संसार में बढ़ती "हिंदी" की लोकप्रियता

संसार में बढ़ती हिंदी की लोकप्रियता
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डॉ. दिग्विजय कुमार शर्मा, साहित्यकार - शिक्षाविद, आगरा

सांसारिक दृष्टि से लोगों के मध्य सम्प्रेषण के लिए शब्द ही माध्यम होते हैं। लोगों को जोड़ने के लिए संचार ही एक बहुस्तरीय गतिविधि है। जनसंचार की इन सभी दिशाओं में सम्प्रेषण को सफलता देने के लिए सारी संयोजना भाषा करती है। भाषा के बिना जनसंचार का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता, चाहे माध्यम कुछ भी हो। इसीलिए जनसंचार के सभी संसाधनों के लिए हर युग में किसी न किसी भाषा का उपयोग अनिवार्यतः होता आया है। भाषा ने जनसंचार के कार्य को सुगम बनाया है। आकर्षण प्रदान किया है और विस्तार भी दिया है।

जनसंचार माध्यमों में हिन्दी ने एक ओर हिन्दी को न जाने कितने व्यापक भू-भाग तक फ़ैलाया है तो दूसरी ओर हिन्दी भाषा की संरचना और प्रयुक्ति में कई करवटे उपस्थित की है। संचार माध्यमों की हिन्दी न तो सामान्य बोलचाल की हिन्दी है और न सर्जनात्मक स्तर पर उपयोग में आने वाली काव्य-भाषा है। वह निजी और सार्वजनिक उपक्रमों में प्रयुक्त होने वाली शुष्क राजभाषा भी नहीं है। संचार माध्यमों की हिन्दी अपने माध्यम विशेष के प्रति ईमानदार भाषा है। यही कारण है कि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में भाषा को प्रयोग करते समय प्रयोक्ता को इस बात का ध्यान रखना होता है कि उसे किस माध्यम के लिए भाषिक संप्रेषण का लक्ष्य प्राप्त करना है। निश्चय ही रेडियो की हिन्दी और पत्रकारिता की हिन्दी में अन्तर है। विज्ञापन की हिन्दी और पत्रकारिता की हिन्दी में अन्तर है। सड़कों पर नजर आने वाले पोस्टरों के विज्ञापन और आकाशवाणी के विज्ञापन में अन्तर है। कम्प्यूटर और माइक्रोचिप्स के इस दौर में जनसंचार माध्यमों की भाषा के रूप में हिन्दी ने अपने समय विकसित किया है। यही कारण है कि अधिक मौलिकता और उसके स्तर पर अनुवाद में हिन्दी की असीम संभावनाएं हैं। आजतक जितने भी प्रयोग जनसंचार में हिन्दी के हुए हैं, या हो रहे हैं, और इन सब में हिंदी व्याकरणिक ध्वनि प्रक्रियात्मक व्यवस्थाओं एवं रचनाओं का समावेश संप्रेषण के लिए आ रहा है। इलेक्ट्रोनिक, कम्प्यूटर, तारलेखी, तारमुद्रक, अदालत, न्यायालय, निर्वाचन आदि में हिन्दी शब्दों विपुल प्रयोग रहा है। आकाशवाणी की हिन्दी जनसामान्य की भाषा होती है। दूरदर्शन तो सभी दृश्यों को दिखाकर विधि, बैंक, क्रीड़ा, स्वास्थ्य कृषि आदि क्षेत्रों में हिन्दी शब्दावली का प्रयोग अंग खूब करे तो इसे जनसामान्य अपने प्रयोग में लाने लगेगा।

अत्यधिक जनसंचार में सामान्य भाषा का ही प्रयोग होता है। संचार आज की एक प्रवृत्ति है। समस्त प्राणिजगत संचार की लम्बी नैसर्गिक श्रृंखला से आबद्ध है। आज जनसंचार के जिसने माध्यम हैं। सबमें कुछ न कुछ भेद हैं। एक दूसरे पर निर्भर रहने वाले लोग भी हैं। कोई समाचार पढ़ना पसंद करता है, तो कोई दूरदर्शन से समाचार देखना सुनना पसंद करता है। साधनों की उपलब्धता के कारण भिन्न-भिन्न रुचियों एवं शैलिया है। आज 'मीडिया मिक्स' या माध्यम सम्मिश्रण का जनसंचार का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है। संचार माध्यमों की हिन्दी आज कई भाषाओं के प्रभाव से प्रभावित है। विशुद्ध हिन्दी ही बहुत कम माध्यमों में है। दृश्य एवं श्रव्य-माध्यमों में हिन्दी की विकास यात्रा बड़ी लम्बी है। हिन्दी के इस देश में जहाँ की जनता गाँव में बसती है, हिन्दी ही अधिकांश लोग बोलते-समझते हैं। इन माध्यमों से हिन्दी विकसित एवं प्रचलित हुई है। ध्वनि संरचना, शब्द-संरचना में उपसर्ग-प्रत्य सन्धि-समास, पद-संरचना, वाक्य सरचना आदि में कुछ मानक प्रयोग और कुछ परिचित प्रयोग इन दृश्य तथा माध्यमों में हैं।

अगर देखा जाय तो अनेक हिन्दी संस्थान, सिनेमा, समाचार पत्र, पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकें, वाणिज्य व्यवसाय आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जो हिन्दी की विकास यात्रा में सक्रिय रहे हैं। नागरी प्रचारिणी सभा, हिन्दी साहित्य सम्मलेन, अखिल भारतीय हिंदी महासभा, हिन्दुस्तानी अकादमी, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, बंगीय हिन्दी मण्डल आदि अनेक संस्थाएं हिन्दी को दृश्य एवं श्रव्य माध्यमों से सबल बनाती है। हिन्दी में इन माध्यमों का और इन माध्यमों में हिन्दी का बहुत बड़ा महत्व रहा है। मुख्य रूप से हिन्दी जो जनसंचार का माध्यम बनी यह सिलसिलेवार रूप में भारत से निखरती आयी है। भारतेन्दु के नाटकों में जो हिन्दी खड़ी बोली के रूप में अवधी को छापा लेकर चली, उसी का परिनिष्ठित-रूप काव्य की सभी विधाओं में परवर्ती काल में प्रयुक्त हुआ। श्रव्य माध्यम जो अति प्राचीन था, वह संस्कृत भाषा में रूपकों एवं उपरूपकों के भैदीपमेव में वर्णित हुआ। पुनः इसी पद्धति पर कुछ अनूदित होकर विभिन्न भाषाओं नाटक आदि के रूपों में सामने आया। माध्यम एवं संचार माध्यमों में जो मुख्य दृश्य एवं अव्य माध्यम है, इनमें भाषागत अंतरंगता, बहुरूपता और बहुआयामिता है। इन माध्यमों में भाषा प्रयुक्ति का विशेष स्थान है। संचार तथा जनसंचार के साधन सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस यांत्रिक एवं वैज्ञानिक युग में विकसित आधुनिकता ने समय एवं दूरी को लेकर अंतरिक्ष में भी नया स्वरूप विकसित कर लिया है। अरज कोई भी व्यक्ति अपने कक्ष में बैठे बने दूर को ध्वनि ही नहीं सुन सकता, बल्कि उसके साथ दृश्य माध्यम में दर्शन देख सकता है। आज तो भाषा की स्थिति इन दृश्य-बाय माध्यमों में यह हो गयी है कि कई कारणों से जैसे के अनेकानेक कार्यक्रमों में प्रायोजक तथा निजी प्रसारण हिन्दी एवं जिन क्षणाओं का तालमेल कर भाषा का गुणगान कर रहे है। यह भाषा की सामयिकता, मानकीकरण और वैज्ञानिकता, स्वाभाविकता के लिए गंभीर चिन्ता का विषय है।

विज्ञापन के क्षेत्र में नित नूतन प्रयोग उभरकर हमारे सामने आ रहे हैं। निश्चय ही विज्ञापन के क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी भाषाविज्ञान की दृष्टि में खरी उत्तरे या नहीं, लेकिन में तो इसके स्वरूप, भाषागत वैचित्र्य की रोज देखा जा रहा है। हिन्दी आज आवश्यकताओं के अनुरूप एक नवल रूप में ही प्रयुक्त हो रही है। विज्ञापता की भाषा बड़ी आकर्षक और अलंकृत होती है। आज हिन्दी की अनेक दैनिक, पाक्षिक, मासिक, वार्षिक, पत्र-पत्रिकाएँ पुस्तकें है, जहाँ विज्ञापनी हिन्दी के नए प्रयोग हम देख रहे हैं।हिन्दी विज्ञापनों के लिए हिन्दी शब्दों के चयन वागठन, सादृश्य विचलन, समानान्तरता इत्यादि का महत्वपूर्ण स्थान है। विज्ञापन की भाषा स्वस्य मनोहारी आकर्षक सरस सुन्दर, तच्छेदार, लुभावनी होनी चाहिए और इस दिशा में हिन्दी समर्थ हुई है। हिन्दी विज्ञापनों में हिन्दी का स्थानीय रूप विकसित हुआ है। विज्ञापन में हिन्दी का व्याकरणिक स्खलन भी हुआ है। विदेशी शब्दों के मेल से बने शब्द प्रयोग हिन्दी में आज बहुत है। हिन्दी में विज्ञापन विभिन्न वाक्य संगठनों से किया जाता है। सरत वाक्य मिश्र वाक्य संयुक्त वाक्यों का हिन्दी विज्ञापन में प्रयोग प्रभावकारी होता है। विद्यापना कारों का प्रयोग जान डालता है। वस्तु या चरित्र के स्वरूप को प्रकट करने में प्रभाव को स्पष्ट करने में विरोध व्यक्त करने में, निन्दा या प्रशंसा में भाव छिपाकर व्यय से कुछ कहना चाहते है तो कवन में अलकारों का प्रयोग चार चांद लगा देता है।

इंटरनेट की तकनीकी शब्दावली में हेर-फेर की जरूरत नहीं है। अनुवाद भले कर लें लेकिन वे ही शब्द प्रयुक्त करें जो बेहतर हैं, जो कम्प्यूटर की शब्दावली है। कम्प्यूटर की मशीनी भाषा अलग-अलग कम्प्यूटर में अलग-अलग होती है। हमारी भाषा एवं कम्प्यूटर की भाषा को निकट लाने के लिए एक नये साधन की व्यवस्था कम्पाइलर) के रूप में है। यह भाषाई सूचनाओं को मशीनी भाषा की सूचनाओं में परिवर्तित कर देता है। इस तरह जनसंचार के इतर तकनीकी प्रयुक्तियों में हिन्दी दूरभाष टेलीप्रिंटर, फैक्स टेलीग्राम कैलकुलेटर एवं अन्य मशीनी कार्यों में बहुत अधिक मात्रा में प्रयुक्त हो रही है। हिन्दी के महत्व को प्रगति और विस्तार देने की दिशा में जिन नये प्रयोजनों को उदय पिछले तो वर्षों में हुआ है, उनमें जनसंचार माध्यमों की विशिष्ट भूमिका है। पुराने संचार माध्यमों की अभिव्यक्ति को हिन्दी में अनेक कौशल प्रदान किये हैं। चार माध्यमों के संप्रेषण साधन के रूप में हिन्दी की बहुमुखी दिशाओं और भावनाओं का अनुशीलन अपने आप में एक चुनौती, एक प्रतिज्ञा है, एक संकल्प है। जय हिंद जय हिंदी।


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