बॉलीवुड : कम्युनिस्टों का सशक्त सपोर्ट सिस्टम
वेबडेस्क। यदि कम्युनिस्टों की मानसिकता के दर्शन एक ही जगह करने हों तो बॉलीवुड के गलियारों में थोड़ा टहलकर आइए...यहां आपको फेमिनिज्म भी मिलेगा, मजदूरों का संघर्ष भी मिलेगा, हिंदुओं के प्रति सख्त घृणा भी मिलेगी, आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति भी मिलेगी और नक्सलियों को जस्टिफाई भी किया जाएगा....इस लेख में हम बॉलीवुड के दृष्टिकोण में फेमिनिज्म एवं हिंदुत्व घृणा के बारे में जानेंगे।
अब पिछले साल सिनेमाघरों में रिलीज हुई कृति सेनन स्टारर 'मिमी' मूवी ही देख लीजिए उसमें यह दिखाने की पूरी कोशिश की गई कि एक मुस्लिम परिवार की लड़की कितनी प्रगतिशील है। फिल्म की पटकथा के अनुसार मिमी (कृति सेनन) एक सेरोगेट मदर बनती है, वह हिंदू परिवार की लड़की दिखाई गई थी, मिमी का परिवार कहीं न कहीं गांव की पृष्ठभूमि से आता था, चूंकि सेरोगेट मदर का कॉन्सेप्ट से उसका परिवार अनभिज्ञ था इसलिए उसके परिवार में इस बात को स्वीकार्य नहीं किया जाना स्वाभाविक था किंतु मूवी में उनकी अनभिज्ञता को कट्टरपंथी सोच से जोड़कर दिखाने का पूरा प्रयत्न किया गया। सोच समझकर परिवारजनों को विकृत मानसिकता से ग्रसित दिखाना 'अनिवार्य' था इसलिए मिमी यह बात उसके घर नहीं बता सकती थी इसलिए वह अपनी मुस्लिम सहेली के घर ठहरती है, जो उसे अपने घर में देखभाल के साथ रखती है, साथ ही चार प्रगतिशील डायलॉग भी डिलीवर करती है, क्योंकि भई इस्लामिक मज़हब के लोग ही तो "प्रगतिशील विचारों" के होते हैं, इस संदेश को भी तो आज के युवाओं तक पहुंचाना है, वैसे यह वही प्रगतिशील मज़हब है जिसके अंतर्गत मुस्लमानी स्त्रीयों को आंख से पैर तक संपूर्ण शरीर को ढंकना होता है, चाहे स्त्री की इच्छा हो अथवा न हो।
इसी के साथ बॉलीवुड ने सभी अनुचित बातों का सीधा संबंध हिंदुत्व से दिखाया है। उदाहरणार्थ हॉटस्टार की वेब सीरीज़ "सिटी ऑफ ड्रीम्स" में बलात्कार जैसे घृणित अपराध को पंडित से इस प्रकार जोड़कर दिखाया है कि वह बलात्कार करने वाला मस्तक पर टिका लगाया हुआ है एवं गले में रुद्राक्ष की माला पहने है। हालांकि यह बात सत्य है कि अपराध का कोई धर्म नहीं होता, किंतु बॉलीवुड की यह मानसिकता केवल हिंदू धर्म के लिए लागू होती है, नमाज़ पढ़ने वाले व्यक्ति को कभी किसी भी अपराधी के रूप में दिखाने की यह हिम्मत कर सकता है?
ऐसा करने पर बॉलीवुड को असल असहिष्णुता के प्रमाण प्राप्त हो जाएंगे....
इसी वेब सीरीज़ में एक हिंदू राजनीतिज्ञ को (जो राज्य का मुख्यमंत्री भी है) राज्य में हिंदू - मुस्लिम दंगे भड़काते हुए भी दिखाया गया है, उसी हिंदू नेता को मुसलमानों से सख्त घृणा करते हुए भी दर्शाया गया है, जिससे यह बताने का प्रयत्न किया गया कि असल में हिंदू समाज मुस्लिम समुदाय से घृणा करता है जबकि मुस्लिम समाज तो सदैव ही हिंदू समाज को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार्य करना चाहता है एवं हिंदू समाज ने ही ही कभी इस तथाकथित 'शांतिप्रिय' समाज को नहीं स्वीकारा। संक्षिप्त में कहा जाए तो वह सब कुछ दिखाया गया है, जो वास्तविकता से ठीक विपरीत था अथवा अर्ध सत्य था।
हाल ही में प्रकाश झा द्वारा निर्देशित 'आश्रम' में भी एक हिंदू बाबा को बलात्कारी एवं ढोंगी दिखाया गया है। झूठ व छल के सहारे उस बाबा ने एक बहुत भव्य आश्रम खड़ा कर लिया है, जिसमें वो सुबह प्रवचन देता है व रात में आश्रम में रह रहीं लड़कियों को प्रसाद के लड्डू में नशे की दवाई मिलाकर उनसे बलात्कार करता है।
यहां भी वही प्रश्न उठता है कि क्या हिंदू बाबा ही ढोंगी होता है, हां ढोंग एक वृत्ति है जो किसी भी धर्म में पाई जा सकती है, फिर तो सभी धर्मों के ढोंग का पर्दाफाश होना चाहिए। समाज में ऐसे भी कई मामले घटित होते रहते हैं जहां मौलवियों ने बहुत लड़कियों के बलात्कार किए हैं...क्या इन मुद्दों पर बॉलीवुड कभी अपनी टिप्पणी करना चाहेगा??
प्रकाश झा जैसे कम्युनिस्ट निर्देशकों की धर्मनिषपेक्षता की असल परीक्षा तो तब होगी जब वो इन मुद्दों को लेकर निष्पक्षता के साथ फिल्म बनाएंगे।
बॉलीवुड में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी दुरुपयोग बहुत किया जाता है। जैसा कि 2018 में रिलीजड मूवी "वीरे दी वेडिंग" में किया गया है। यह फिल्म चार सहेलियों पर आधारित है, जो आधुनिकता के नाम पर सभी अनैतिक कार्य करती हुई दिख जाएंगी। इनकी स्वतंत्रता के मापदंड शराब सिगरेट का सेवन करना, मल्टीपल पार्टनर्स बनाना,असभ्य भाषा का उपयोग करना एवं हिंदू संस्कृति व परंपराओं के प्रति अनंत विष उगलना हैं। मूवी के एक डायलॉग में सोनम कपूर का पात्र मंगलसूत्र के लिए आपत्तिजनक, असभ्य शब्द का उपयोग करता है। इन चार सहेलियों की मानसिकता की धुरी शारीरिक संबंध के आस-पास घूमती हुई ही दिखती है।
इसी प्रकार ओह माय गॉड एवं पीके जैसी मूवीज में भी जमकर एंटी - हिंदू प्रोपेगंडा दिखाया गया है। इसके बारे में पहले ही बहुत चर्चा व विवाद हो चुके हैं, इसलिए इस पर बात यहां नहीं करें तो बेहतर है।अजीब विडंबना है न कि बॉलीवुड अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर कम्युनिस्ट प्रोपेगंडा का प्रसार कर सकता है, किंतु सामान्य नागरिक सत्य नहीं कह सकता, क्योंकि यदि कल को वो ऐसा करता है तो सुप्रीम कोर्ट ऐसा कहने में दो क्षण नहीं लेगा, कि "आपके फलां फलां बयानबाजी के चलते देश में आग लगी है।"जैसे कि कुछ महीनों पूर्व ही एक राजनेता को मजहबी किताब में लिखा सत्य बोलने के लिए यह दंड मिला कि उसे पार्टी से निष्कासित कर दिया गया गया।
खैर इस बात को नकारा नहीं जा सकता समय के साथ लोगों की अज्ञानता के चलते हिन्दू संस्कृति में कुछ कुप्रथाओं ने जन्म लिया है, लेकिन अन्य मजहबों के समान इन कुप्रथाओं एवं विकृत मानसिकता को प्रदर्शित करती परंपराओं का संबंध हिन्दू संस्कृति के किसी भी ग्रंथ से नहीं है।इसी संदर्भ में भारत विखंडन के सह लेखक श्री अरविंदन नीलकंडन कहते हैं कि - "किसी भी सामाजिक व्यवस्था की नकारात्मकताऍं संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को परिभाषित नहीं करती। भारत की हिंदू संस्कृति में समय के साथ उपजी कुप्रथाएं चर्चा का केंद्र बिंदु रहीं हैं, किंतु यही कुप्रथाएं यूरोप, फ्रांस में भी व्याप्त रही हैं। वे अपने अंधकारमयी इतिहास को जानते हैं, नोट करते हैं, किंतु उस इतिहास को एक प्रचलित 'नेरिटिव' नहीं बनने देते।"
यदि पश्चिम देश अपने राष्ट्र का गौरव बचाने में कार्यरत हैं, तो भारतीय युवाओं का भी भारत के प्रति यही कर्तव्य होना चाहिए, किंतु युवा तो बॉलीवुड की ऐसी फिल्मों का समर्थन कर रहे हैं जो संपूर्णतः देश व सनातन संस्कृति के दुष्प्रचार में लगी हुई है। युवाओं के लिए यह विचारणीय प्रश्न है कि आखिर इन्हें कौन भारत देश एवं उसकी सनातन संस्कृति के विरुद्ध ब्रेनवाश करने में संलिप्त है और क्यों??बॉलीवुड कुछ भी सीधा सीधा नहीं कहता अपितु सॉफ्ट मैनर में अपने प्रोपगंडा को युवाओं के मस्तिष्क में उतारता है । इसे समझना उतना भी कठिन नहीं है, एक बार इनके प्रोपेगंडा को समझ लिया जाए तो 'सत्य' के दर्शन प्राप्त हो जाएंगे, और फिर कम्युनिज्म के दर्शन प्राप्त करने की इच्छा स्वयं ही समाप्त हो जाएगी क्योंकि 'सत्य' का कद सभी 'विचारधाराओं' से बहुत अधिक विशाल है।