गिरीश गौतम : जिनके लिए अंतिम छोर पर खड़ा व्यक्ति ही सब कुछ है
मध्यप्रदेश विधानसभा के चौदहवें विधानसभा अध्यक्ष श्री गिरीश गौतम को जिसने जितना जाना, उसे हमेशा लगा है कि बहुत कम जाना। कहते हैं कर्म ही भाग्य का निर्माण करता है, और यह कर्मफल कब भाग्य में प्रकट हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। गौतमजी के बारे में भी यही बातें सौ फीसदी सत्य हैं, वे तो सिर्फ सेवा के उस महान यज्ञ में लगे हुए हैं, जिसमें अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को मुख्य धारा में लाने का संकल्प लिया गया है।
वस्तुत: मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र से आनेवाले वे एक ऐसे नेता है, जिन्होंने समाजवाद के दामन को छोड़कर कमल को आत्मसात किया और अपने क्षेत्र के हर नागरिक के चहरे पर कमल की तरह ही मुस्कान बिखेरने के लिए सतत प्रयासों में वे लगे रहते हैं। एक तरह से देखें तो श्री गिरीश गौतम चार बार के विधायक हैं। उनका राजनीति में आना ठीक वैसा ही है, जैसे कभी सारस जैसे एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को ऋषि वाल्मीकि ने तमसा नदी के तट पर अह्लाद करते देखा और उनके मुख से कविता बह निकली, जिसके कारण से भविष्य में रामायण एवं तुलसी की रामचरित मानस जैसी कालजयी रचना का निर्माण हो सका । ठीक इसी प्रकार से आमजनता के दुखों से द्रवित हुए हसिया और हथौड़े का लाल झंडा उठाए श्री गौतम सड़क पर संघर्ष करते-करते राजनीति के सेवा कार्य में खिंचे चले आए ।
इस बात को स्वीकार्य करने में किसी को संकोच नहीं होना चाहिए कि समाजवाद का जो सपना किताबों में दिखाया जाता है, प्रारंभ में वह सबसे अधिक युवाओं को जो उसके संपर्क में आते हैं, उन्हें सबसे अधिक प्रभावित करता है। पूंजीवाद की जिस तरह से व्याख्या मार्क्स और लेनिन के समाजवाद में की गई है, उसे पढ़कर और तत्काल में समझकर यही लगता है कि सभी उद्योगपति और व्यापारी चोर हैं, गरीबों का खून चूसकर ये गुलाब कांटों के साथ इठला रहे हैं, किंतु जब उसकी व्यवहारिकता का अध्ययन किया जाता है तब अवश्य ही लगता है कि किसी भी समाज या देश के संपूर्ण विकास के लिए हर समूह, वर्ग, संस्था का अपना ही महत्व है । वह किसी को हटाने या समाप्त कर पूरा नहीं होता, उसके लिए उसका ही होना जरूरी है। यहीं आकर यह समाजवाद फैल हो जाता है और जो सुनने में अच्छा लगता है, आचरण में भी किसी हद तक इसे धारण कर लिया जाए तो भी इसकी व्यवहारिक कठिनाईयां बता देती हैं कि यह सिर्फ एक स्वप्न के समान है। आखिरकार यह समाज में समरसता नहीं, विभेदीकरण ही पैदा करता है।
ऐसे में युवाकाल के गौतमजी कैसे इस विचार से प्रभावित हुए वगैर रह सकते थे। 1972 में रीवा में हुए छात्रों के आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के बाद वे 1977 से कम्युनिष्ट पार्टी में शामिल हुए और उसी की विचारधारा को आगे बढ़ाते रहे। किसान, मजदूरों के लिए आंदोलन करते कई बार जेल गए । भाकपा की टिकट पर मनगँवा से चुनाव लड़ा और महज 196 मतों से वे हारे भी, किंतु तभी उन्हें मध्यप्रदेश में भाजपा के शिल्पी कुशाभाऊ ठाकरे और पूर्व मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा, रीवा संभाग के तत्कालीन संगठन मंत्री भगवत शरण माथुर का इस प्रकार का सानिध्य मिला कि वे गहरे लाल रंग से भगवा में रंग गए। उनके जीवन में अब हसिया और हथोड़े ने कमल का रूप धारण कर लिया था। फिर जब 2003 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष रहे श्रीनिवास तिवारी को जिस तरह से उन्होंने हराया, उसके बाद जैसे पूरे प्रदेश में यह उनकी जीत उल्लास एवं आश्चर्य का विषय बन सुर्खियां बटोरने लगी थी ।
उनका चुनाव जीतने तक का संघर्षकाल 30 सालों का है, अपनी संपूर्ण जवानी उन्होंने गरीब, असहाय लोगों के लिए होम कर दी थी, यही कारण रहा कि न केवल मनगँवा क्षेत्र की जनता बल्कि दूर-दराज के लोग भी उन्हें अपना असली हीरो मानने लगे हैं, ये बात अलग है कि राजनीतिक पद प्रतिष्ठा के समीकरणों में वे उतने फिट कभी नहीं रहे जितना कि आज की आवश्यकता है, नहीं तो कोई कारण नहीं था कि 2003 के चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज व मुख्यमंत्री के समानांतर रसूख रखने वाले श्रीनिवास तिवारी को 28 हजार से ज्यादा मतों से हराकर देशभर के अखबारों की सुर्खियां बने गौतमजी चार बार, 18 वर्ष तक की विधायकी होने के बाद भी किसी बड़े पद के लिए इंतजार करते ।
खैर, यह अच्छी बात है कि भारतीय जनता पार्टी ने उनके त्याग और समर्पण को आज सम्मान दिया है, एक जननेता से सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने की उनकी यह कहानी यह अवश्य सिद्ध करती है कि धैर्य के साथ निरंतर किए गए कार्य का कोई विकल्प नहीं, एक न एक दिन उसके सुखद परिणाम अवश्य ही आते हैं। जिस मप्र विधानसभा के आज वे अध्यक्ष हैं, कभी अपनी ही सरकार पर वे एक विधायक के नाते अपने क्षेत्र और प्रदेश में कई मामले बिना इस संकोच के उठाते रहे हैं कि आखिर जिस भरोसे के साथ जनता ने उन्हें लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर में अपना प्रतिनिधित्व बनाकर भेजा है, उसे न्याय दिलाना उनका प्रथम कर्तव्य है। वस्तुत: इसलिए वे समय-समय पर विधानसभा में मुखर होकर अपनी बात रखते रहे हैं। आगनबाड़ी केन्द्रों में नियुक्तियों और पोषण आहार वितरण जिस पर कि सरकार को बड़ी संख्या में कार्रवाई करनी पड़ गई थी। जिले की सड़कों की खराब हालत, शिक्षा विभाग की नियुक्तियां हों या ऐसे ही अन्य मामले उन्होंने सदन में जिस तरह हर बार तथ्यों के साथ अपनी बात रखी है, उससे तत्काल में भले ही सरकार की मुश्किलें बढ़ीं लेकिन सच यही है कि उनके उठाए सवालों ने हर बार सरकार को व्यवस्थाएं सही करने पर मजबूर किया है ।
वे विधानसभा की जिस भी समिति में रहे वहां अपने सुझावों से विकासपरक कार्यों को जमीन पर उतारने के लिए अधिकारियों को प्रेरित करते रहे हैं। इतना ही नहीं तो एक विधायक के रूप में नईगढ़ी माइक्रो लिफ्ट एरिगेशन के लिए उन्होंने पहले जनांदोलन किया फिर सरकार से घोषणा करवाई। करीब आठ सौ करोड़ से अधिक के इस प्रोजेक्ट में क्षेत्र का बड़ा हिस्सा जो सिंचाई से वंचित था, वहां अब शीघ्र पानी पहुंचेगा । वास्तव में यह प्रदेश में भूमिगत पाइपलाइन के माध्यम से नहर ले जाने का प्रदेश का यह पहला प्रयोग है। इसके अलावा भी इनके खाते में अनेक विकासोन्मुख कार्य जाते हैं, जिन्होंने आज विंध्य को एक नई पहचान दी है।
संघर्षों के विरासत से मिली साफगोई और खाँटीपन अभी भी उनके चरित्र का हिस्सा है। विधानसभा के अध्यक्षीय दायित्व के पद को ग्रहण करने के साथ उन्होंने जो कहा, वह अपने आप में बहुत कुछ कहता है गिरीश गौतम कहते हैं कि सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के विधानसभा में जो सदस्य हैं, उनको एक नजरिये से देखने की आवश्यकता है और मेरा यही प्रयास रहेगा। मैं विधानसभा में सभी सदस्यों के हितों की रक्षा करूं। वस्तुत: अध्यक्षीय आसंदी से अपेक्षा भी सभी को यही रहती है, निश्चित ही यह निर्णय भाजपा में संगठन स्तर और राजनीतिक तौर पर कितना सही है आज यह कहने से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं संपूर्ण भाजपा ने जिन्हें मध्यप्रदेश की विधानसभा के अध्यक्ष के लिए चुना है, वह अपने स्वभाव से ही जन मन और जन-जन है। उनके लिए राज्य और राष्ट्र का हित ही सर्वोपरि है।
लेखक - डॉ. मयंक चतुर्वेदी, फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं पत्रकार हैं।