"बड़ादेव ही, महादेव हैं"
वेबडेस्क। महा अर्थात बड़ा है , इसीलिए बनवासी समाज महादेव को बड़ादेव कहते है, जो निराकार है, त्रिशुलधारी है। बड़ादेव, महादेव के समान एक प्राकृतिक शक्ति है जिसमे भूमि, जल, आकाश,वायु और अग्नि आती है, जो सर्वोच्च शक्ति है जिसे कोई मिटा नही सकता।सिंधु घाटी सभ्यता में प्राप्त एक मुहर में तीन मुखों वाली आकृति ,चूड़ियां पहने है और सींगदार मुकुट सिर पर है और मूलबंधासन मुद्रा में जो 4 जंगली जानवरों हाथी , गैंडा , बाघ और भैंसा से घिरा हुआ है। इस मुहर पर अंकित शिव गोंड शैली में है , बस्तर के मारिया गोंड अभी भी अपने देवताओं को सींग वाली टोपी से सजाते है, शिवजी की भुजाएं चूड़ियों से ढंकी है , यह शिल्प छत्तीसगढ़ के जनजाति शिल्प डोकरा शिल्प से मिलता है।
ऋग्वेद में शिव को अग्नि वनस्पति अर्थात जंगल के भगवान के रूप में एवं एक अन्य सूक्त में एक हजार शाखाओं वाले सदाबहार , दैदीप्यमान वृक्ष के रूप में प्रशंसा की गई है । वृक्ष का संबंध बड़ादेव से भी है , जो साज वृक्ष पर निवास करता है।वैदिक काल में निरुद्ध पशुबंध यज्ञ होता था, जिसमे एक बकरी का बलिदान हड़प्पा की एक मुहर में शिव एवं एक व्यक्ति को भैंस पर भाला चलाते हुए दिखाया गया है, अनुष्ठान में भैंस की बलि देने की परंपरा भारत की अनेक जनजातियों में प्रचलित है। गोंडो का मानना है कि आत्मा मृत्यु के बाद आत्मा बड़ादेव में विलीन हो जाती है, यही कारण है कि गोंड सहित कई महापाषाण संस्कृतियों में समाधि के ऊपर एक स्तंभ खड़ा करते है , जो महादेव का प्रतीक है बड़ादेव को प्रसन्न करने के लिए मुर्गा, महुए की शराब चढ़ाना , महादेव या भैरव की पूजा के समान है।
महादेव कैलाश पर्वत पर निवास करते है , गोंड किवदंतियों के अनुसार बड़ादेव का निवास हिमालय में धवलगिरी चोटी पर है ।गोंड लोग यह मानते है कि सभी देवताओं का जन्म महादेव एवं पार्वती की मिलन से हुआ है । इसी तरह बड़ादेव को सल्ला गांगरा अर्थात नर एवं मादा कहा जाता है, इसी से सारी शक्तियां उत्पन्न है , इनके बिना पृथ्वी पर किसी भी जीव की उत्पत्ति संभव नहीं है। यही महादेव का अर्धनारीश्वर रूप बड़ादेव के सल्ला गांगरा के समान है।
गोंडी साहित्य के अनुसार इस धरती का राजा शंभू शेख है जिसे शंभू या गोटा या महादेव कहते है।बड़ादेव की पूजा विधि में गोबर को लीप कर ,हल्दी या आटे से चौक पूरना फिर उस पर पटा रखकर सफेद कपड़ा बिछाना है , उस पटे पर हल्दी की 5 गांठे , चावल के दाने, नारियल फोड़ना बेलपत्र फूल चढ़ाना आदि ,हिंदू समाज से ही जुड़ी हुई है। परमशक्ति फड़ापेन की कथा में दोहे का प्रारंभ निम्न प्रकार से होता है
शिव गौरा को सुमरि गुरु देवगन को सिर नाय।वनवासी समाज में महादेव पूजा आज भी प्रचलित है,मध्यप्रदेश के पहाड़ी इलाकों में गोंड गढ़ है जहा अनेक शिवमन्दिर है, पचमढ़ी में चौरागढ़ महादेव मंदिर जो एक महत्वपूर्ण गोंड तीर्थ है जहा त्रिशूल समर्पित किए जाते है।वनवासियों में सरहुलबाहा पूजा वास्तव में शिव पार्वती का पूजन है, सतपुड़ा पर्वत में महादेव का धाम तिलक सिंदूर है जहा महादेव की प्रथम पूजा का अधिकार गोंडो के मुखिया प्रधान को है यहां महाशिवरात्रि को महादेव का अभिषेक सिंदूर के किया जाता है, झारखंड के वनवासी सरना महादेव की पूजा अच्छी वर्षा के लिए करते है, महादेव को भील अवतार वाला भी माना जाता है ऐसे अनेक उदाहरण है जो महादेव और बड़ादेव को एक मानते है।