जल संरक्षण एवं जल के महत्व जानने की प्रयोगशाला है निर्जला एकादशी - डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी
वेबडेस्क। निर्जला एकादशी व्रत पौराणिक युगीन ऋषि-मुनियों द्वारा पंचतत्व के एक प्रमुख तत्व जल की महत्ता को निर्धारित करता है। उज्जैन के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डॉ मृत्युञ्जय तिवारी के अनुसार जप, तप, योग, साधना, हवन, यज्ञ, व्रत, उपवास सभी अंतःकरण को पवित्र करने के साधन माने गए हैं, जिससे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर और राग-द्वेष से निवृत्ति पाई जा सके।
इस बार 31 मई बुधवार को निर्जला एकादशी है। इस दिन प्रातःकाल से लेकर दूसरे दिन द्वादशी की प्रातःकाल तक उपवास करने की अनुशंसा की गई है। दूसरे दिन जल कलश का विधिवत पूजन किया जाता है। तत्पश्चात कलश को दान में देने का विधान है। इसके बाद ही व्रती को जलपान, स्वल्पाहार, फलाहार या भोजन करने की अनुमति प्रदान की गई है। व्रत के दौरान 'ॐ नमो नारायण' या विष्णु भगवान का द्वादश अक्षरों का मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का सतत एवं निर्बाध जप करना चाहिए। भगवान की कृपा से व्रती सभी कर्मबंधनों से मुक्त हो जाता है और विष्णुधाम को जाता है, ऐसी धार्मिक मान्यता है।
एकादशी व्रत के धार्मिक व वैज्ञानिक फायदे
प्रत्येक एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा – अराधना की जाती हैं. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार निर्जला एकादशी बहुत ही विशेष होती हैं. यदि निर्जला एकादशी को पूरे विधि – विधान से किया जाए तो मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती हैं. इस एकादशी पर गौ माता का दान देना, अन्न, छाता, जूते – चप्पल, आसन, वस्त्र, कमण्डलु तथा मिटटी के कलश में पानी भरकर दान देना बहुत ही शुभ होता हैं तथा इन सभी वस्तुओं को दान देने से पुण्य फल की प्राप्ति होती हैं.
निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व तो है ही इसके साथ – साथ इसका वैज्ञानिक महत्व भी हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन निर्जला उपवास करने से शरीर में नई ऊर्जा का प्रसार होता हैं तथा मनुष्य अपने शरीर पर नियंत्रण बना पाने में सक्षम होता हैं । ऐसा माना जाता हैं कि यदि किसी व्यक्ति से गलती से एकादशी का व्रत भंग हो गया हो तो व्रत के भंग होने का दोष भी निर्जला एकादशी का उपवास रखने से दूर हो जाता है।
कैसे विज्ञान के नजरिए से सर्वश्रेष्ठ है निर्जला एकादशी
हिन्दू वर्ष के बारह महीनों में हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में एक-एक एकादशी तिथि आती है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित है। धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत सभी दोषों और विकारों से छुटकारा देने वाला माना गया है। इस तरह यह इंसान के लिए आत्मरक्षक ही है। यह खासतौर पर वैष्णव व्रत है, किंतु विष्णु उपासक हर धर्मावलंबी इस व्रत को करता है।
दरअसल, एकादशी व्रत मात्र धार्मिक नजरिए से ही नहीं बल्कि व्यावहारिक तौर पर भी मानसिक एवं शारीरिक पवित्रता के लिए भी अहम है। किंतु यह भी देखा जाता है कि कई शिक्षित युवा भी इस संबंध में ज्ञान के अभाव में भारतीय सनातन धर्म से जुडी व्रत परंपराओं की उपेक्षा करते हैं। डॉ तिवारी बताते हैं कि प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों से लेकर देश की आजादी के महानायक महात्मा गांधी भी व्रत-उपवास के महत्व को सिद्ध कर चुके हैं । नई पीढी के लिए यह समझना जरूरी है कि अगर कोई इस व्रत को धर्म या ईश भक्ति की नजरिए से न करें, किंतु निरोग रहने में भी यह व्रत महत्वपूर्ण है। यह मन को संयम रखने के भाव सिखाता है। शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है। इस व्रत से जुड़े वैज्ञानिक पहलू पर गौर करें तो चूंकि चन्द्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने का प्रभाव सभी प्राणियों और वनस्पतियों पर पड़ता है। हिन्दू धर्म पंचांग तिथियों पर आधारित होता है। हर तिथि पर चन्द्रमा की स्थिति सदा एक सी रहती है। इसलिए उसका असर भी शरीर पर वैसा ही पडता है। इसलिए सेहत के नजरिए से ऐसा माना जाता है कि चतुर्थी तिथि से एकादशी के बीच पैदा रोग गंभीर नहीं हो पाते। इस काल में पहले के रोग भी ठीक हो जाते हैं। हर मास में दो एकादशी होती है । इस तरह महीने में आने वाली 2 एकादशी तिथियों के दो दिन आहार संयम रखा जाए तो यह हमारी पाचन क्रिया को मजबूत बनाकर शरीर को सेहतमंद व मन को प्रसन्न रखता है।
उपवास के वैज्ञानिक फायदे
दुनिया भर की संस्कृतियों में उपवास रखा जाता है। इसके कई फायदे हैं। विज्ञान तो इसे बीमारियों के खिलाफ कारगर हथियार भी मान रहा है।
कैसे हुई रिसर्च
जर्मनी के दो प्रतिष्ठित संस्थानों DZNE और हेल्महोल्ज सेंटर के साझा शोध में उपवास संबंधी कई जानकारियां सामने आयी हैं। वैज्ञानिकों ने चूहों के दो ग्रुप बनाये। एक को उपवास कराया और दूसरे को नहीं।
शरीर को फायदा
भोजन के बीच में लंबा अंतराल रखना, यानि एक दिन उपवास रखते हुए सिर्फ पानी पीना। जिन चूहों को ऐसा कराया गया वे पांच फीसदी ज्यादा जिए।
बुढ़ापे की रफ्तार
बुढ़ापे में शरीर की सक्रियता कम हो जाती है। आंख और कान भी कमजोर हो जाते हैं। चाल धीमी पड़ जाती है। वैज्ञानिकों ने बुढ़ापे से जुड़ी 200 समस्याओं पर गौर किया। बुढ़ापे पर उपवास का कोई असर नहीं पड़ता।
ढल जाता है शरीर
शुरू में उपवास करने से शरीर परेशान होता है, लेकिन वक्त के साथ उसे भूखे पेट रहने की आदत पड़ जाती है। 12 घंटे तक कुछ न खाने वाले लोगों के शरीर में ऑटोफागी नाम की सफाई प्रक्रिया शुरू हो जाती है। बेकार कोशिकाओं को शरीर साफ करने लगता है। भूख और उपवास नई कोशिकाओं के निर्माण में फायदेमंद है। ऑटोफागी की खोज के लिए 2016 में जापान वैज्ञानिक योशिनोरी ओसुमी को नोबेल पुरस्कार मिला था।
कैंसर से बचाव
चूहों में भी मौत का सबसे बड़ा कारण कैंसर ही है। वैज्ञानिकों ने कैंसर से जूझ रहे चूहों के भी दो ग्रुप बनाये। एक को व्रत कराये, दूसरे को नहीं। जांच में पता कि भूखे रहने वाले चूहों के शरीर में कैंसर कोशिकाएं धीमी गति से बढ़ीं। उपवास वाले चूहे 908 दिन जीवित रहे। वहीं लगातार खाने वाले 806 दिन।
औषधि है उपवास
उपवास से जीवन लंबा हो सकता है। डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा भी कम हो सकता है। लेकिन उपवास का बुढ़ापे पर कोई असर नहीं दिखा। वैज्ञानिकों के मुताबिक बुढ़ापे की परेशानियां एक प्राकृतिक प्रक्रिया हैं।तुलसीदास जी ने भी मोह को सकल व्याधियों का मूल बताया है। सर्वमान्य तथ्य है कि संपूर्ण ब्रह्मांड व मानव शरीर पंचभूतों से निर्मित है। ये पांच तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश हैं। पृथ्वी व आकाश तत्व हमेशा ही हमारे साथ रहते हैं और हवाई यात्रा के दौरान यदि पृथ्वी से संपर्क छूटता है, तब भी आकाश तत्व सदैव साथ रहता है।
वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि मनुष्य शरीर में यदि जल की कमी आ जाए तो जीवन खतरे में पड़ जाता है। वर्तमान युग में जब जल की कमी की गंभीर चुनौतियां सारा संसार स्वीकार कर रहा है, जल को एक पेय के स्थान पर तत्व के रूप में पहचानना दार्शनिक धरातल पर जरूरी है। निर्जला व्रत में व्रती जल के कृत्रिम अभाव के बीच समय बिताता है। जल उपलब्ध होते हुए भी उसे ग्रहण न करने का संकल्प लेने और समयावधि के पश्चात जल ग्रहण करने से जल तत्व के बारे में व पंचभूतों के बारे में मनन प्रारंभ होता है। व्रत करने वाला जल तत्व की महत्ता समझने लगता है।