सिंधिया के बाद अब कमलनाथ हैं दिग्विजय के निशाने पर
ग्वालियर, विशेष प्रतिनिधि। पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को मध्यप्रदेश की राजनीति में कूटनीतिक चालों के लिए जाना जाता है। उनकी टेड़ी नजर जिस नेता पर भी पड़ जाए तो वह उसका ऐसा हश्र कर देते हैं, कि वह पार्टी में हाशिए पर आ जाता है या स्वत मजबूरी में पार्टी से विदा भी ले लेता है। ठीक ऐसा ही उन्होंने किसी समय स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के साथ किया और फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भी। इसके बाद अब उनके निशाने पर कमलनाथ हैं, जो दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं, किंतु दिग्गी राजा के दांव पेचों के आगे उन्हें कितनी सफलता मिलेगी, यह तो कुछ नहीं कहा जा सकता, किंतु शुक्रवार को जब कमलनाथ का ग्वालियर दौरा हुआ, तब बढ़ चढ़कर यह दावे किए गए थे कि ग्वालियर चंबल अंचल के सभी बड़े नेता उनके साथ होंगे, किंतु इस दौरे में न तो स्वयं दिग्विजय सिंह आए और न ही उन्होंने अपने समर्थकों को उनके कार्यक्रम में जाने दिया। जिससे स्पष्ट है कि इस समय दिग्विजय और कमलनाथ में राजनीतिक अनबन चल रही है। ऐसे में आने वाले विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस में एक बार फिर दो गुट सामने दिखाई देंगे।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में 10 साल तक मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह ने अपने कार्यकाल में किसी भी बड़े नेता हो प्रदेश की राजनीति में दखल नहीं देने दिया। उस समय के बड़े नेता माधवराव सिंधिया का कद भी उनके समतुल्य ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर का था और वह मुख्यमंत्री पद की दौड़ में भी थे, किंतु स्वर्गीय अर्जुन सिंह की कूट नीति के कारण वह मुख्यमंत्री बन ही नहीं पाए। श्री दिग्विजय सिंह ने अपने 10 साल के शासन काल में श्री माधवराव सिंधिया को प्रदेश की राजनीति में कमजोर करने के लिए सारे प्रयास किए और सफल भी हुए। सिंधिया के निधन के बाद वर्ष 2001 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीति में प्रवेश किया, तब से दिग्गी राजा से उनकी कभी भी नहीं पटी। यद्यपि 10 साल तक राजनीति से दूर रहे दिग्विजय सिंह ने नर्मदा की यात्रा के बाद फिर से प्रदेश की राजनीति में कदम रखा और अब प्रदेश की ही राजनीति कर रहे हैं। इसमें वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में वैशाखियों के सहारे कांग्रेस की सरकार बनी, तब मुख्यमंत्री के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम उभरा तो सोनिया गांधी के समक्ष दिग्गी राजा ने कमलनाथ का नाम आगे कर दिया। सिंधिया को साधने के लिए उप मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। जिससे ज्योतिरादित्य सिंधिया फिर से प्रदेश की राजनीति से कट गए। यद्यपि उनके समर्थक विधायकों को मंत्री बनाया गया, किंतु कमलनाथ की सरकार में दिग्विजय सिंह का इतना ज्यादा दखल था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके मंत्रियों को हमेशा हाशिए पर रखा गया। जिसपर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी बात कांग्रेस हाईकमान तक पहुंचाई, तब वहां भी दिग्विजय, कमलनाथ के एक होने हो जाने के कारण उनकी सुनवाई नहीं हुई।
जिससे ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने आपको काफी उपेक्षित महसूस करने लगे और समय-समय पर कमलनाथ को चेताया भी कि वचन पत्र में दिए वायदे पूरे नहीं किए तो वह सड़कों पर आ जाएंगे। जिस पर सत्ता के मद में लीन कमलनाथ ने भी कह दिया के तो उतर जाइए। बस उसके बाद सिंधिया को कांग्रेस से किनारा करते हुए मार्च 2020 में अपने समर्थित 22 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने को मजबूर होना पड़ा। जिससे कमलनाथ सरकार सड़कों पर आ गई और प्रदेश में एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई। अब आने वाले समय में 28 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना है। किंतु दिग्विजय के निशाने पर अब कमलनाथ आ गए हैं। वर्तमान में दोनों के गुट प्रदेश में सक्रिय हैं। वैसे भी कमलनाथ सरकार में वरिष्ठ विधायकों को दरकिनार कर दिग्विजय सिंह ने अपने पुत्र जयवर्धन सिंह को कैबिनेट मंत्री बनवा दिया। जिससे वरिष्ठ विधायकों में काफी असंतोष पैदा हुआ था और यह बुराई कमलनाथ को झेलना पड़ी थी।
ग्वालियर में शुक्रवार को जब कमलनाथ आए तो दिग्विजय सिंह नहीं दिखे। वहीं उनके समर्थक डॉ गोविंद सिंह, केपी सिंह, जयवर्ध सिंह सहित तमाम नेताओं ने इस दौरे से किनारा कर दिया। इतना ही नहीं दिग्गी समर्थक स्थानीय कांग्रेस नेता भी न तो विमानतल पर और न ही रोड शो में आए। इससे साफ हो गया है कि कमलनाथ की आगे की राह आसान नही है।
यह सच है आज कांग्रेस ने कमलनाथ की मौजूदगी में दमदार उपस्थिति दर्ज कराई।हालाकि इसमें टिकिट चाहने वालो का शक्ति प्रदर्शन भी था पर दिग्विजय सिंह की स्वयं की अनुपस्थिति और उनके समर्थक नताओ का गेर हाजिर रहना संदेश दे गया कि कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं है।डॉक्टर गोविंद सिंह की नदी बचाओ यात्रा में दिग्विजय सिंह और अजय सिंह भी आए थे पर आज वह समय नहीं निकाल पाए ।कमलनाथ यह नहीं समझे होंगे ऐसा मान ने का कोई कारण नहीं है।सरकार गिरने के बाद वह अपना दर्द इशारों में प्रगट कर दिग्विजय सिंह पर निशाना साध चुके हैं।
कांग्रेस की राजनीति में अब युवा नेतृत्व की भी जंग है ।नकुल नाथ और जयवर्धन सिंह के बीच पोस्टर युद्ध हो ही चुका है। उप चुनाव के नतीजे दोनों वरिष्ठ नेताओं के भविष्य के साथ उनके बेटों की भी दिशा तय करेंगे लिखने की आवश्यक ता नहीं ऐसे में कमलनाथ के लिए दिग्विजय सिंह क्या चाहेंगे।यह हम नहीं कह रहे कांग्रेस से सहनुभूती रखने वाले एक वरिष्ठ नेता ही नाम न छापने की शर्त पर कहा रहे है।