जनसांख्यिकी असंतुलन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा पारित प्रस्ताव के प्रमुख बिंदु
वेब डेस्क।आज विजयादशमी उत्सव के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नागपुर कार्यालय में पर्वतारोही संतोष यादव जी के आतिथ्य में प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का उद्बोधन हुआ जिसमे उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा नीति जैसे मुद्दों को प्रमुखता से रखा। प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा - जनसंख्या नियंत्रण और धर्म के आधार पर जनसंख्या असंतुलन ऐसे मुद्दे हैं, जिसे लंबे समय तक नजरंदाज नहीं किया जा सकता। गौरतलब है की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा पूर्व में भी जनसँख्या के मुद्दे पर अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक में प्रस्ताव पारित किये हैं।
जनसांख्यिकी असंतुलन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा वर्ष 2004 और 2015 में पारित प्रस्ताव के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं -
"अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल - 2004 (जनसांख्यिकी चुनौतियाँ)"
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल का यह सुनिश्चित मत है कि सद्य: प्रकाशित जनगणना 2001 के पांथिक आँकड़ों से बहुत से चौंका देने वाले तथ्य प्रकाश में आए हैं। देशको तथा राष्ट्रवादी ताकतों को इन्हें गम्भीरता से लेना चाहिए एवं राज्य और केन्द्र सरकारों को इन चिन्ताजनक सरोकारों की तरफ समुचित ध्यान देना चाहिए।
विश्वका इतिहास साक्षी है कि जनसांख्यिकीय परिवर्तन किसी भी समाज में सामाजिक एवं राजनैतिक परिवर्तन का कारक बनता है। इसके लिए किसी बाहरी उदाहरण की आवश्यकता नहीं है, भारत स्वयं 1947 में जनसांख्यिकी के असन्तुलन के कारण विभाजन की दु:खद त्रासदी को झेल चुका है; क्योंकि देश के कुछ विशिष्ट भागों में हिन्दू-मुस्लिम अनुपात असन्तुलित हो गया था।
इस असन्तुलनकारी निरन्तरता को इस 2001 की जनगणना ने और अधिक उजागर किया है, विभाजन के 57 साल बाद भी असन्तुलन कीइस प्रक्रिया से देश के विभिन्न भागों में हम जूझ रहे हैं। बांग्लादेश सेसटे हुए असम के छ: जिलों तथा बंगाल के तीन जिलों में हिन्दू अल्पसंख्यक होही चुके हैं, साथ ही असम के चार जिलों में तथा बंगाल के सात जिलों मेंहिन्दू अल्पसंख्यक होने के कगार पर हैं। ऐसा बांग्लादेश की ओर से हो रही घुसपैठ के कारण हो रहा है। असम में आई.एम.डी.टी. विधेयक इस घुसपैठ को रोकने की बजाय इसे बढ़ाने का ही काम कर रहा है। नेपाल की सीमा से लगे हुए उत्तर प्रदेश एवं बिहार के सभी जिले मुस्लिम जनसंख्या की तीव्र बढ़ोत्तरी को दर्शाते हैं। इन जिलों में आज इनका अनुपात 20 से 68 प्रतिशत तक हो चुका है। यह वही परिक्षेत्र है जिसकी परिकल्पना अंग्रेजों के साथ मिलकर भारत विभाजनके योजनाकार मोहम्मद अली जिन्ना ने बाँग्लादेश एवं पाकिस्तान को जोड़ने वाले मार्ग के रूप में की थी। ग्यारह राज्यों में ईसाई जनसंख्या की दशकीय वृध्दि दर 30 प्रतिशत से ज्यादा है, इसी प्रकार मुसलमानों की भी दशकीय वृध्दि दर नौ राज्यों में 30 प्रतिशत से अधिक रही है।
अ.भा.का.मंडल इस विषय पर रोष एवं दु:ख प्रकट करता है कि भारत के मीडिया एवं बुध्दिजीवियों के एक काफी बड़े वर्ग ने इन तथ्यों को जानबूझकर छिपाने का निन्दनीय उपक्रम किया है। यह भी दु:ख की बात है कि भारत के अधिकांश राजनैतिक दलों ने अपने वोट बैंक पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के भय से इस विषय की घातक उपेक्षा की है।
अ.भा.का.मंडल का मत है कि इस जनसंख्या असन्तुलन के मुख्यत: तीन कारण हैं। प्रथम, समाज के सभी सम्प्रदायों के लिए समान जनसंख्या नियंत्रण नीति का अभाव; द्वितीय, साम्प्रदायिक मतांतरण तथा तृतीय, बँग्लादेश तथा पाकिस्तान से घुसपैठ।
आज इन तथ्यों का दुष्प्रभाव समाज में विभिन्न प्रकारों से प्रतिबिंबित हो रहा है,
(1) पश्चिम बंगाल के आठ सीमान्त जिलों में मुस्लिम बहुल 19 नए विधानसभा क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण का प्रस्ताव किया गया है,
(2) यह भी महज संयोग नहीं है कि जहाँ हिन्दुओं की आबादी निरन्तर घटती जा रही है, वे ही क्षेत्र आतंकवादी कार्यवाहियों से अत्यधिक ग्रस्त हैं।
इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए अ.भा.का.मंडल माँग करता है कि:-
(1) केन्द्र व राज्य सरकारें सभी सम्प्रदायों के लिए समान जनसंख्या नियंत्रण की एक समग्र एवं प्रभावी नीति का विकास करें।
(2) सभी राज्य सरकारें मतांतरणरोधी प्रभावी कानूनों का निर्माण करें।
(3) केन्द्र और राज्य सरकारें घुसपैठ को रोकने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएँ तथा केन्द्र सरकार घुसपैठियों को पहचानने, उनके नाम मतदाता सूची से काटने तथा उन्हें वापस भेजने की कार्यवाही करे।
जनगणना 2001 द्वारा दर्शाए गए पांथिक आँकड़ों के चेतावनी भरे तथ्यों के सन्दर्भ मेंअ.भा.का.मंडल देश के नागरिकों से आवाहन करता है कि सभी वैधानिक एवं सम्भव तरीकों से अपने तीव्र सरोकारों को अभिव्यक्ति दें।"
"अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल – 2015 (जनसंख्या वृद्धि दर में असंतुलन की चुनौती)"
देश में जनसंख्या नियंत्रण हेतु किए विविध उपायों से पिछले दशक में जनसंख्या वृद्धि दर में पर्याप्त कमी आयी है. लेकिन, इस सम्बन्ध में अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल का मानना है कि 2011 की जनगणना के पांथिक आधार पर किये गये विश्लेषण से विविध संप्रदायों की जनसंख्या के अनुपात में जो परिवर्तन सामने आया है, उसे देखते हुए जनसंख्या नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता प्रतीत होती है. विविध सम्प्रदायों की जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अन्तर,अनवरत विदेशी घुसपैठ व मतांतरण के कारण देश की समग्र जनसंख्या विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों की जनसंख्या के अनुपात में बढ़ रहा असंतुलन देश की एकता, अखंडता व सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर संकट का कारण बन सकता है.
विश्व में भारत उन अग्रणी देशों में से था, जिसने वर्ष 1952 में ही जनसंख्या नियंत्रण के उपायों की घोषणा की थी, परन्तु सन् 2000 में जाकर ही वह एक समग्र जनसंख्या नीति का निर्माण और जनसंख्या आयोग का गठन कर सका. इस नीति का उद्देश्य 2.1 की 'सकल प्रजनन-दर' की आदर्श स्थिति को 2045 तक प्राप्त कर स्थिर व स्वस्थ जनसंख्या के लक्ष्य को प्राप्त करना था. ऐसी अपेक्षा थी कि अपने राष्ट्रीय संसाधनों और भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए प्रजनन-दर का यह लक्ष्य समाज के सभी वर्गों पर समान रूप से लागू होगा. परन्तु 2005-06 का राष्ट्रीय प्रजनन एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण और सन् 2011 की जनगणना के 0-6 आयु वर्ग के पांथिक आधार पर प्राप्त आंकड़ों से 'असमान' सकल प्रजनन दर एवं बाल जनसंख्या अनुपात का संकेत मिलता है. यह इस तथ्य में से भी प्रकट होता है कि वर्ष 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अन्तर के कारण देश की जनसंख्या में जहां भारत में उत्पन्न मतपंथों के अनुयायिओं का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 प्रतिशत रह गया है, वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8 प्रतिशत से बढ़ कर 14.23 प्रतिशत हो गया है.
इसके अतिरिक्त, देश के सीमावर्ती प्रदेशों यथा असम, पश्चिम बंगाल व बिहार के सीमावर्ती जिलों में तो मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है, जो स्पष्ट रूप से बंगलादेश से अनवरत घुसपैठ का संकेत देता है. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त उपमन्यु हजारिका आयोग के प्रतिवेदन एवं समय-समय पर आये न्यायिक निर्णयों में भी इन तथ्यों की पुष्टि की गयी है. यह भी एक सत्य है कि अवैध घुसपैठिये राज्य के नागरिकों के अधिकार हड़प रहे हैं तथा इन राज्यों के सीमित संसाधनों पर भारी बोझ बन सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनैतिक तथा आर्थिक तनावों का कारण बन रहे हैं.
पूर्वोत्तर के राज्यों में पांथिक आधार पर हो रहा जनसांख्यिकीय असंतुलन और भी गंभीर रूप ले चुका है. अरुणाचल प्रदेश में भारत में उत्पन्न मत-पंथों को मानने वाले जहां 1951 में 99.21 प्रतिशत थे, वे 2001 में 81.3 प्रतिशत व 2011 में 67 प्रतिशत ही रह गये हैं. केवल एक दशक में ही अरूणाचल प्रदेश में ईसाई जनसंख्या में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसी प्रकार मणिपुर की जनसंख्या में इनका अनुपात 1951 में जहां 80 प्रतिशत से अधिक था, वह 2011 की जनगणना में 50 प्रतिशत ही रह गया है. उपरोक्त उदाहरण तथा देश के अनेक जिलों में ईसाईयों की अस्वाभाविक वृद्धि दर कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा एक संगठित एवं लक्षित मतांतरण की गतिविधि का ही संकेत देती है.
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल इन सभी जनसांख्यिकीय असंतुलनों पर गम्भीर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से आग्रह करता है कि -
1) देश में उपलब्ध संसाधनों, भविष्य की आवश्यकताओं एवं जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या को ध्यान में रखते हुए देश की जनसंख्या नीति का पुनर्निर्धारण कर उसे सब पर समान रूप से लागू किया जाए.
2) सीमा पार से हो रही अवैध घुसपैठ पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाया जाए. राष्ट्रीय नागरिक पंजिका का निर्माण कर इन घुसपैठियों को नागरिकता के अधिकारों से तथा भूमि खरीद के अधिकार से वंचित किया जाए.
3) अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल सभी स्वयंसेवकों सहित देशवासियों का आवाहन करता है कि वे अपना राष्ट्रीय कर्तव्य मानकर जनसंख्या में असंतुलन उत्पन्न कर रहे सभी कारणों की पहचान करते हुए जन-जागरण द्वारा देश को जनसांख्यिकीय असंतुलन से बचाने के सभी विधि सम्मत प्रयास करें.