अपने जीवन से बहुत कुछ सिखा गईं शैलजा ताई काकिर्डे

अपने जीवन से बहुत कुछ सिखा गईं शैलजा ताई काकिर्डे
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ग्वालियर/वेब डेस्क। मनसा, वाचा और कर्मणा को पूरी सिद्धता के साथ जीवन में अंगीकार करने वाली राष्ट्र सेविका समिति की पूर्व अखिल भारतीय सह कार्यवाहिका माननीय शैलजा ताई काकिर्डे (शैला ताई) अब हमारे बीच नहीं रहीं। उन्होंने अहर्निश प्रवास करते हुए समिति के कार्य को एक नया आयाम दिया और अत्यंत ही विनम्रता के साथ समिति की सेविकाओं को कार्य के लिए सक्रिय किया। उनके शहर, प्रदेश और देश में आज ऐसी अनेक सेविकाएं पूरी कौशलता के साथ कार्य कर रही हैं, जिनको ताई जी ने समिति के कार्य में लगाया। शैलजा ताई स्वदेश के संचालक रहे, आदर्श शिक्षाविद् व भू-वैज्ञानिक डॉ. श्रीकृष्ण त्र्यबक (अण्णा जी) काकिर्डे की धर्म पत्नी हैं। ताई के निधन पर स्वदेश परिवार की विनम्र श्रद्धांजलि।

गहन चिंतक थी शैला ताई -

आज प्रात: वंदनीय शैला ताई के निधन का समाचार प्राप्त हुआ और मन अत्याधिक व्यथित हो गया। उनसे प्रथम भेंट से लेकर उनके सानिध्य में बिताए अनेकों पल आखों के सामने तैर गए। मेरे विवाह की प्रथम वर्ष गांठ पर उन्होंने मुझे दो पुस्तकें भेंट दीं, एक थी 'दिग्विजयी रघुवंश तथा दूसरी दीप ज्योती नमोस्तुते। वह पुस्तक समिति की आद्य संचालिका वंदनीय मौसी जी केळकर की जीवन गाथा थी।

उन्होंने कहा - 'ये पुस्तक अवश्य पढ़ो, मैं शहर में विवाह हो कर आने वाली हर बहू में एक सेविका देखती हूं। कालांतर में मैं उनकी प्रेरणा से समिति की सेविका बनी और लगभग 19 वर्ष तक मुझे उनका मार्गदर्शन, प्रेम मिला। मैंने उनमें सदा एक अध्ययनशील और गहन चिंतक और मंत्र मुग्ध कर देने वाली वता को पाया। प्राय: उनके घर जाना होता तो पीछे वाले बरामदे में वे कुछ पढ़ते और बिंदु लिखने के लिए एक डायरी लिए हुए ही मिलतीं। कुछ वर्ष पूर्व जब माननीय अण्णा जी एवं शैला ताई ने इंदौर जाने का निर्णय लिया तो मन बहुत भारी हो गया। ऐसा महसूस हुआ कि हम अब कैसे उनके मार्गदर्शन के बिना समिति का कार्य करेंगे। चूंकि उनके साथ हमारे पारिवारिक संबंध थे, इसलिए परिवार की हर सुख दु:ख की घड़ी में हमने उनको अपने साथ पाया। बहुत सी स्मृतियां हैं, उनका जाना वास्तव में मन को अत्यधिक व्यथित कर रहा है। ईश्वर शैला ताई को अपने श्री चरणों में स्थान दे। ओम शांति

मनीषा इंदापुरकर, विभाग कार्यवाहिका, ग्वालियर

गुण परखने की अद्भुत क्षमता थी -

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हो या राष्ट्र सेविका समिति। यहां व्यति के व्यतिगत गुणों को पहचान कर व्यतित्व निर्माण राष्ट्र कार्य के लिए किया जाता है। जब सन 2012 से समिति से जुडऩा हुआ, तब पता चला कि यह किस तरह सत्य है। माननीय शैला ताई जी मुझे समिति में लेकर आईं और समिति कार्य करने को प्रोत्साहित किया। समिति का पांच दिवसीय आवासीय शिविर लगना था। बच्चों से संपर्क कर उन्हें शिविर में लाना लाना था। यह मेरा पहला अनुभव था और मैं अपने प्रयासों से कुछ बच्चों को शिविर में लाई भी। मेरी अपने विषय में राय यह थी कि मैं संकोची हूँ। संवाद मेरा स्वभाव नहीं है, पर ताई की पारखी दृष्टि ने मुझे अवसर दिया और आन्तरिक गुण का विकास कैसे हो सकता है, यह अनूभूति हुई। ग्वालियर में समिति कार्य बढ़े यह उनके दिल की गहराई से जुड़ा विषय था। शाखा छूटे ना, इसका विशेष आग्रह उनके जीवन में रहता था। सरस्वती शिशु मंदिर नदी द्वार पर वर्षों से समिति की शाखा लगती आ रही है। जब वे ग्वालियर में होती थीं तो सातत्यता से शाखा में उपस्थित वे रहती ही थी। बाद में अस्वस्थता के चलते वे इंदौर में अपनी बेटी के यहां चली गयीं। वहां भी उनका नियमित शाखा जाना चालू रहा, पर विशेष बात यह है कि जब भी वे ग्वालियर आती।

एक सेविका को पहले से फोन कर सूचित करती कि उनके सहयोग के लिए घर आए, योंकि हाथ पैरों में कंपन के कारण उन्हें किसी के सहयोग की आवश्यकता होती थी। नियत समय से 5 मिनट पूर्व शाखा स्थान पर सहयोगी सेविका के साथ वे उपस्थित रहती थीं। शाखा उपस्थिति का उन्होंने जीवन पर्यन्त व निष्ठा पूर्वक पालन किया और हर सेविका से भी यही आग्रह रहता था कि शाखा वाले दिन कोई और काम का बहाना न हो। शाखा वाला दिन शाखा के लिए ही सुरक्षित रखा जाना चाहिए। एक बार समिति के व्यतित्व विकास शिविर में मेरी बिटिया सौया शिविरार्थी बनकर गई। अखंड भारत पर उनका बौद्धिक था। भारत माता का एक एक अंग देश से कैसे अलग हुआ, इसका उन्होंने इतना संजीव चित्रण किया कि बिटिया के आंखों से झरझर आंसू बहने लगे और उसे लगा कि भारत माता सच में कितने कष्टों में है। हमारा अखंड भारत का सपना कैसे पूरा होगा? किशोरियों और गृहणियों के मन में राष्ट्रप्रेम के भावों को शब्दोंद के माध्यम से जागृत करने की उनकी अद्भुत वतव्य शैली थी। वह किसी भी घटना का शाब्दिक वृत्तचित्र लोगों के दिलों दिमाग पर चित्रित कर देती थीं। उनके जाने से राष्ट्र सेविका समिति को अपूरणीय क्षति हुई है। समस्त समिति परिवार की ओर से उनके चरणों में शत शत वंदन।

महिमा तारे, विभाग सेवा प्रमुख, राष्ट्र सेवा समिति

कार्य के साथ करती थी बेहतर सामंजस्य -

राष्ट्र सेविका समिति का एक परिचित व्यतित्व माननीय शैला ताई जी कार्किडे के निधन की सूचना से गहरा आघात लगा है। महानगर विभाग, प्रांत और केन्द्रीय दायित्वों का निर्वाहन करते हुए उनका संपूर्ण जीवन समिति कार्य के लिए समर्पित रहा। पिछले कुछ वर्षों से शारीरिक अस्वस्थ्ता और कमजोरी के कारण वह समिति कार्य करने में असमर्थ थीं, फिर भी समिति कार्य की चिंता करते हुए उनका मार्गदर्शन हमें समय-समय पर प्राप्त होता रहता था। परिवार, नौकरी, शहर के समिति कार्य तथा समिति कार्य से जुड़े प्रवास इन सब कार्यों में सामंजस्य बिठाकर कार्य करना उनके जीवन का यह गुण प्रत्येक महिला के लिए आदर्श था।

अपने संपर्क में आने वाली प्रत्येक महिला को समिति कार्य से जोडऩा और उसकी शारीरिक, मानसिक, आर्थिक क्षमता के अनुसार उसे समिति कार्य में लगाना, यह उनके नेतृत्व और संगठन क्षमता का विशेष गुण था। वह हमेशा कहती थीं, समिति में नए-नए लोगों को जोड़ो, समिति का काम बढ़ाओ। परंतु पुराने लोगों को भी बराबर साथ में रखो। शहर में समिति का छोटे से छोटा कार्यक्रम हो, उत्साह के साथ तैयारी में जुटना और कार्यक्रम में इस भाव के साथ उपस्थित रहना कि वहां मेरी प्रतीक्षा हो रही होगी मैं, वहां शामिल रहूंगी। यह भाव हमेशा रहता था। इंदौर में पंद्रह दिवसीय शिविर था। मैंने कहा मैं इतनी शारीरिक और मेहनत कैसे करूंगी, मेरे जाने का मतलब या है? वह बोलीं - वह मैं संभाल लूंगी। जाओगी नहीं, सीखोगी नहीं तो काम की बारीकियां कैसे समझोगी। अरे आगे आकर काम नहीं कर सकती, परंतु पीछे से सही गलत का मार्गदर्शन तो कर सकती हो। आज मेरा कार्म के प्रति उत्साह बढ़ाने और मार्गदर्शन करने का समस्त श्रेय उन्हीं को जाता है। शाखाएं प्रारंभ होती हैं, बंद भी हो जाती हैं। मेरा उनका संपर्क लगभग 40 वर्षों से रहा।

कुछ अंतराल के बाद शाखा कार्य पुन: प्रारंभ हुआ और मैंने नए सिरे से शाखा जाना प्रारंभ किया, परंतु परिवार में कुछ व्यस्तता के कारण मैं कई दिनों तक शाखा नहीं जा पाई और उन्हें पता लगा कि परिवार में जापा हुआ है, इस कारण मैं शाखा नहीं आ रही हूं तो वे स्वयं मुझसे मिलने घर आई जच्चा बच्चा का हाल जाना और उपहार देकर चली गईं। उनको घर में आया देखकर मैं आनंद से भर गई। यह आत्मीय संपर्क ही संगठन का मुय आधार है। एक और बात किसी भी प्रकार की परिस्थिति आए, महिलाओं ने विचलित नहीं होना चाहिए। एक बार विद्या भारती में समिति का शिविर लगा था। शाखा विसर्जन के लिए हम पुन: विद्या भारती गए। शाखा विसर्जन होते ही उनके मुंह से निकला, अरे मेरा पर्स तो वहीं बाहर मैदान में पेड़ के नीचे रह गया। हम कुछ सेविकाएं वहां मैदान में गईं, तब तक पर्स नहीं मिला। परंतु कल शिविर का अंतिम दिन है, समापन अच्छी तरह से होना चाहिए। यह सोचते हुए पुन: दूसरे दिन की तैयारी में लग गई। हम लोगों को भी राहत हुई। इस प्रकार कहने को तो बहुत कुछ है, परंतु शद नहीं हैं। बस भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और उनके परिवार को साहस बंधाएं। ऐसे अनुकरणीय व्यक्तित्व को मेरा शत्-शत् नमन।

वसुधा ताई गजेंद्र गड़कर, संरक्षिका

शैलजा ताई : एक चुंबकीय व्यक्तित्व का अवसान

तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित... इन शब्दों को चरितार्थ करता हुआ एक जीवट व्यतित्व आज परमात्मा में विलीन हो गया। परम श्रद्धेय माननीय शैलजा ताई जी एक आदर्श सेविका और कुशल संगठक थीं। अखिल भारतीय अधिकारी का आभामंडल कभी भी एक सामान्य सेविका और उनके बीच में नहीं आया। बहुत ही सहजता से सबसे मिला करतीं थीं। मुझे वर्षों तक उनका सानिध्य प्राप्त हुआ। समिति की बारहखड़ी उनसे ही सीखी। आपके स्नेह और विश्वास ने पग-पग पर मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया। आपके साथ पारिवारिक रिश्तों की मिठास तो पहले से ही थी, पर समिति की सेविका नाते पहली बार 1994 में रामकृष्ण आश्रम में शाखा स्थान पर आपसे परिचय हुआ। आपके मार्गदर्शन और विश्वास से समिति कार्य में जुड़ जाने का सिलसिला प्रारंभ हो गया। प्रत्येक कार्य में अनुशासन आपकी पहली प्राथमिकता थी। प्रारंभ में जब कहीं बौद्धिक देना होता था, तो फोन पर ही आप पूरा विषय बता देती थीं और पूरे भरोसे से कहतीं घबराओ मत मुझे मालूम है तुम बोल सकती हो। माननीय ताई जी का और मेरा जन्म दिनांक एक ही है, इसलिए मेरा प्रयास रहता था कि शुभेच्छा मैं पहले प्रेषित करूं, पर सदैव ताई जी का फोन पहले आ जाता था। मुझे स्मरण है जब मुझे डॉटरेट की उपाधि और जीवाजी विश्वविद्यालय में पढ़ाने का अवसर मिला तो आशीर्वाद लेने मैं उनके पास गई। आपने आशीर्वाद स्वरुप वंदनीय मौसी जी की पथप्रदर्शिनी रामायण अपने हस्ताक्षर के साथ मुझे भेंट की और बोलीं समिति की सेविका में प्रत्येक स्थान पर सेविका के गुण दिखना ही चाहिए। एक अच्छी सेविका एक अच्छी अध्यापिका और ग्रहणी बने, यही शुभेच्छा है। समिति को जीवन में उतार लेने वाला समर्पित व्यतित्व आज हमारे बीच नहीं है, परन्तु ताई जी का स्नेह और सीख हमेशा मार्गदर्शक बनी रहेंगी। ईश्वर आपको अपने श्री चरणों में स्थान दे.. ऊँ शांति।

डॉ कल्पना शर्मा, ग्वालियर विभाग संपर्क

समयबद्ध रहा ताई का जीवन -

राष्ट्र सेविका समिति की माननीय शैला ताई का देवलोकगमन का अत्यंत दुखद समाचार सुना तो आँखों के सामने बाल्यकाल से आज तक की स्मृतियां चलचित्र की तरह मानस पटल पर आती रहीं। जिस मां ने मुझे जन्म दिया, उसने अपने संस्कार से सिंचित करते हुए समिति में जाने के लिए प्रेरित किया और उंगली पकड़कर शैला ताई के हाथ में दी और कहा कि यह समिति कार्य आपके सानिध्य में रहकर ही सीखेगी और यह सत्य भी है समिति कार्य की वह मेरी मां ही थी। उन्होंने मुझे समिति कार्य के लिए अनुशासन और धैर्य का पाठ सिखाया। एक अनुभव है जब 80 के दशक में मैंने समिति प्रचारिका के लिए दो वर्ष देने का मन बनाया तो काकू (हम उन्हें स्नेह से यही कहते थे) मुझे अपने साथ प्रवास पर ले जातीं थी और एक चलित पाठशाला की तरह सूक्ष्म बातें समझाते हुए कहती थीं, बेटा जब मुझे पूरा विश्वास होगा, तभी तुमको यह निर्णय लेने के लिए कहूँगी। बाद में उनकी ही अनुमति और मार्गदर्शन में यह संकल्प पूर्ण हुआ भी। एक बार हम दोनों को ठंड के दिनों में सुबह 6 बजे प्रवास पर जाना था और रात तक वापस भी आना था, सब कार्य समयनुसार होना चाहिए, इसके लिए ताई जी आग्रही रहती थीं। हम निर्धारित समय के अनुसार उस स्थान पर पहुंचे। वहां अभी समिति कार्य का प्रारंभ करना था, इसलिए उन्होंने मुझे पहले ही समझा दिया था, कुछ असुविधाए होंगी, पर अब यही तुहारी परीक्षा भी है। और ठीक भी है उस समय लोगों के पास बहुत सुविधा के लिए साधन नहीं भी होते थे। एक परिवार में पहुंचे। वहां हमारे लिए चायनाश्ते की व्यवस्था थी और उसके बाद हमने कुछ परिवारों में सपर्क किया और बैठकें की। फिर हमारी वापसी थी। ग्वालियर जाने के लिए पुन: बस स्टेंड पर आ गये, मुझे बहुत भूख लगी थी, पर मेरा कुछ भी कहने का साहस नहीं था। पर काकू ने मेरा चेहरा पढ़ लिया था, तुरंत कुछ पैसे दिए जो वहां उपलध था, वह खाया। यह अनुभव किया कि वह जितनी कार्य को लेकर अनुशासित रहती थीं, उतनी वह मातृवत्सल थीं। मेरे से कहने लगी बेटा हमें समिति कार्य करते समय नवीन जगह जाने पर अपने को हमेशा संयम रखना आवश्यक होगा। इसलिए हमें असुविधा में भी काम करने की आदत होनी ही चाहिए। आज समिति कार्य की मेरी 'मां आदरणीय काकू अब हमारे बीच नहीं है, यह लिखना असहनीय है। पर यह सत्य है, यह सोचकर आंखें भर आती है। उनके संस्कारों का अनुसरण करना, यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। ईश्वर हम सभी को यह दु:ख सहन करने की शति प्रदान करें।

अंजलि हार्डिकर, विभाग कार्यवाहिका

कहानियां सुनाकर देती थी प्रेरणा -

आदरणीया शैलजा ताई जी का स्मरण आते ही उनके बौद्धिक में उनके द्वारा सुनाई गई कहानियाँ याद आती हैं, सुनते समय ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह घटना आँखों के सामने घटित हो रही है। कहानियों के माध्यम से कठिन विषय को भी वे सरलतापूर्वक सेविकाओं के मन-मस्तिष्क तक प्रेषित कर देती थीं। सादा जीवन, उच्च विचार, कर्मठ व्यतित्व, अनुशासित जीवन तथा समिति कार्य के प्रति कटिबद्ध आदर्श सेविका आदरणीय शैला ताई को विनम्र श्रद्धांजलि।

साक्षी मयणकर, महानगर सह कार्यवाहिका, ग्वालियर


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