शिक्षा के आधुनिक स्वरूप से बदलेगी कक्षा की तस्वीर
वेबडेस्क। नई शिक्षा नीति नए कलेवर और बदले तेवर के साथ हमारे सामने है। बदले रूप में शिक्षा मंत्रालय मानव संसाधन मंत्रालय का स्थान ले चुका है। इस नई व्यवस्था के दूरगामी परिणामो का आंकलन समय और काल के परिपेक्ष्य में समीचीन होगा।नए प्रयोग के साथ प्रस्ताव के प्रत्येक हिस्से में संतुलन साधने की कोशिश की गई है जो कहीं सामयिक तो कहीं असमीचीन प्रतीत होती है। वर्षों से इस दिशा में नई संभावनाएं तलाशी जा रही थी जिसे अंततः 1986 के बाद अब अमलीजामा पहनाया गया ।नई नीति में समग्र डिजिटल शिक्षा पर जोर दिया गया है और तय समय-सीमा इसे पूरा करने के संकल्प को दोहराया गया है।हाल के दिनों में वैश्विक महामारी के चलते उपजे संकट ने ई -पाठ्यक्रम और डिजिटल शिक्षा के महत्व को बढ़ाया है।
नई शिक्षा नीति में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के वैकल्पिक साधनो की तैयारियों को सुनिश्चित करने के लिये स्कूल और उच्च- शिक्षा दोनो की ई-शिक्षा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एमएचआरडी में डिजिटल अवसंरचना,डिजिटल कंटेंट और क्षमता निर्माण के उद्देश्य के लिये एक समर्पित इकाई बनाने का प्रस्ताव है।उपयुक्त बदलावों की सिफारिश के आलोक में यदि स्कूलों में मौज़ूदा बुनियादी सुविधाओं को देखें तो इसे शत-प्रतिशत हासिल करने का लक्ष्य कपोल- कल्पित प्रतीत होता है।
भारत जैसे देश में जहां आज भी दो करोड़ बच्चे स्कूलों से दूर हैं और 18000 स्कूल आज भी बिना छत के या तो पेड़ या अस्थाई टेंटो में लगाए जाते हैं। और जहां ब्लॉकबोर्ड जैसे शिक्षा के अत्यावश्यक बुनयादी उपकरण तक मयस्सर ना हो वहां समग्र डिजिटलाइजेशन की बात दूर की कौड़ी नजर आती है विडम्बना है की जहां एक ओर नई शिक्षा नीति के मसौदे में भव्य परिसर और अधिक संख्या वाले स्कूलों पर जोर दिया गया है वहीं देश के विभिन्न राज्यों में बड़ी संख्या में सरकारी स्कूल बंद हो रहे है। दिसंबर 2008 में देश के सभी 6 से 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा का मौलिक हक़ दिया गया था लेकिन सरकारी आंकड़ों के हवाले से यह तथ्य छिपी नहीं है कि देश के विभिन्न राज्यों में बच्चों की एक बड़ी तादाद है जो प्राथमिक शिक्षा से वंचित है ।
एक आंकड़े के अनुसार देश में 1.5 लाख स्कूल सरकारी एवं निजी है ।और इनमें करीब 7 लाख कक्षायें है । वहीं कॉलेज एवं विश्वविद्यालय स्तर पर 2 लाख कक्षाएं है।इस प्रकार देश में कुल 9 लाख कक्षाएं हैं। करीब 60 साल पहले चलाए गए ब्लैकबोर्ड अभियान को अब तक मुकाम पर नहीं पहुचाया जा सका है ऐसे में बखूबी अन्दाजा लगाया जा सकता है की समग्र डिजिटलाइज़ेशन का अंज़ाम क्या होगा ।
उल्लेखनीय है कि देश में अनेक राज्यों के सरकारी स्कूलों में स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी बिजली नहीं पहुंची है।इस समय देश में 62- 81% स्कूलों में ही बिजली पहुंची है । मार्च 2017 तक देश के 37% से अधिक सरकारी स्कूल बिजली के कनेक्शन से दूर हैं ।कई स्थानों पर बिजली के बिल मिड-डे मील के फंड से देने की बात सामने आयी है। कुछ राज्यों के शिक्षा विभागों के पास पैसे ना होने के कारण स्कूलों के प्रबंधकों द्वारा छात्रों को बिजली का बिल भरने के लिए विवश करने के भी मामलें है।
जहां स्कूली इमारत के अभाव में बच्चे शौचालय में बिठा दिए जाते हो वहां डिजिटलाइजेशन की कल्पना बेमानी लगती है। इन स्कूलों में स्वच्छ पानी, शौचालय और सतत बिजली आपूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाओं का नितांत आभाव है। अनेक स्कूलों में तो बच्चों के बैठने के लिए टाट, ब्लैकबोर्ड व अध्यापकों के लिए कुर्सियां और मेज तक नहीं है।एक तरफ स्कूलों में स्मार्ट क्लास लगाने और बच्चों को टैबलेट देने की बात कही जा रही है तो दूसरी ओर देश के एक चौथाई स्कूलों में ब्लॉकबोर्ड ही नहीं । गैर सरकारी संस्था चाइल्ड रिलीफ ऐण्ड यू( क्राई) के सर्वे 'लर्निंग ब्लॉक्स' के मुताबिक भारत के प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल एक शिक्षण संस्थान की बुनियादी आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते । देश के 44% और पूर्वी भारत के करीब 74% स्कूलों में बिना बिजली के पढ़ाई हो रही है ।ऐसे में बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा देने की संभावना खत्म हो जाती है और डिजिटलाईज़ेशन की बात कपोल कल्पित नज़र आती है।कान्वेंट स्कूलों की तर्ज़ पर सरकारी स्कूलों के बच्चें स्मार्ट क्लास में पढ़ पाएंगे इसकी संभावना कम है ।प्रस्ताव में विजुअल क्लास की मदद से बच्चों को रोचक ढंग से पढ़ाया जाएगा ताकि बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि तो जगे ही साथ ही स्कूलों की ओर से उनका आकर्षण भी कम ना हो । नई शिक्षा नीति में इसका पूरा ख्याल रखा गया है।
जाहिर है सिर्फ बड़े-बड़े मसौदो से बात बनने वाली नहीं ।स्कूलों में बुनियादी स्तर पर द्रुत गति से कार्य करने की आवश्यक्ता है। इसके लिये संरचनागत ढांचों को तो सुधारना ही होगा,स्कूलों में बुनियादी व ज़रूरी सुविधायें भी मुहैया करानी होगी। सतत संकल्प ओरऔर निष्ठा से ही इस ओर अग्रसर हुआ जा सकेगा। दुर्गम इलाकों के स्कूलों में बिजली पहुचाने के काम को प्राथमिकता देनी होगी ताकी समग्र डिजिटलाज़ेशन की दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा।
एक मज़बूत निगरानी प्रणाली की भी दरकार होगी जिससे काम निर्बाध गति से हो। साथ ही कुशल और प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति से ई -लर्निग के प्रोग्राम को सुगमता से आगे बढ़ाया जा सकेगा। इसके लिए जमीनी स्तर पर एक व्यापक,दूरदर्शी और प्रभावी खाका तैयार करना होगा जिससे डिजिटलाईज़ेशन की राह को सूदूर इलाकों में आसन बनाया जा सके।इसे एक आन्दोलन का रूप दिये बगैर यहाँ के स्कूलों को स्मार्ट स्कूल की दिशा में आगे नहीं बढ़ाया जा सकेगा।