"नववर्ष का ज्ञान, विज्ञान और इतिहास!"
वेब डेस्क। ब्रम्हाजी ने जिस दिन इस सृष्टि की रचना की वह दिन " वर्षप्रतिपदा " कहलाया। इसका वैज्ञानिक प्रमाण ये है कि वर्षप्रतिप्रदा याने गुड़ी पड़वा से ही प्रकृति में नवीन सृजन होता है, वृक्षो पर नई कोपलें आती हैं। नए पत्ते उगते है। यही कारण है कि आज से लाखों वर्षों पूर्व से लेकर अभी अभी 2500 ( ढाई हजार ) वर्षों पूर्व तक सम्पूर्ण विश्व, वैदिक याने ज्ञानमयं होने के कारण एक ही "काल -- अंतर " या "कालांतर" मान्य था। इस कालांतर शब्द का ही अंग्रेजी उच्चारण भेद "कैलेंडर " ऐसा हुआ है!
केवल संस्कृत भाषा थी, उसी से लैटिन, जर्मन, हिंदी, मराठी आदि भाषाएं विकसित हुईं। अमेरिका का नाम अमर ऐक्य, इंग्लैंड का अग्निन दल हुआ करता था।
यह कालांतर ( कलेंडर ) मार्च महीने से शुरू होता था, क्योंकि उस जमाने मे जो सूर्य व पृथ्वी की स्थिति थी, तदनुसार 1 मार्च को गुदुपडवा हुआ करता था। इसी कारण सातवें महीने को " सप्त अम्बर " कहा जाता था, क्योंकि कालांतर में अम्बर याने आकाश की स्थिति ही तो देखी जाती है। अंग्रेजी में उच्चारण भेद से सेप्टेम्बर कहते हैं।
आठवें महीने को अष्ट अम्बर याने अक्टूबर , नवें को नव अम्बर ( नवम्बर ) व दसवें को दसम्बर ( दिसंबर ) कहा जाता था। महीनों के नाम तो अभी भी कमोबेश वहीं हैं परंतु सातवां अब नवां , आठवां अब दसवां , याने दो महीने आगे खिसक गए, क्यों ? क्योंकि इसा के जन्म पूर्व तक लगभग पूरे विश्व मे "विक्रम संवत " ही मान्य था परंतु jejus christ जिसका मूल नाम यशस कृष्ण था उसने जब "कृष्ण नीति " ( क्रिस्चेनिटी ) सिखाई तो " मकर संक्रांति " का महत्व बहुत बढ़ गया। इसलिए जो नया कलेंडर शुरू हुआ वह 1 जनवरी से शुरू माना जाने लगा क्योंकि उस जमाने मे मकरसंक्रांति 1 जनवरी को पड़ती थी।
यहां विशेष ध्यान देने की बात ये है कि इस अंग्रेजी कलेंडर का भी ईसा के जन्म से कोई लेना देना नहीं है जैसा कि हमे पढ़ाया गया है। अगर यह ईसा के जन्म से होता तो 25 दिसंबर से शुरू होता। आप देखिए प्रकृति में भी 1 जनवरी को बर्फ गिरती रहती है, नवीन सृजन नहीं होता।
रशिया में एक अंतराष्ट्रीय कलेंडर समिति की बैठक हुई। जब ये नया कलेंडर लागू हुआ तब भी अनेक लोगों न 1 जनवरी का विरोध व वर्ष प्रतिपदा का समर्थन किया व इसीलिए यह तय हुआ कि "वित्तीय वर्ष " गुड़ी पड़वा से ही शुरू होगा , इसीलिए आज भी पूरे विश्व मे वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से शुरू होता है।
चूंकि भारत के सूर्योदय से ही पुराना कलेंडर चलता था व भारत मे जब सुबह के 6 बजते हैं तब इंग्लैंड में रात के 12 बजते हैं, अतः इस कैलेंडर में ये एक बड़ी विसंगति आ गई है कि रात 12 बजे तारीख बदलती है।
हमारा भारत का " कालांतर " ही ज्ञानमयं व विज्ञान मय था , विश्व मान्य था , सुबह 6 बजे तारीख बदलती थी और अब हम मूर्ख और गुलाम भारतीय रात 12 बजे तारीख बदलते हैं व अंग्रेजी नव वर्ष मनाते हैं।
सन 1779 तक इंग्लैंड का राजा " गुड़ी पड़वा " मनाता था , इसके लिखित प्रमाण उपलब्ध हैं।
वैदिक सनातन नव वर्ष की शुभामनाएं।