अब कौन बिगाड़े तुमरे काज: सुस्वागतम् महाराज: खूब करो जनता के काज!

अब कौन बिगाड़े तुमरे काज: सुस्वागतम् महाराज: खूब करो जनता के काज!
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आज रामजनी और रामकली कंडे थापते हुए अपने आप में मगन होकर आपस में बातें कर रही थीं

वेबडेस्क। काये बिन्ना! तुमने कछु सुनी का ? कल कोऊ कै रओ हतो के जिन सिंधिया जी को कांग्रेस ने बार- बार, कई बार अपमानित करो हतो -- बिनको कछु समझोई नई, बेइ अब राज्यसभा में जाके दिग्गी राजा से भिड़ जेहें । जो तो बड़ो अच्छो हो गओ।

हओ गुंइयां! जे तो भोत ही अच्छो हो गओ। वैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया जी को परेशान करवे वारे अकेले दिग्गी ही नई हते, मुकते हैं, तोय कहां तक गिनाऊं - जे अनाथविकलनाथ, सज्जना, भैन ओझा, यादव, पट्टवारी, अजय सिंह, पप्पू बबुआ, भैन वाड्रा, भूरी काकी और इनके केई लग्गू भग्गू - सबई ने अलग - अलग और मिलके बिनकी घोर उपेक्षा करी। मोय तो लागत है कि जैसे - तैसे जोड़ जुगत करके, बरैया को धकिया के, अपनो पैर जमा के, भले ही दिग्गी भी पोंच तो गए हैं राज्य सभा में पर बिनकी घिग्घी सोऊ बांध देहें सिंधिया जी। अब वे हिंया से हुंआ तक सबसे सबरो हिसाब चुकतो करिहें। काय जू, है के नहीं।

हओ जिज्जी, तुम ऐन सही कै रईं। बिनको जैसो कांगरेस में अपमान और अनदेखी भई बाके घाव ऐसे ई थोड़ी भर जेहें। बे भोत ई भले हैं । केवल अपने चुनाव क्षेत्र की ही नई सभी जगहन की जनता की खूब सेवा करत हैं । बिनके पिताजी माधव राव सिंधिया जी भी भोत अच्छे जननेता हते, वैसेई गुण इनमें भरे हैं। बांके को छोटो लल्लू अखबार बांचतो भओ कै रओ थो कि हो सकत है कि अब महाराज मंत्री बन जेंहें। फिर तो राज्यसभा में दिग्गी जी की घिग्घी बांधत रहें और लोकसभा में जब जेंहें तो अपने पप्पू बबुआ, भूरी काकी, अधीर से ऊ ज्यादा अधीर और दूसरे लोगन से चुन चुन कै बदलो लेहें। वौ जेऊ कै रओ हतो के सिंधिया जी अगर मंत्री बन जेंहें तो भोत अच्छो और सच्चो काम करिहें । काय से के बिनको भ्रष्ट्राचार से कोउ लेनो देनों ना हुईए। सो सब काम ईमानदारी और तेजी से हुईएं। जासे हम गरीब गुरबन को लाभ हो जाएगो। हमारी जिनगानी अच्छी हो जाएगी । बाल बच्चन को भविष्य सुधर जाएगो। कछु पढ़ लिख जेहें तो बेऊ चपरासी, बाबू - अफसर, या कछु और अच्छो काम करिहें।

काए बिन्ना , तुमने अबई बबुआ जी की बात करी सो हमेउ याद आ गई के जई हपता में 19 तारीख को बिनको पचासवो जन्मदिन बिनकी पार्टी वालन ने बड़े धूम-धाम से मनाओ, अखबारन में एक - एक पेज को विज्ञापन दे के। बांके के छोटे लल्लू ने परसों अखबार बांचत समे विज्ञापन पढ़ो तो मेरी तो हंसी छूट गई। बामें छपो हतो - आक्रामकता के साथ दिया परिपक्वता और संयम का परिचय । जाको विश्लेषण करो तो मालुम हुईए के बड़ो अच्छो व्यंग छिपो है जा विग्यापन में तो। परिपक्वता व संयम की बात और पप्पू भैय्या के साथ। जय हो भैया! वैसे ही बिने कोउ गिनत नइ है सीरियसली । आलू से सोना बनाना, वैसे ही लद्दाख के ऊपर हमारी सेना के पास हथियार क्यों नहीं थे यह प्रश्न।

ऐसे भोले भाले पप्पू बबुआ के उम्र के पचास साल का हिसाब बड़ा ही बेहिसाब! - जीवन सारा ......, व्यर्थ गंवाया -- काहे तू राजनीति में समरस न हो पाया -- तेरी गृहस्थी की संभावना है प्रवंचना माया -- किसकी है तुझ पर छाया -- अब तो जाग मेरे भाया -- कहां छुपाई है तमने अपनी लुगाया!! ऐसे ही विग्यापन में एक जगह और लिखो गओ -- विचारों में परिपक्वता और विवादास्पद बयानों से दूरी बनाए रखी । जाए पूरो एक साथ पढ़ो जाए तो लागत है कि जे वाक्य पहले वाले के अनुक्रम में है पर उस वाक्य के एकदम उलट। अपने बबुआ जी ने अपने विचारों में परिपक्वता से सदैव दूरी बनाए रखी है -- यह बात सौ टका सही है। अबई तो बिनकी परिपक्वता की दाढ़ में दूध के दांत उ नई आए भैया। सो बिनते जाकी उम्मीद नहीं करवो ठीक इ है। पर अपने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष के बारे में जे ढिंढोरा पीटवो के अभी जे भईया से परिपक्वता दूर इ है -- का अच्छी बात है?

सही है बिन्ना! बेचारे बबुआ जी भी का करें। बिनके सलाहकार, सिपहसालार यदि दिग्गी राजा जैसे कूटनीति मर्मज्ञ राजनेता हों तो बिनकी परिपक्वता तो आलू से सोना जितनी ही रहेगी ना। बांके को लल्लू वा दिना बड़ी पते की बात कै रओ हतो, कहीं पढ़ी होगी बाने। बात जों है --- मनुष्य बिखरा तो अंदर से है, पर संवारता जिस्म को है।

बबुआ जी ने भी चेहरा मोहरा तो राजीव जी जैसो बना लओ है पर अक्ल और बुद्धि तो हिंआ हुंआ बिखरी पड़ी है । चित्त में स्थिरता नहीं है। सो बिनकी बातें भी दिल के बुल को को नई छू पात । हमाई तो बिनके लाने जे ई दुआ है भईया कि

वो हुनर तू साध, तेरे होने को होना करे....

तू छुए माटी तो उसको भी खरा सोना करे......




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