संघ कार्यकारी मंडल बैठक : देश की इतनी चिंता करने वाला संगठन फासिस्ट नहीं हो सकता
संघ कार्यकारी मंडल बैठक
भुज। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की गुजरात के भुज में आयोजित बैठक से निकले संदेश को तटस्थता से समझने की आवश्यकता है। बैठक में संघ के कार्यों की दृष्टि से 45 प्रांतों व 11 क्षेत्रों के संघचालक, कार्यवाह, प्रचारक, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य तथा कुछ विविध संगठनों के अखिल भारतीय संगठन मंत्रियों सहित 357 प्रतिनिधि उपस्थित रहे। हमारे देश में अनेक राजनीतिक दलों से लेकर, एक्टिविस्टों व पत्रकारों और बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग हमेशा संघ को विरोधी दृष्टिकोण से देखता और विचारता है और उनके व्यवहार में कई कारणों से बदलाव की संभावना अति क्षीण है। कुछ मुद्दों और विचार के स्तर पर मतभेद हो सकते हैं। आप यह सोचेंगे ही नहीं कि 98 वर्षों से सक्रिय संगठन धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए भारत से विश्व के अनेक देशों तक स्वयं या अपने अनुषांगिक संगठनों के साथ पहुंचा है तो उसमें अवश्य ही सकारात्मक पहलू होंगे आप सच्चाई तक नहीं पहुंच सकते। ऐसा नहीं होता तो जिस तरह कार्यकारी मंडल और उसके पूर्व की संघ की बैठकों से देश और समाज के लिए काम करने की ध्वनियां बाहर आईं कम से कम उसकी प्रशंसा नहीं तो समर्थन अवश्य किया जाता। पिछले एक वर्ष के संघ की अखिल भारतीय बैठकों और कार्यक्रमों में पारित प्रस्तावों और योजनाओं को देखें तो सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह नजर आती है कि वे यह निश्चय करते हैं कि हमें क्या करना है न कि सरकार यह करे। यही संघ को अन्य अनेक संगठनों से बिल्कुल अलग करता है। यद्यपि कार्यकारी मंडल में कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ किंतु संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले द्वारा पत्रकार वार्ता में दिए गए वक्तव्यों से वर्तमान एवं भावी कार्यक्रमों की स्पष्ट रूपरेखा मिलती है।
वास्तव में इसमें ऐसी कई बातें हैं जिनका देश के दूसरे संगठनों को भी संज्ञान लेना चाहिए। उदाहरण के लिए होसबोले ने कहा कि देशभर में सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा की दृष्टि से सीमा जागरण मंच के माध्यम से इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा, सुरक्षा, स्वावलंबन, सहित नागरिक कर्तव्य के संबंध में प्रयास किए जाएंगे और इस कार्य को अधिक गति से आगे बढ़ाया जाएगा। देश के अनेक सीमावर्ती क्षेत्र कई कारणों से ऐसी सामान्य जीवन की समस्याओं से जूझते रहे हैं। सरकार भी अपने स्तर से सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों के सामाजिक आर्थिक विकास एवं आम समस्याओं के समाधान की कोशिश कर रही है। यह पर्याप्त नहीं है जो सुरक्षा के लिए भी जोखिम भरी है। सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थानीय नागरिक एवं सुरक्षा तंत्र के साथ सामंजस्य बढ़ाने के लिए भी विशेष प्रयत्न किये जाने की बात उन्होंने कही। जब आप धरातल पर काम करते हैं आपके पास कई प्रकार की सूचनाओं अपने आप आती हैं,उससे संबंधित सरकारी विभाग तक पहुंचने से उनका समाधान होता है और सुरक्षा भी सशक्त होती है। देश की चिंता करने वाले किसी संगठन की यही उपयुक्त भूमिका हो सकती है। उन्होंने अन्य संगठनों की तरह इसके लिए सरकार और प्रशासन से कोई विशेष मांग नहीं की। यानी संगठन अपने स्तर से इस दिशा में काम करेगा। स्वाभाविक ही उसमें सरकारी सहयोग मिल सकता है तो लिया जाएगा। सरकार को केंद्र में रखकर कोई योजना नहीं बनी है। संघ शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ रहा है जिसकी दृष्टि से उसकी बैठकों में कुछ न कुछ बातें सामने आती है। शताब्दी वर्ष में सामाजिक समरसता, ग्राम विकास, पर्यावरण संरक्षण, गौ-सेवा एवं परिवार प्रबोधन जैसे विषय आग्रहपूर्वक समाज के समक्ष रखने का ही कार्यक्रम है। सामाजिक समरसता के कार्यक्रम में स्वयंसेवक समाज को जोड़ने का अभियान चला रहे हैं तो परिवार प्रबोधन के द्वारा परिवारों को सांस्कृतिक मूल्यों के साथ आवद्ध रखने का लक्ष्य है। इसी तरह पर्यावरण रक्षा के कई कर्मों में वृक्ष लगाने और पॉलिथीन के उपयोग को कम करने तथा जल संरक्षण पर फोकस किया जा रहा है। राजस्थान में संघ दृष्टि से जोधपुर प्रांत , जो प्रदेश का एक तिहाई हिस्सा है, उसमें संघ के कार्यकर्ताओं ने 14,000 किमी यात्रा कर 15 लाख पेड़ लगाए। कर्नाटक में सीड बॉल पद्धति से एक करोड़ पौधे लगाने के लक्ष्य पर काम हो रहा है। जो संगठन ऐसे कार्यों के लिए अपने स्वयंसेवकों को प्रेरित करता है और शताब्दी वर्ष में भी इसे ही आगे बढ़ता है उसे आप किस श्रेणी में रखेंगे? कोई फासिस्ट या सांप्रदायिक संगठन इस तरह के कार्यक्रम और अभियान नहीं चला सकता।
लव जिहाद भारत में अब एक बड़ा मुद्दा हो चुका है और स्वभाविक ही संघ उस पर काम कर रहा है। किंतु जब लड़कियां उन संबंधों से बाहर आती हैं उनमें से अनेक परिवार ही उन्हें स्वीकार नहीं करते। संघ महिलाओं के पुनर्वास पर काम कर रहा है। विरोध या मुकदमे से आप किसी को मुक्त करा देंगे लेकिन आगे उनकी जिंदगी कैसे चले यह महत्वपूर्ण विषय है। संघ इस पर काम कर रहा है तो निश्चय ही आने वाले समय में ऐसी लड़कियों और महिलाओं के अंदर असुरक्षा बोध नहीं रहेगा। संघ की एक विशेषता समय-समय पर अपने कार्यों और गतिविधियों की समीक्षा तथा उनमें मूल्य लक्ष्य का ध्यान रखते हुए आवश्यक संशोधन और बदलाव करना है। संघ के प्रशिक्षण वर्गों में बदलाव इसी का प्रमाण है। जैसा दत्तात्रेय होसबोले ने बताया अब हर आयु वर्ग के लिए अलग-अलग पाठ्यक्रम होंगे। संघ के कार्यकर्ता समाज के सभी क्षेत्रों में काम कर रहे हैं इसलिए परंपरागत बौद्धिक और शारीरिक के अतिरिक्त उनकी रुचि के अनुरूप क्षेत्र से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाएगा। तत्काल यह सकारात्मक बदलाव दिखता है। इसका अर्थ है कि संघ ऐसे कार्यकर्ताओं का समूह तैयार करने की कोशिश कर रहा है जिनमें हर क्षेत्र का आवश्यक व्यवहारिक ज्ञान और कार्य करने का अनुभव वाले हों। स्वाभाविक ही ऐसे कार्यकर्ताओं की संख्या जितनी बढ़ेगी संघ की पहुंच उतने ही परिवार और लोगों तक होगी।
जैसा हम जानते हैं 22 जनवरी, 2023 को राम जन्मभूमि मंदिर में श्रीराम की मूर्ति प्रतिस्थापित होने वाली है। मंदिर निर्माण आंदोलन में संघ की प्रमुख भूमिका रही है, इसलिए यह अवसर उसके लिए संपूर्ण भारत और विश्व भर में फैले हिंदुओं को इससे भावनात्मक रूप से जोड़ने का है। उसके लिए स्वयंसेवक 1 से 15 जनवरी तक अधिक से अधिक परिवारों तक पूजित अक्षत और श्रीराम की तस्वीर लेकर जाने वाले हैं। श्री राम मंदिर संबंधी संघ के विचारों को देखें तो साफ हो जाएगा कि यह केवल एक मंदिर का नहीं बल्कि भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आंदोलन था। श्रीराम को आदर्श मानकर भारत के लोग जीने और काम करने की प्रेरणा लें यह संदेश कायम रखने की यह कोशिश है।
कार्यकारी मंडल से निकले संदेशों और कार्यक्रमों की वस्तुनिष्ठ समीक्षा करें तो जिस तरह का संदेहजनक माहौल संघ को लेकर एक बड़ा वर्ग बनाता है वह निराधार साबित हो जाएगा। बनाई जा रही धारणाओं के विपरीत राजनीति का कोई बिंदु नहीं तथा विरोधियों के प्रति किसी तरह के विरोध का वक्तव्य भी नहीं। बड़े और दुरगामी लक्ष्य से काम करने वाले संतुलित संगठन का यही चरित्र हो सकता है। आप विरोधियों को प्रत्युत्तर देने या उनसे संघर्ष में उलझ गए तो फिर लक्ष्य बाधित हो जाता है। ये सब थे वो भीमैं ये में में भी में भी बड़ी सी ये ये सब कुछ भी थे ये थे उसके थे ये सब ही ये सबअन्य संगठन भी संघ के इस आचरण को चरित्र में अपना लें तो पूरे देश का माहौल सकारात्मक बनेगा तथा अनावश्यक तनाव और टकराव में कमी आएगी। विचारधारा के स्तर पर आपको लगता है कि संघ से सहमति नहीं हो सकती तो भी उसे समझिए, अपनी असहमति व्यक्त करिए किंतु दुश्मनी, घृणा और जुगुप्सा के व्यवहार से बाहर निकलिए।