जम्मू-कश्मीर में नाम बदलने की नई शुरूआत
यह जिज्ञासा स्वाभाविक हो सकती है कि नाम क्या है? तब इसका सहज उत्तर आएगा, नाम आपकी पहचान है। नाम, एक सभ्यता और एक संस्कृति है। नाम में ही अपने और अपने पूर्वजों को खोजने की शक्ति निहित है। ये नाम ही है जो आपको इतिहास में ही नहीं वर्तमान से लेकर भविष्य तक में आगे बढ़ते रहने का आधार देता है। कई बार नाम को लेकर विवाद होते हुए देखा गया है, जब कोई सरकार किसी स्थान या संस्थान का नाम बदलने की तैयारी करती है, तब स्वाभाविक है कि एक पक्ष इसके विरोध में खड़ा हुआ दिखाई देता है, किंतु विचार करनेवाली बात यह है कि जब काम हो ही रहा है तब नाम बदलने से फिर क्या अंतर आ जाता है, जोकि उसे बदलने के लिए तमाम प्रयास समय-समय पर होते आए हैं।
वस्तुत: सही मायनों में नाम के बदलने से ही बहुत कुछ स्वत: बदल जाता है, आपके श्रद्धा केन्द्र तक बदल जाते हैं, देखने की धारणा और समझने की समझाइश जो भी आपका नजरिया है, उसमें भी गहरा अंतर पहले के नाम और नए दिए गए नाम के साथ ही आने लगता है। यही वह कारण भी है जो हर कोई अपने सामर्थ्य में नामों का चयन बहुत सोच समझकर करते आए हैं। यह नाम का ही महत्व है जो तुलसी बाबा को ''रामचरित मानस'' की रचना करते समय इसके लिए अलग से चौपाई लिखकर इसकी विशेषताओं का बखान करना पड़ गया था, भगवान श्रीराम के नामकरण के समय वे कुछ तरह से वर्णन करते दिखाई देते हैं ''नामकरन कर अवसरू जानी। भूप बोलि पठए मुनि ग्यानी॥ और आगे लिखा-जो सुख धाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा॥ बालकाण्ड।
साहित्य और कला की तरह ही विज्ञान के क्षेत्र में भी इसका अपना महत्व है, इसीलिए ही वैज्ञानिक किसी खोज का नाम रखते समय बड़ी सावधानी बरतते हैं। उसे एक ऐसा नाम देते हैं जिससे उसे न सिर्फ सरलता से पहचाना जा सके बल्कि उसके महत्व को आसानी से समझा जाए । इसी तरह से समय-समय पर सत्ता केंद्रों द्वारा अपने प्रभाव क्षेत्र में नाम रखने एवं बदलने का प्रचलन प्राचीन काल से ही देखने में आ रहा है। कई बार आपका आचरण आपके नाम के साथ ही जुड़ जाता है, इसीलिए विद्वान नाम का चयन बहुत सावधानी के साथ करते हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियां उस नाम के साथ अपने को जोड़कर गौरव का अनुभव करें।
देश इस समय अपनी स्वाधीनता के 75 वें वर्ष का उत्सव मना रहा है। स्वाभाविक है ऐसे समय में समूचे देश में उस बल और सामर्थ्य को खड़ा करने की आवश्यकता है, जिससे पीढि़यां स्वत: ही प्रेरणा ले सकें। इसके लिए जरूरी है कि उन नामों का चयन किया जाए जिनके पीछे ऊर्जा से भरी हुई श्रेष्ठ कहानियां हैं, जोकि कहीं ना कहीं सुनने मात्र या व्यक्ति विशेष का नाम लेने भर से रोमांच और सकारात्मक संचार करने में सक्षम हैं। देखने में आ रहा है कि केंद्र की मोदी सरकार और कुछ राज्य सरकारें इस दिशा में आज अति गंभीर हैं।
हमने देखा कि मोदी सरकार में अगस्त 2015 के दौरान दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम बदलकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रख दिया था। उस समय सांसद महेश गिरि ने नाम बदलने पर प्रस्ताव में कहा था कि यह ''अतीत में की गई गलतियों को ठीक करने का मौका है।'' भाषा के स्तर पर बेंगलोर का नाम बदलकर बेंगलुरु किया गया। तर्क दिया गया कि नाम बदलने के पीछे कन्नड़ भाषा का सही उच्चारण नहीं होना है। गुड़गांव का नाम गुरुग्राम किया गया। महाभारत के गुरु द्रोणाचार्य के नाम पर यह बदलाव किया गया था । बेंगलुरु शहर के रेलवे स्टेशन का नाम 19वीं सदी के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिवीर संगोल्ली रायन्ना के नाम पर रख दिया गया। हरियाणा के फतेहाबाद के गांडा गांव का नाम आज अजीत नगर है, क्योंकि ग्रामीणों का कहना था कि इस नाम के कारण युवाओं को शर्मिंदगी होती है।
इसी तरह ओडिशा के वीइलर टापू मिसाइल परीक्षण का केंद्र होने से इसका नाम एपीजे अब्दुल कलाम टापू कर दिया गया। 2017 दीन दयाल उपाध्याय के जन्मशती वर्ष में गुजरात के कांडला पोर्ट का नाम उनके नाम पर हो गया। मुंबई के एलफिंस्टन रोड का नाम ब्रिटिश गवर्नर के नाम पर था, जिसे बदलकर प्रभादेवी किया गया। जम्मू-कश्मीर चेनानी नाशरा सुरंग अब श्यामा प्रसाद मुखर्जी टनल है। हावड़ा-कालका मेल का नाम रेलवे ने नेताजी एक्स्प्रेस कर दिया। हिमाचल प्रदेश की रोहतांग सुरंग अब अटल सुरंग के नाम से जानी जाती है। नई दिल्ली स्थित प्रवासी भारतीय भवन आज के समय में सुषमा स्वराज की याद दिला रहा है तो अंडमान निकोबार का हैवलाक द्वीप स्वराज द्वीप में बदल चुका है। राजस्थान के बाड़मेर के मियों का बाड़ा का नाम महेश नगर किया गया। यहां भी ग्रामीणों का कहना था कि मुस्लिम नाम होने के कारण उन्हें अपने बच्चों के विवाह के लिए प्रस्ताव नहीं मिल रहे क्योंकि लोग इसे मुस्लिमों का गांव समझ लेते हैं। इलाहाबाद अब प्रयागराज है और फैजाबाद अयोध्या हो गया है।
यहां गिनाने बैठें तो ऐसे अनेक नाम स्मृति पटल पर आ जाएंगे जिन्हें वर्तमान की आवश्यकता और पिछले नाम में गौरव का भाव नहीं होने के कारण से बदला गया है। अब बारी बड़े स्तर पर जम्मू-कश्मीर राज्य की है। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से ही अनुभव किया जा रहा था कि अलगाव से मुख्यधारा में लानेवाले बदलाव की इस बयार में सबसे बड़ा जो काम अतिशीघ्र किया जाना चाहिए वह यहां के महत्वपूर्ण स्थानों का पुन: नामकरण करना है । निश्चित ही जो श्रेष्ठ गौरव-प्रतीक हम अभी खड़े करेंगे, भविष्य का भारत उन्हीं से प्राणवायु और आत्मवायु लेता दिखाई देगा।
वस्तुत: आज इस दिशा में केंद्र सरकार का जम्मू-कश्मीर में किया जा रहा प्रयास बहुत ही प्रेरणा से भर देनेवाला है। यहां सरकार सड़कों, पुलों, कॉलेजों, खेल के मैदानों, अस्पतालों और कई अन्य विकास योजनाओं का नाम उन लोगों के नाम पर रखने जा रही है, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए । श्रीनगर और जम्मू के राजधानी शहरों में कुछ प्रतिष्ठित स्थल प्रख्यात साहित्यकारों, शिक्षाविदों, चिकित्सकों, सर्जनों, न्यायाधीशों, न्यायविदों, पत्रकारों और खिलाड़ियों के नाम पर किए जा रहे हैं।
देखा जाए तो अभी फिलहाल जम्मू और कश्मीर में अधिकांश सार्वजनिक संपत्तियों का नाम डोगरा महाराजाओं और तत्कालीन राज्य के पहले प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के नाम पर है। श्रीनगर में झेलम पर पांच पुल सुल्तानों के नाम पर हैं, एक अफगान गवर्नर के नाम पर और एक शेख अब्दुल्ला के नाम पर। दो प्रमुख अस्पताल-श्री महाराजा हरि सिंह (एसएमएचएस) और एसकेआईएमएस-को जोड़ने वाली सड़क प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ.अली जान के नाम पर है। अब ऐसे में यह बहुत जरूरी हो गया है कि यहां नामकरण का काम अतिशीघ्र आरंभ हो, केंद्र सरकार खोज-खोजकर यहां स्थान और योजनाओं का नाम उन राष्ट्रीय नायकों के नाम पर रखे, जिन्होंने 1947 से 2021 तक आतंकवादियों, घुसपैठियों या दुश्मन सेना के साथ संघर्ष में भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए हैं।
वस्तुत: जब उनके नाम से चप्पे-चप्पे पर कहानियां सुनाई देंगी, तब स्वाभाविक है कि आनेवाले समय में यहां अमन-शांति आम मानस के स्वभाव में स्वत: ही नजर आने लगे । एक राज्य का राष्ट्रभक्ति के स्तर पर अपने राष्ट्र के साथ इससे अच्छा मिलान किसी अन्य माध्यम से संभव नहीं हो सकता है। इसलिए अच्छा है केंद्र की मोदी सरकार ने नामकरण के माध्यम से यहां परिवर्तन का स्वप्न देखा है। जब यहां हर कोने में देश के लिए मर मिटने की कहानियां गूजेंगी तब अवश्य उम्मीद की जानी चाहिए कि आनेवाली पीढ़ियां हर जगह ''भारत माता की जय' के नारे लगाती हुई दिखाई देगी।
लेखक, फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं पत्रकार हैं।