उड़ती पतंग सा था वो, कहां गया उसे ढूंढ़ो...
ग्वालियर। जिंदगी में अगर कुछ सबसे ज्यादा इंपॉर्टेन्ट है तो वो है खुद की जिंदगी.....तुम्हारा रिजल्ट डिसाइड नहीं करता है कि तुम लूजर हो कि नहीं, तुम्हारी कोशिश डिसाइड करती है......दूसरों से हारकर लूजर कहलाने से कहीं ज्यादा बुरा है, खुद से हारकर लूजर कहलाना.......हम हार जीत, सक्सेस फेलियोर में इतना उलझ गए हैं कि जिंदगी जीना भूल गए हैं..........मन की गइराइयों में उतरने वाले अपने इन संवादों से हमें सकारात्मकता, जीवटता और जुझारुपन सिखाने वाले सुशांत सिंह राजपूत आज अवसाद से हार गए। वो हाफ इंजीनियर जो आधी पढ़ाई करके सपनों के शहर मंुबई आया और अपने सपनों की पतंग को उड़ाता चला गया। पहले टीवी पर छाया और फिर 100 करोड़ क्लब की फिल्म तक पहुंचा। 34 साल की उम्र में यह केवल शुरुआत थी हंसमुख उत्साही अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की लेकिन ये क्या। जो बहती हवा सा था, जिसका सिने करियर उड़ती पतंग जैसा लग रहा था, जाने आज कहां चला गया वो।
कोरोना महामारी के इन दिनों में अवसाद में तो हम सिनेप्रेमी इरफान के चले जाने से भी थे। ऋषि कपूर का गुजर जाना हमारे लिए दर्दनाक रहा था मगर ये दोनों अभिनेता दुनिया से विदा होकर भी जीना सिखा गए थे। दोनों ने पर्दे के नायक की तरह ही कैंसर से अंतिम सांस तक जंग लड़ी मगर ये क्या हुआ आज। बिहार से निकले सुशांत सिंह राजपूत जो हमेशा जीतना जानते थे वो यूं हार कैसे गए। कोई सपने में भी नहीं सोच सकता कि अपनी अंतिम फिल्म छिछोरे में जो नायक जिंदगी के लिए लड़ने का जज्बा सिखा रहा हो वो जीवन को ऐसे हार जाएगा। याद कीजिए सुशांत सिंह की एम एस धोनी अ अनटोल्ड स्टोरी फिल्म को। इस फिल्म ने हम सबको बहुत कुछ अच्छा सिखाया है। पर्दे पर मनोरंजन करके भी यह फिल्म देश भर को बता गयी है कि साधारण घर परिवार के बेटे किस जज्बे से भारत में महेन्द्र सिंह धोनी बना करते हैं। पूर्व भारतीय किक्रेट टीम कप्तान के संघर्ष भरे दिन कितनों ने देखे होंगे मगर बड़े बड़े बालों और जुझारु मुस्कुराते चेहरे के साथ सुशांत हम सबको वो अनदेखा संघर्ष दिखा गए। यह फिल्म करोड़ों आशाओं की कहानी थी। यह सिखा गई कि दो कमरों के क्वार्टर में रहने वाले मां बाप का बेटा भी बड़ा सपना देख सकता है। नौकरी करते हुए भी अपने सपनों को जी सकता है और उसके सपने उसके जुनून के पंखों से तमाम मुश्किलों को हराकर दुनिया भर में रोशन हो सकते हैं। सुशांत ने भी असल जिंदगी में ऐसे सपने जिये।
बिहार के पूर्णिया जिले का यह बेटा दिल्ली पढ़ने आया तो हमेशा थ्री इडियट वाले रणछोरदास चांचड़ की तरह आगे रहा। दिल्ली काॅलेज आॅफ इंजीनियरिंग के प्रतिष्ठित एंट्रेस में देश भर में सातवें नंबर पर पहुंचा। सुशांत ने डीसीई में ही मैकैनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया मगर उनके सपनों की उड़ान ने दिशा बदल दी थी। वे पहले डांस और थियेटर की ओर आकर्षित हुए और धीरे धीरे भविष्य के इस होनहार इंजीनियर कोे अभिनय जगत ने चेहरे मोहरे और उम्दा कद काठी के चलते अपनी ओर खींच ही लिया।
वे किस देश में है मेरा दिल से सीरियलों में आए और अगले ही सीरियल पवित्र रिस्ता से दर्शकों में चमक गए। पढ़ाई के बाद वे अभिनय में भी अव्वल निकले और जल्द ही काय पो छे फिल्म से फिल्मों में आए। सुशांत में हिन्दी सिनेमा ने ऐसा नायक देखा जो लवर बाॅय की फ्रेम में खूब फबता था। लंबे समय से हिन्दी सिनेमा अस्ताचल की ओर बढ़ रही खान त्रयी के समानांतर रोमांटिक हीरो की लगातार तलाश कर रहा है। पिछले कई सालों तक फिल्मों में मौके कुछ इस तरह तय होते रहे कि शाहरुख और सलमान के साथ दूसरे अभिनेता प्रेम विषयक फिल्मों में स्थापित नहीं हो सके। शाहिद कपूर के बाद सुशांत सिंह राजपूत इसी खाली जगह की ओर तेजी से बढ़ रहे थे।। सुशांत को पीके में अनुष्का के साथ शाॅर्ट रोमांस के बाद अगला मौका उन्हीं आदित्य चोपड़ा ने दिया जिन्होंने शाहरुख खान को हिन्दी सिनेमा का राज बनाया। आदित्य सुशांत के लवर बाॅय फेस और चाॅकलेटी चेहरे की ताकत पहचान गए थे जिसके बाद उन्होंने परिणीति चोपड़ा और वाणी कपूर के साथ रोमांटिक किरदार में पेश किया। निश्चित ही सुशांत का मुस्कुराता भावपूर्ण चेहरा प्रेम आधारित फिल्मों के लिए बेहतर विकल्प था। फिल्म एम. एस. धोनी द अनटोल्ड स्टोरी भले ही बायोपिक रही मगर फिल्म में दिशा पटानी के साथ प्रेम संवादों में वे पसंद किए गए। केदारनाथ में भी सुशांत नवोदित सारा अली खान के साथ प्रेम कहानी के साथ सामने आए। हिन्दी सिनेमा को यह सौम्य चेहरे वाला मुस्कुराता हीरो भाने लगा था मगर ये यात्रा आज थम गई। जो युवा नायक खुशमिजाज चेहरे से लोकप्रिय हो रहा था वो न जाने कौन से गमों के अंधेरे में खो गया। अलविदा सुशांत तुम्हारा यूं जाना दिल तोड़ गया। काश तुम अपनी एम एस धोनी फिल्म की तरह असल जिंदगी में हर अवसाद से संघर्ष करते और आज हम सबके बीच होते।