राष्ट्र प्रेम की अलग जगाने वाले क्रांतिदूत हैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस

राष्ट्र प्रेम की अलग जगाने वाले क्रांतिदूत हैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस
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डॉ. संजय मयूख

वेबडेस्क। किसी राष्ट्र के लिए स्वाधीनता सर्वोपरि है - इस महान मूलमंत्र को शैशव और नवयुवाओं की नसों में प्रवाहित करने, तरुणों की सोई आत्मा को जगाकर देशव्यापी आंदोलन देने और युवा वर्ग की शौर्य शक्ति उद्भासित कर राष्ट्र के युवकों के लिए आजादी को आत्मप्रतिष्ठा का प्रश्न बना देने वाले नेताजी सुभाष चंद बोस ने स्वाधीनता महासंग्राम के महायज्ञ में प्रमुख पुरोहित की भूमिका निभाई।

सुभाष चंद बोस के मन में देशप्रेम, स्वाभिमान और साहस की भावना बचपन से ही बड़ी प्रबल थी। वे अंग्रेज शासन का विरोध करने के लिए अपने भारतीय सहपाठियों का भी मनोबल बढ़ाते थे। अपनी छोटी आयु में ही सुभाष ने यह जान लिया था कि जब तक सभी भारतवासी एकजुट होकर अंग्रेजों का विरोध नहीं करेंगे, तब तक हमारे देश को उनकी गुलामी से मुक्ति नहीं मिल सकेगी। जहां सुभाष के मन में अंग्रेजों के प्रति तीव्र घृणा थी, वहीं अपने देशवासियों के प्रति उनके मन में बड़ा प्रेम था।

"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की देशभक्ति, साहस, शौर्य एवं संस्कार ने उनके व्यक्तित्व को इतना विशाल बनाया कि आज हर माता अपने पुत्र का नाम सुभाष रखने पर भी गर्व का अनुभव करती है। भारत की धरती समय-समय पर ऐसे विराट व्यक्तित्व को अवतरित करती है, जिससे देश और काल की पहचान होने लगती है। ऐसे व्यक्तित्व से निकला प्रकाश देश और समय की सीमा से बहुत बाहर तक जा पहुंचता है। उनकी मुंह से निकला शब्द सूत्र-वाक्य बन जाता है। उनका कार्य प्रेरणा का पथ बनकर कई पीढ़ियों को आगे का मार्ग दिखाता है। नेताजी के द्वारा स्थापित आजाद हिन्द फौज के माध्यम से भारत को आजाद करने का नेताजी का प्रयास भले ही प्रत्यक्ष रूप से सफल नहीं हो सका, किंतु उसका दूरगामी परिणाम हुआ। नौसेना विद्रोह इसका उदाहरण है, जिसके के बाद अंग्रेजों को विश्वास हो गया कि अब भारतीय सेना के बल पर भारत में शासन नहीं किया जा सकता और भारत को स्वतंत्र करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा। आजाद हिन्द फौज को छोड़कर विश्व के इतिहास में ऐसा कोई भी दृष्टांत नहीं मिलता जहां तीस-पैंतीस हजार युद्धबन्दियों ने संगठित होकर अपने देश की आजादी के लिए ऐसा प्रबल संघर्ष छेड़ा हो।

सुभाष बाबू का मानना था कि अंग्रेजों के मजबूत शासन को केवल सशस्त्र विद्रोह के जरिए ही चुनौती दी जा सकती है। 1921 में प्रशासनिक सेवा की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर देश की आजादी की लड़ाई में उतरे सुभाष चंद्र बोस को उनके उग्र क्रांतिकारी वैचारिक दर्शन के कारण देश के युवा वर्ग का व्यापक समर्थन मिला। नेताजी की शैक्षणिक योग्यता अप्रतिम थी। 1940 में कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में नेताजी ने एक अत्यंत ओजस्वी भाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा "स्वतंत्रता संग्राम के मेरे साथियों! स्वतंत्रता बलिदान चाहती है। आप ने आजादी के लिए बहुत त्याग किए हैं, किंतु अपनी जान की आहुति अभी बाकी है। मैं आप सबसे एक चीज मांगता हूं और वह है खून। दुश्मन ने हमारा जो खून बहाया है, उसका बदला सिर्फ खून से ही चुकाया जा सकता है। सुभाष चंद्र बोस ने नारा दिया 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।' इसने देश के युवा वर्ग को आजादी के लिए बहुत प्रेरित किया।

पूरे देश को नई ऊर्जा देने वाले नेताजी भारत के उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में से थे, जिनसे आज के दौर का युवा वर्ग भी प्रेरणा लेता है। उनके द्वारा दिया गया 'जय हिंद' का नारा पूरे देश का राष्ट्रीय नारा बन गया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपने विचारों से लाखों लोगों को प्रेरित किया।

महान स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के से प्रभावित होकर वे भारत आये और असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। अंग्रेज़ सरकार का विरोध करने के लिये कोलकाता महापालिका का चुनाव जीतने के बाद तब के कलकत्ता के महापौर के रूप में दास्बाबू ने सुभाष चंद्र बोस को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया। उन्होंने अपने कार्यकाल में महापालिका का पूरा ढाँचा और काम करने का तरीका ही बदल डाला। सभी रास्तों के नामों का भारतीयकरण किया गया और स्वतंत्रता संग्राम में प्राण न्यौछावर करने वालों के परिवारजनों को महापालिका में नौकरी मिलने लगी।

पंडित नेहरू के साथ सुभाष ने कांग्रेस के अन्तर्गत युवकों की इंडिपेंडेंस लीग शुरू की। 1927 में साइमन कमीशन को काले झंडे दिखाने का नेतृत्व सुभाष बाबू ने किया। साइमन कमीशन को जवाब देने के लिये कांग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने का काम जिन आठ सदस्यीय आयोग को सौंपा था, उसके एक सदस्य सुभाष बाबू भी थे। सुभाष बाबू को पूर्ण स्वराज की माँग से पीछे हटना मंजूर नहीं था। 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठी चलायी और उन्हें घायल कर जेल भेज दिया। कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में उनके नेतृत्व में ही 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। बाद में मतभेद होने पर उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र देकर फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। 1939 में ब्रिटेन और जर्मनी के बीच युद्ध की सूचना मिलने पर कलकत्ता में भारत की गुलामी का प्रतीक हालवेट स्तम्भ को सुभाष की यूथ ब्रिगेड ने रातों रात मिट्टी में मिला दिया। अंग्रेज हुकूमत ने सुभाष बाबू सहित फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी मुख्य नेताओं को कैद कर लिया। सुभाष बाबू ने जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया। हालात खराब होने के अंदेशे के चलते अंग्रेज हुकूमत ने उन्हें जेल से तो रिहा कर दिया लेकिन घर पर ही उन्हें नजरबंद करके पुलिस का कड़ा पहरा बिठा दिया। इतिहास जानता है कि सुभाष बाबू ने पुलिस को चकमा देते हुए किस तरह 16 जनवरी 1941 को नजरबंदी ने निकल गए और कई पड़ावों को पार करते हुए उन्होंने सिंगापुर में स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार की स्थापना की। इस सरकार को नौ देशों ने मान्यता दी। नेताजी आजाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति भी बनाए गये।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आज़ाद हिन्द फौज ने उनके नेतृत्व में भारत की अंग्रेज हुकूमत पर हमला किया और कई इलाकों को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कर लिया। फौज को प्रेरित करने के लिये नेताजी ने "दिल्ली चलो" का नारा दिया। 6 जुलाई 1944 को आज़ाद हिन्द रेडियो पर अपने भाषण के माध्यम से गांधीजी को सम्बोधित करते हुए जापान से सहायता लेने का अपना कारण और आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्देश्य के बारे में बताया। भाषण के दौरान नेताजी ने गांधीजी को राष्ट्रपिता कहा तो गांधीजी ने भी उन्हें नेताजी कहा। 18 अगस्त 1945 को जब नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की ओर जा रहे थे तो वे एक कथित दुर्घटना के शिकार हो गये और काल ने उन्हें हमसे छीन लिया।

हमारे गणतंत्र दिवस पर यों तो सरकारें तीन दिन का उत्सव मनाती रही हैं लेकिन इस बार 23 जनवरी को भी जोड़कर इस उत्सव को चार-दिवसीय बना दिया गया है। 23 जनवरी इसलिए कि यह सुभाषचंद्र बोस का जन्म दिवस होता है। सुभाष-जयंति पर इससे बढ़िया श्रद्धांजलि उनको क्या हो सकती है? हमारी सरकार ने अंडमान और निकोबार के एक द्वीप का नाम सुभाष बाबू के नाम पर रख कर उन्हें भावांजलि दी है। श्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने आजादी के महानायकों को जो उनका सम्मान दिया है, उसकी जितनी भी सराहना की जाय, कम है। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी भी 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में प्रदेश भर में बूथ स्तर पर मना रही है।

(लेखक बिहार विधान परिषद के सदस्य एवं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा राष्ट्रीय मीडिया के सह प्रभारी हैं)

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