विश्व का चौथा देश बना भारत

भारत यह क्षमता प्राप्त करने वाला विश्व का चौथा देश बन गया। हमारे वैज्ञानिकों ने 300 किमी दूर 'लो अर्थ ऑर्बिट' यानी पृथ्वी की निचली कक्षा में लाइव सैटेलाइट को मार गिराया। यह अभियान न तो किसी देश के खिलाफ है और न ही किसी अंतरराष्ट्रीय संधि का उल्लंघन है। यह अभियान कठिन था, क्योंकि इसमें बहुत उच्च कोटि की तकनीकी क्षमता की जरूरत थी। इसे मात्र तीन मिनट में पूरा कर वैज्ञानिकों ने सभी निर्धारित लक्ष्य हासिल कर लिए हैं। यह अभियान सिर्फ भारत की रक्षा के लिए किया गया है।
आइंस्टाइन से लेकर स्टीफन हाकिंस तक सभी बड़े वैज्ञानिक कह गए हैं कि भविष्य का युद्ध धरती पर आमने-सामने नहीं, बल्कि वायुमंडल यानी अंतरिक्ष में लड़ा जाएगा। परमाणु युद्ध हुआ तो उसके गोले भी प्रक्षेपास्त्रों से छोड़े जाएंगे, जिनकी दिशा आसमान में पहरेदारी कर रहे संचार उपग्रह तय करेंगे। लिहाजा संचार व्यवस्था आक्रमण का एक प्रमुख औजार बन गई है। हालांकि अमेरिका एवं रूस अंतरिक्ष में जासूसी कर रहे उपग्रहों को मार गिराने की क्षमता पिछली शताब्दी के छठे-सातवें दशक में ही प्राप्त कर चुके थे। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में चीन भी इस प्रणाली को विकसित करने में दक्ष हो गया था। अलबत्ता भारत पिछले शासकों की कमजोर इच्छा-शक्ति के चलते इस सुरक्षा प्रणाली को विकसित करने की दक्षता हासिल नहीं कर पाया। किंतु अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों को दो साल पहले 2014-15 में अनुमति देकर उनकी इच्छा तो पूरी की ही, देश की सुरक्षा का भी ठोस उपाय कर लिया। विज्ञान की किसी भी सैन्य गतिविधि या आविष्कार की उपलब्धि राजनीतिक दृढ़ता के बिना संभव नहीं है। बहरहाल दो एयर स्ट्राइक के बाद लोकोक्ति का रूप ले चुकी 'मोदी है तो मुमकिन है' कहावत फिर से फलीभूत हुई है।
हालांकि पृथ्वी की सतह से किसी भी उपग्रह को भेदना आसान काम नहीं है। क्योंकि ये उपग्रह पृथ्वी की कक्षा से 160 किमी की दूरी से लेकर 2000 किमी की ऊंचाई पर गतिमान रहते हुए स्थित होते हैं। इस मिसाइल की मारक क्षमता के संबंध में डीआरडीओ के अध्यक्ष जी सतीश रेड्डी ने कहा है, 'हम पृथ्वी की निचली सतह पर सक्रिय उपग्रह को महज कुछ सेंटीमीटर के निकट जाकर भी नेस्तनाबूद कर सकने की क्षमता विकसित कर लेने में सफल हो गए हैं।' इसी परिप्रेक्ष्य में डीआरडीओ के पूर्व अध्यक्ष वीके सारस्वत ने कहा है, 'अगर विरोधी देशों ने अंतरिक्ष में उपग्रहों के रूप में हथियार तैनात किए तो भारत उनका मुकबला करने में समर्थ हो गया है।' यह तकनीक युद्ध की स्थिति में दुश्मन देश में अंधेरा पैदा कर देने और संचार व्यवस्था ठप कर देने में भी सक्षम है। फिलहाल हमारे पास 5000 किमी की दूरी पर चलते उपग्रह को नष्ट करने की भी मिसाइलें हैं। अंतरिक्ष में किसी भी शत्रुतापूर्ण गतिविधि का कड़ा प्रतिरोध करने में हम समर्थ हो गए हैं।
इसीलिए कहा जा रहा है कि अगला विश्व युद्ध अंतरिक्ष की कक्षा में लड़ा जाएगा। मसलन इक्कीसवीं सदी का युद्ध परंपरागत तरीकों से नहीं लड़ा जाएगा। इस पर नियंत्रण कंप्यूटर प्रणाली से रहेगा। दरअसल वर्तमान परिस्थितियों में अंतरिक्ष में उपग्रहों के जरिए सैन्यीकरण हो रहा है, अमेरिका में नीतिगत रूप देकर 'स्पेस-फोर्स' यानी अंतरिक्ष-सेना का गठन किया जा रहा है। 2020 तक इसके आधिकारिक रूप से सेना का अंग बन जाने की संभावना है। अब तक इस तरह की सेना केवल रूस के पास थी, जो 1992-97 और 2001 से लेकर 2011 तक अधिक क्रियाशील रही। साफ है, अंतरिक्ष में लड़ी जाने वाली भविष्य की रहस्यमयी लड़ाई धरती पर आकार ले रही है।
अमेरिका ने 1962 में जब अपना पहला जासूसी उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ा था, तब रूस व चीनी राडारों से इलेक्ट्रोनिक संकेत इक_ा करके अमेरिकी बम-वर्षक विमानों की तहकीकात की थी। ये उपग्रह अनेक आवृत्तियों वाली सूक्ष्म तरंगों को आसानी से अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं। ये संदेश सैन्य, कूटनीतिक, राजनीतिक और व्यावसायिक भी हो सकते हैं। अमेरिका व चीन के बीच छिड़ा व्यापार युद्ध इसी कड़ी का हिस्सा है। इन्हें रेडियो, दूर संचार, टेलीफोन या मोबाइल से संप्रेषित किया गया हो तब भी इन तरंगों को उपग्रह पकड़ लेते हैं। विकीलीक्स के संचालक जूलियन असांजे ने तो स्वयं की प्रयोगशाला विकसित करके इस तरह के संदेशों को पकडऩे का सिलसिला जारी रखा हुआ है। बहरहाल अमेरिका, रूस, चीन और अब भारत ने भी अपनी-अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अंतरिक्ष में उपग्रह स्थापित करने और फिर जरूरत पडऩे पर उन्हें नष्ट करने की मिसाइलें तैयार कर ली हैं। इसीलिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पृथ्वी की कक्षाओं में अपने तमाम उपग्रहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्पेस-फोर्स वजूद में ला रहे हैं। भविष्य में भारत और चीन भी यही पहल कर सकते हैं। दरअसल विश्व की महाशक्तियों ने खतरों से भरा परिवेश ही ऐसा रच दिया है कि भारत हो या चीन कोई भी देश अपने सुरक्षा हितों की अनदेखी नहीं कर सकता ? गोया, भारत ने इस मिशन-शक्ति अभियान को अंजाम देकर एक तीर से एक साथ दो निशाने साध लिए हैं। एक तो हमने उपग्रह को मार गिराने की विधि हासिल कर ली, दूसरे बैलिस्टिक मिसाइलों को पकडऩे वाली तकनीक का आधार भी तैयार कर लिया। गोया, सामरिक दृष्टि से अब हम महाशक्ति बन गए हैं।
-प्रमोद भार्गव