति के छोटे-छोटे राजाओं के ऊपर क्षत्रिय चक्रवर्ती सम्राट सहस्त्रार्जुन ने भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न करके उनसे एक हजार भुजाऐं, अतुल सम्पत्ति, शारीरिक बल प्राप्त कर लिया था। सम्पूर्ण पृथ्वी क्षत्रिय सहस्त्रार्जुन और उसके दस हजार अत्याचारी पुत्रों से त्रस्त थी, हर ओर अधर्म और पाप कर्म का बोल-बाला था, तब पृथ्वी ने विष्णु भगवान से प्रार्थना कि, की भगवान जब पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ता है तब आप जन्म लेते हैं। भगवान ने कहा कि मैं अक्षय तृतीया के दिन जमदग्नि और रेणुका के पुत्र परशुराम के रूप में जन्म लूंगा।



Tags

Next Story