पुलिस आयुक्त प्रणाली : छवि औऱ क्षमता साबित करने का मौका भी

पुलिस आयुक्त प्रणाली : छवि औऱ क्षमता साबित करने का मौका भी
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- डॉ. अजय खेमरिया
मप्र में लागू हुई पुलिस कमिश्नर प्रणाली पर विशेष

आखिरकार मप्र के दो सबसे बड़े शहरों में आज से पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू हो गई है। 21 नबम्बर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस आशय की घोषणा की थी और आज इसकी अधिसूचना जारी कर दी गई।इस निर्णय के अपने प्रशासकीय निहितार्थ भी है क्योंकि महज 19 दिन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपनी घोषणा को अमल में लाकर दिखा दिया है।यह मप्र में शासन और राजनीति के लिए भी एक अहम बदलाब के रूप में देखा जाना चाहिए।देश भर में इस प्रणाली के विरुद्ध अखिल भारतीय एवं राज्य प्रशासनिक सेवाओं के अफसर समवेत स्वर में लामबंद होते रहे है। चुनींदा मुख्यमंत्री ही इस खेमेबंदी के दबाब को दरकिनार कर पुलिस आयुक्त प्रणाली को लागू कर पाएं है।जाहिर है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी सॉफ्ट छवि के उलट इस मामले में दृढ़ इच्छाशक्ति को प्रदर्शित कर आयरन फ्रेम ब्यूरोक्रेसी को भी स्पष्ट सन्देश देनें का काम भी किया है।इसलिए शासन और राजनीतिक कार्य सँस्कृति के मामले में इस निर्णय की गूंज औऱ प्रभाव दूर तक सुनाई देगा।जिस तेजी के साथ इस घोषणा पर मुख्यमंत्री ने अमल कराया है उसका सन्देश साफ है कि मुख्यमंत्री अपनी चौथी पारी नए तेवर के साथ आगे बढाने वाले है।याद रखना होगा कि 21 नबम्बर को मुख्यमंत्री की घोषणा के साथ ही प्रशासनिक सेवा के अफसरों ने इसके विरुद्ध खेमेबंदी शुरू कर दी थी।राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों का प्रतिनिधिमंडल गृह सचिव के समक्ष अपनी आपत्ति भी दर्ज करा आया था और आईएएस मीट का आयोजन निरस्त किये जाने को भी इस नए प्रयोग के विरोध के साथ जोड़ा गया था।

शिवराजसिंह चौहान अपने पूर्ववर्ती कार्यकाल में दो बार औऱ कुल जमा प्रदेश में 6 बार इस सिस्टम को लागू करने की कवायद अर्जुन सिंह ,दिग्विजयसिंह जैसे मुख्यमंत्री कर चुके थे लेकिन वल्लभ भवन की ताकतवर लॉबी के आगे यह घोषणाएं अमल में आने से पहले ही खत्म होती रही।जाहिर है मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने आज इसे जमीन पर उतारने का काम कर दिया है तो यह कोई सामान्य घटनाक्रम नही है और इसके लिए उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति का अभिनंदन किया जाना चाहिये।बेशक यह प्रयोग किसी क्रांतिकारी बदलाव का वाहक नही है इसके बाबजूद भारतीय लोक प्रशासन में यह उस स्टील फ्रेम अफसरशाही के प्रभुत्व को कम करने का कारक तो है ही जिसे लोकशाही में स्वाभाविक औऱ वास्तविक शासक कहा जाता रहा है। यह आईपीएस कैडर के आईपीएस अफसरों की भी क्षमताओं औऱ निष्ठा को प्रमाणिकता हांसिल करने का अवसर है जिन्हें अपने अखिल भारतीय संवर्ग औऱ समान चयन प्रक्रिया के बावजूद प्रशानिक दक्षता औऱ जनोन्मुखी होने के मामले में कमतर समझा जाता रहा है।पुलिस की बदनुमा औऱ संवेदनशून्य छवि को बदलने का अवसर भी मप्र के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने इस प्रयोगधर्मिता के बहाने पुलिस को उपलब्ध कराया है।मप्र के दोनों शहरों में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर के अफसरों को आयुक्त की कमान संभालनी है जो आमतौर पर सीधी भर्ती के आईपीएस अफसर ही होते है ऐसे में यह नई व्यवस्था को परम्परागत पुलिसिया छवि से बाहर निकालने का जिम्मा भी अब पुलिस मुख्यालय के कंधे पर आ गया है।आज जारी अधिसूचना के अनुसार भोपाल कमिश्नर के अधीन दो एसीपी डीआईजी रैंक एवं 8 डिप्टी कमिश्नर एसपी रैंक,10 अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर एडशीनल एसपी रैंक एवं 33 सहायक पुलिस आयुक्त डीएसपी रैंक के काम करेंगे।भोपाल नगरनिगम के बाहर ग्रामीण व्यवस्था एसपी भोपाल ग्रामीण के जिम्मे होगी।इंदौर शहर में भोपाल की तुलना में 2 अतिरिक्त पुलिस आयुक्त होंगे लेकिन सहायक आयुक्त डीएसपी रैंक के 3 पद कम यानी 30 लोगों की पदस्थापना होगी।

मप्र के इस मॉडल में गृह विभाग ने दंड संहिता की धारा,151, 107/16,144,133,पुलिस एक्ट,राज्य सुरक्षा कानून,कॉन्फिडेंशियल एक्ट,देह व्यापार,मोटर व्हीकल एक्ट,गुंडा एवं गैंगस्टर एक्ट,पशु क्रूरता अधिनियम,जिला बदर,जैसे मामलों में अब पुलिस की एकमेव आधिकारिता रहेगी।हालांकि नगर निगम भवन अनुमति,शस्त्र लाइसेंस,विस्फोटक भंडारण, जैसे अनेक मामलों को पुलिस आयुक्त प्रणाली के तहत प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर पुलिस को दिया जाता है लेकिन इन मामलों में फिलहाल विस्तृत ड्राफ्ट सामने आने पर ही स्थिति स्पष्ट होगी।बताया जाता है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 13 दिसम्बर को इस आशय का ब्यौरा प्रधानमंत्री के साथ काशी में होने वाली बैठक में दे सकते है।अभी तक कानून व्यवस्था के साथ जुड़े इन मामलों में पुलिस को कलेक्टर एवं एसडीएम पर प्रतिबंधात्मक एवं दूसरी कारवाई के लिए निर्भर रहना पड़ता था।अब नई व्यवस्था में पुलिस खुद निर्णय लेगी।बुनियादी सवाल औऱ प्रशानिक संवर्ग की आपत्तियों के साथ यह तब तक बना ही रहेगा जब तक पुलिस कमिश्नर व्यवस्था मौजूदा व्यवस्था से बेहतर नतीजों देनें का काम करेगी।वरन पुलिस जनविश्वास की कसौटी पर तो राजस्व अफसरों की तुलना में पहले ही फिसड्डी है साथ ही यह भी सर्वविदित है कि राजनीतिक दबाब में निर्दोष को अपराधी बनाने का काम भी हमारी पुलिस बखूबी करना जानती है।ऐसे में मप्र पुलिस के आला अफसरों के सामने यह एक बेहतरीन अफसर है अपनी चयन प्रक्रिया को प्रामाणिक साबित करने का।

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