खेती को लाभ का धंधा बनाते शिवराज सिंह
वेबडेस्क। खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए देश भर में सबसे प्रमाणिक प्रयास मप्र में हुए हैं।पिछले दो दशक में मप्र सरकार ने जो जमीनी निर्णय लिए है उसके फलित अब अन्नदाता के चेहरे पर उभरी मुस्कान से स्वत पढ़ें जा सकते हैं।सच तो यह है कि आजादी के बाद पहली बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में नीतिगत प्राथमिकता में खेती किसानी पहली बार शामिल हुई है।वरन अन्नदाता अपनी मेहनत के बल पर ही संसाधनों की भयंकर न्यूनता के बाबजूद देश के पेट को भरने में विवशता के साथ लगा था।खेती भारत के लोकजीवन की आत्मा और आस्था दोनों ही सदैव से रही है।सरकारों के लिए यह नारों से आगे महत्व नही हासिल कर पाई।नतीजतन किसानों ने हरित क्रांति का सपना पूरा किया लेकिन बहुसंख्यक किसान लाचारी औऱ गरीबी में इसलिए फंसे रहे क्योंकि लागत को कम करने की दिशा में कभी कोई परिणामोन्मुखी काम नही हुए।
मप्र में शिवराज सरकार ने आरम्भ से ही खेती की इसी बुनियादी विसंगति पर काम किया।चरणबद्घ तरीके से किसानों को भरोसा दिलाया गया कि सरकार हर मोर्चे पर उनके साथ खड़ी है। आज आंकड़े इन प्रयासों की तस्दीक करते है क्योंकि 2003में प्रदेश में कृषि विकास दर 03 प्रतिशत थी जो आज 19 फीसद पर आकर खड़ी हो गई है। केंद्र में मोदी सरकार और राज्य में शिवराज सरकार, दोनों ने अपनी प्राथमिकता में किसानों को रखा है। मध्यप्रदेश के राजगढ़ में आयोजित ‘किसान-कल्याण महाकुंभ’ के आयोजन से सरकार ने यही संदेश देने का प्रयास है कि सरकार सदैव किसानों के हक में खड़ी है।राजगढ़ महाकुंभ में शिवराज सिंह ने किसानों को राहत देते हुए 2200 करोड़ रुपये कृषि ऋण का ब्याज माफ करने, मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना की लगभग 1400 करोड़ रुपये की राशि जारी करने और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में 2900 करोड़ रुपये के दावों के भुगतान अंतरण करने का बड़ा काम किया । इससे पूर्व किसानों को खेती के लिए कर्जा 16 फीसदी ब्याज पर दिया जाता था लेकिन शिवराज सरकार ने इस चरणबद्ध तरीके से घटाते हुए जीरो पर लाने का काम।किया।पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कर्जमाफी के वायदे के चक्कर में प्रदेश के किसानों पर कृषि ऋण के ब्याज का बोझ बढ़ गया था, जिसके कारण वे डिफाल्टर हो गए थे, उन्हें सरकार की कृषि संबंध योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा था।
शिवराज सरकार ने किसानों को इस भंवर से निकाल कर बड़ी राहत दी है। याद हो कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि “कांग्रेस की पूर्व सरकार के समय वर्ष 2018 में ऋणमाफी की उम्मीद में हजारों किसान डिफाल्टर हो गए और खाद बीज लेने से वंचित हो गए। ऐसे दो लाख रुपये तक के फसल ऋण वाले किसानों की पीड़ा को राज्य सरकार ने समझा है और ब्याज माफी का निर्णय लिया है”। अपनी घोषणा और किसानों के साथ किए वायदे को निभाते हुए पिछले माह ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सागर के प्राथमिक सहकारी साख समिति केरबना के दो किसानों पंचमलाल और जुगरेन्द्र झल्लू का आवेदन भरकर ‘मुख्यमंत्री कृषक ब्याज माफी योजना’ की शुरुआत की दी थी, जिसके अंतर्गत जिला सहकारी केन्द्रीय बैंको से संबद्ध प्रदेश की लगभग साढ़े चार हजार प्राथमिक कृषि साख समितियों में दो लाख रुपये तक के फसल ऋण वाले डिफाल्टर किसानों का ब्याज माफ करने के लिए आवेदन भरने का कार्य शुरु किया गया था
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह खुद किसान के बेटे है इसलिए उनका स्पष्ट रूप में मानना है मध्यप्रदेश में कर्जमाफी किसानों की बेहतरी के लिए कोई स्थायी समाधान नही है। कर्जमाफी एक तरह से किसानों के स्वाभिमान के अनुकूल भी नहीं है। किसान तो अपने पुरुषार्थ से देश-प्रदेश का पोषण करता है। प्रदेश के किसानों की अपेक्षा यही रही है कि सरकार ऐसी नीतियां बनाए कि उसे उचित मूल्य पर खाद-बीज और कृषि उपकरण मिलें। कृषि कार्य के लिए बैंक से उचित दर पर लोन मिल जाए। सबसे महत्वपूर्ण उसकी उपज का ठीक मूल्य उसे प्राप्त हो। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पहले कार्यकाल से इसी बात पर जोर दिया कि किसान के स्वाभिमान को बढ़ाने एवं उसे आत्मनिर्भर बनाने के लिए क्या पहल की जाए? मध्यप्रदेश में कैसे किसानों के हित में सरकार काम कर रही है, इस बात को आसानी से और तर्कसंगत ढंग से समझना है, तो हमें लगभग 20 साल पीछे पलट कर देखना चाहिए। आज से लगभग 20 साल पीछे जाएं तब हम जान पाएंगे कि आखिर क्यों प्रदेश बदहाली के दौर से गुजर रहा था? उस वक्त प्रदेश में खेती के लिए न तो बिजली थी और न ही सिंचाई सुविधा। उत्पादन और लागत में बड़ा अंतर था। खेतों के लिए खाद और बीज भी किसान को उपलब्ध नहीं था।
किसानों को लगभग 16 प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण मिल पाता था। किसान ऋण लेने के बाद उसके ब्याज के बोझ से दब जाता था। शिवराज सरकार ने सबसे पहले इस व्यवस्था को बदला, आज प्रदेश के किसान को शून्य ब्याज दर पर कृषि ऋण मिलता है। किसान क्रेडिट कार्ड ने किसानों को कर्ज उपलब्ध कराने में एक क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है।शिवराज सरकार के प्रयासों से प्रदेश सिंचाई का रकबा भी विगत वर्षों में बढ़ा है। प्रदेश में वर्ष 2003 में जहाँ सिर्फ सात लाख हेक्टेयर के आसपास सिंचित भूमि थी। शिवराज सरकार के प्रयासों से अब यह 45 लाख हेक्टेयर से अधिक है। इसे 2025 तक 65 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य है। नहरों के फैलते जाल से आने वाले वर्षों में मध्यप्रदेश में 65 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता देखने को मिलेगी। ‘किसान-कल्याण महाकुंभ’ में लोकार्पित ‘मोहनपुरा-कुंडालिया प्रेशराइज्ड पाइप सिंचाई प्रणाली’ को सरकार के इसी संकल्प के अंतर्गत देखना चाहिए। लगभग 8500 करोड़ की लागत की यह देश की पहली वृहद प्रेशराइज्ड पाइस सिंचाई परियोजना है। इसके अतिरिक्त भी प्रदेश में नर्मदा कछार की 24 हजार 500 करोड़ रुपए से अधिक लागत की 5 लाख 50 हजार हेक्टेयर से अधिक की सिंचाई क्षमता वाली 12 परियोजनाओं के निर्माण की कार्यवाहियां प्रारम्भ हो गई हैं। प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार, जल संसाधन विभाग द्वारा निर्माणाधीन 475 सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से 28 लाख हेक्टेयर से अधिक की सिंचाई क्षमता विकसित की जा रही है। इन सब प्रयासों के अतिरिक्त भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों के हित में निरंतर सराहनीय प्रयास किए हैं। इसके बावजूद कहना होगा कि अभी भी किसानों की स्थिति सुधारने के लिए बहुत काम किए जाने बाकी हैं। उत्साहजनक बात यह है कि इस दिशा में सरकार प्रयासरत भी है।
किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिले इसके लिए शिवराज सरकार ने प्रायः हर साल समर्थन मूल्य पर बोनस देकर सरकारी खरीदी के प्रति किसानों को आकर्षित किया है।कुछ समय पूर्व सरकार ने भावन्तर योजना लाकर किसानों के हक में बड़ा काम किया था यानी बाजार के समतुल्य दरों में यदि किसान को फसल के दाम नही मिल पाते तो सरकार सरकारी खरीदी औऱ बाजार मूल्य के अंतर को भावन्तर योजना के जरिये प्रतिपूर्ति करती रही है।किसान सम्मान निधि में 4 हजार हर किसान को अतिरिक्त देने वाली मप्र की सरकार इकलौती है इसके जरिये सीमांत किसानों को बड़ा आर्थिक संबल उपलब्ध कराया गया है।