भाग-12 / पितृपक्ष विशेष : मन को समझने वाले मनोवैज्ञानिक महर्षि पतंजलि
आजकल हम एक शब्द बार बार सुन रहे हैं अनुसंधान। अनुसंधान यानी नवीन खोज विचार की, तकनीक की जिससे जीवन को और सरल सुगम बनाया जा सके।पर मन को कैसे खुश रखा जा सकता है इस मनोविज्ञान को महर्षि पतंजलि ने समझा।
ऋषि पतंजलि ने आत्म अनुसंधान किया और मन की अतल गहराइयों में जाकर देखा कि राग, द्वेष, ईष्र्या, क्रोध, हिंसा जैसी वृत्तियां यहां है जो मनुष्य को सुख से नहीं रहने देती। इसे उन्होंने चित्तवृत्ति नाम दिया। इन चित्त वृत्तियों को कैसे शांत किया जाए ताकि हम मानसिक रूप से शांत हो सके। महर्षि पतंजलि कहते हैं कि
चित्तवृत्ति निरोध: इति योग-
अर्थात चित्त की वृत्तियों का निरोध करना ही योग है। इसके लिए उन्होंने 'अष्टांग योगÓ दिया। अष्टांग यानी 8 भाग जिसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान और समाधि आते हैं। राजा भोज ने उन्हें तन के साथ मन का भी चिकित्सक कहा है। इस तरह महर्षि पतंजलि मन को समझने वाले मनोवैज्ञानिक है।
महर्षि पतंजलि ने तीन शास्त्र दिए जिनमें
1 -योगसूत्र (चित्तशुद्धि के लिए)
2- अष्टाध्यायी(व्याकरण शुद्धि के लिए)
& -आयुर्वेद (शरीर शुद्धि के लिए)
पतंजलि का योगसूत्र एक विज्ञान के रूप में विकसित किया गया ग्रंथ है। विज्ञान याने प्रमाण जिसमें प्रयोग की महत्ता होती है और पतंजलि ने कहा कि आप अष्टांग योग की साधना करके देखिए आप परिणाम खुद देखेंगे।मन पर और शरीर पर भी। अष्टांग योग में उन्होंने यम, नियम, प्राणायाम, प्रत्याहार, आसन ,धारणा, ध्यान और समाधि का विस्तृत वर्णन किया है। यम और नियम दोनों मन के लिए है।वही प्राणायाम सांस लेने की गति को नियंत्रित करता है।। आसन शरीर को स्थिर करने के लिए। ऐसा माना जाता है की पतंजलि का योग सूत्र योग पर लिखा गया सर्वप्रथम सुव्यवस्थित ग्रंथ है। योग के नियमित अभ्यास से इंद्रियों की गतिविधियों को नियंत्रित किया जा सकता है और सिद्धियां भी प्राप्त की जा सकती हैं।
पतंजलि का योग सूत्र भारत के छह प्रमुख दर्शनों में से एक है।यह छह दर्शन है। न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदांत।
महर्षि पतंजलि का काल 200 ईसवी पूर्व माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि महर्षि पतंजलि शुंग वंश के शासनकाल में थे और पुष्यमित्र शुंग का अश्वमेध यज्ञ इन्होंने कराया था।
इनका जन्म गोंडा उत्तर प्रदेश में हुआ था और बाद में ये काशी जाकर बस गए। ऐसा माना जाता है कि व्याकरण आचार्य पाणनि के शिष्य थे और रसायन विद्या के बड़े आचार्य भी थे।
आज विश्व अपने ही बनाए संसार की तमाम व्याधियों से त्रस्त है।सुख के असीमित साधन है पर सुख नहीं है। एक अतृप्तता है, एक उदासी है,अवसाद है। आइए पतंजलि को समझे, पढ़े, आनंद का मार्ग प्रशस्त होगा।
ऐसे मनोचिकित्सक को सादर वंदन।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)