ऋषि सुनक : " द अंपायर कॉन्कर्स बैक"

ऋषि सुनक :  द अंपायर कॉन्कर्स बैक
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मेजर सरस् त्रिपाठी

वेबडेस्क। भारतवंशी ऋषि सुनक इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बन चुके है।भारत औऱ इंग्लैंड का एक विशिष्ट और सर्वस्पर्शी रिश्ता है।औपनिवेशिक जख्म पीढ़ी दर पीढ़ी अंग्रेजी नश्तरों की याद दिलाते रहते हैं।इस घटनक्रम के बाद भारत में एक विमर्श खड़ा हो गया है।एक वर्ग इसे हिन्दू पहचान के साथ जोड़ रहा है तो सेक्युलर जमात ने परोक्ष रूप से मुस्लिम प्रधानमंत्री का राग छेड़ दिया है।वस्तुतः सुनक इंग्लैंड का आंतरिक मामला है पर यह तथ्य है कि तीन पीढ़ी बाद भी उनकी हिन्दू पहचान और जड़ वैश्विक रूप से हिन्दू और भारतीयता को एक नई पहचान देता है।आज के शनिवारीय विशेष में इन्ही पक्षों के विश्लेषण का प्रयास।

"द अंपायर राइट्स बैक" (The Empire writes Back)- अरुंधति राय को बुकर पुरस्कार मिलने पर इंग्लैंड के प्रसिद्ध समाचार पत्र "The Guardian" ने यह टिप्पणी की थी। मैं यह सोच रहा था कि "द गार्जियन" ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने पर लिखेगा " द अंपायर कॉन्कर्स बैक" (The Empire Conquers Back)। हो सकता है इंग्लैंड के किसी अखबार ने ऐसा लिखा हो या लिखे, या ना भी लिखे। लेकिन मैं लिख रहा हूं कि "द अंपायर काॅन्कर्स बैंक"। यानि "साम्राज्य" ने (राजा के ऊपर) विजय प्राप्त की"। अंग्रेजों ने हजारों छल-प्रपंच और अत्याचार करके भारत पर शासन किया और लगभग 45 ट्रिलियन डॉलर लूट कर और शोषण करके ले गए। जब अंग्रेज भारत में आए थे उस समय भारत का कुल घरेलू उत्पाद विश्व का 23% था और जब वह छोड़ कर गए थे तो मात्र 2% था। उन्होंने हमारी अर्थव्यवस्था ही नहीं पूरी शिक्षा व्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था और रोज़गार तंत्र को तहस-नहस कर दिया था। इस दौरान करोड़ों लोग भुखमरी के शिकार हुए। जबकि अंग्रेज भारत से अनाज निर्यात करके इंग्लैंड और विभिन्न महाद्वीपों पर अंग्रेजों की सेनाओं को पोषित कर रहे थे।

महाराजा से दोगुनी संम्पति के मालिक -

लेकिन ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री बनना इसके बिल्कुल उलट है। वह इंग्लैंड के सर्वोच्च पद पर स्वयं की योग्यता से प्रतिनिधित्व द्वारा चयनित होकर बिना कोई अत्याचार या छल प्रपंच किए पहुंचे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अंग्रेज यहां लूटने आए थे और सुनक को प्रधानमंत्री बनाया गया है ताकि वह देश की अर्थव्यवस्था को ठीक कर सकें। यह भी महत्वपूर्ण है कि ऋषि सुनक और उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति की कुल संपत्ति इंग्लैंड के महाराजा से दोगुनी है और यह सारी संपत्ति बिना किसी को सताए बिना किसी को लूटे और बिना झूठ प्रपंच और उल्टे सीधे कानून बनाकर प्राप्त की गई है। इस पूरी घटना में यह महत्वपूर्ण नहीं है कि एक भारतीय जनेऊ धारी हिंदू इंग्लैंड का प्रधानमंत्री बना है बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि यह व्यक्ति पूरी तरह से हिंदू संस्कृति से ओतप्रोत है : धर्मग्रंथों में अटूट आस्था, मूलतः शाकाहारी, मदिरापान से दूर (teetotaler), हिंदू धर्म में गहन आस्था रखने वाला और गाय की पूजा करने वाला।

अर्बन नक्सलियों के प्रलाप को सुनिए!

इधर भारत में असाई-कसाई-अर्बननक्सल और अंग्रेजों के शाश्वत मानसिक ग़ुलामों की टीम भी अपना राग अलाप रही है कि ब्रिटेन अगर "अल्पसंख्यक" को प्रधानमंत्री बना सकता है तो भारत क्यों नहीं? महाबूबा मुफ्ती, पी चिदंबरम ,थरूर जैसे बिल से बाहर आ गये हैं। अरे मौन मोहन सिंह अल्पसंख्यक नहीं थे क्या? या अल्पसंख्यक मतलब सिर्फ मुसलमान होता है? पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन, फखरूद्दीन अली अहमद, एपीजे अब्दुल कलाम (हांलांकि डाक्टर कलाम को मैं मात्र "मुस्लिम" की श्रेणी से अलग रखता हूं), ज़ैल सिंह (सिख) और के आर नारायणन (ईसाई) अल्पसंख्यक नहीं थे क्या? ब्रिटेन में तो हजारों साल में पहली बार हुआ। हमारे यहां हज़ार बार हुआ। अंग्रेज ईसाई अल्पसंख्यक थे जिन्होंने दो सौ साल से अधिक जी भरके अत्याचार शासन किया।

राष्ट्र धर्म औऱ सुनक -

वे ब्रिटेन के नागरिक हैं और उनके लिए ब्रिटेन ही "राष्ट्र प्रथम" होगा जो होना भी चाहिए। वे किसी जिहादी अल्पसंख्यक की तरह पहले "इस्लाम" नहीं चुनेंगे। लेकिन चिदंबरम, महबूबा और अन्य विरोधी नेताओं ने बिना सोचे समझे राग अलापना शुरू कर दिया कि ब्रिटेन में अल्पसंख्यक को प्रधानमंत्री बना दिया गया, यहाँ भी अल्पसंख्यक पी एम होना चाहिए।ये लोग भूल जाते है कि महबूबा मुफ़्ती की तरह ऋषि सुनक ने कभी नहीं कहा कि Union Jack को उठाने वाला कोई नहीं मिलेगा - याद है न, महबूबा ने कहा था "तिरंगा उठाने वाले नहीं मिलेंगे" ऐसे ही कभी कमला हैर्रिस ने अमेरिकी झंडे का अपमान नहीं किया है।

हिंदुओ ने कभी अंग्रेजों की खिलाफत नही की -

हिन्दू ब्रिटेन में अल्पसंख्यक है मगर उन्होंने कभी ब्रिटेन के खिलाफ कोई काम नहीं किया जबकि मुस्लिम भी अल्पसंख्यक हैं, लेकिन वो महाराजा के महल "बर्मिंघम पैलेस" को मस्जिद बनाने के लिए आमादा हैं। आये दिन लंदन, लीस्टर और अन्य शहरों में हिन्दुओं पर हमले किए जाते हैं जैसे भारत में किए जा रहे हैं। असली अल्पसंख्यक तो वह है जो ग़जवा-ए-हिंद का स्वप्न पूरा करें।

ऐसे तो अनेक भारतीय बहुत ऊंचे-ऊंचे पदों पर इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा इत्यादि में में बैठे हैं लेकिन राज्याध्यक्ष यह पहले हैं। उनमें से अधिकांश ऐसे थे जो वहां की संस्कृति में रच बस गए। अनेकों ने सनातन धर्म त्याग ईसाई या अन्य धर्म स्वीकार कर लिया, या यदि सनातन धर्मी रहे तो उसको अपने घर की दीवारों के भीतर सीमित रखा। वे वहीं के मूल्यों को स्वीकार कर लिये। ऋषि सुनक इस परिप्रेक्ष्य में उन सब से बिल्कुल अलग है कि वहां रहकर भी अपने सांस्कृतिक मूल्यों को बिल्कुल नहीं छोड़ा।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी -

भारतीय जहां भी है उस समाज में उनका बहुत अधिक सम्मान है चाहे वह अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी या अफ्रीका के देश हों। अधिकतर जगहों पर इन्हें उत्कृष्ट धनवान, बुद्धिमान, ज्ञानवान और सुसंस्कृत माना जाता है। भारतीयों पर दूसरे देशों में लोग बहुत अधिक विश्वास करते हैं। अनेक अफ्रीकी देशों में भारतीय व्यापारियों ने बहुत अधिक चैरिटी में दान किया है और करते रहते हैं। इन्हें दक्षिण अफ्रीका से लेकर सूडान तक और अल्जीरिया से लेकर मोजांबिक तक बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

इसका सबसे बड़ा कारण मैं यह समझता हूं कि सनातन संस्कृति में यह बात हमेशा बताई और सिखाई जाती है कि "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" यानी अपनी मां और मातृभूमि दोनों ही स्वर्ग से महान है। सत्य सनातन संस्कृति का यह महानतम मूल्य ही इसके अनुयायियों को सर्व स्वीकार्य बनाती है। इसी कारण भारतीयों को संपूर्ण वसुधा को एक परिवार समझने की प्रेरणा जन्म से ही मिलती है। इसी कारण वह सभी मनुष्यों को "वसुधैव कुटुंबकम" का हिस्सा मानते हैं और जिसके कारण उनकी संपूर्ण विश्व में स्वीकृति होती है। जय सनातन।

जो प्रतिपालय सोई नरेसू।

जहां बसई सोई सुंदर देसू।

(मौन संविधान भयानक परिणाम पुस्तक के लेखक )



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