'स्वदेश' से चर्चा में स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा- समरसता मन में अपनाएं अगला दशक भारत का होगा
वेबडेस्क। समरसता वचन से नहीं मन से होती है, यदि हम मन से समरस बन जाएं तो समरसता अपने आप आ जाएगी और भगवान श्रीराम ने समरसता को पहले मन में उतारा और फिर उसका वचन निभाया. तुलसीपीठाधीश्वर पदम विभूषण जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी ने यह बात स्वदेश के साथ जबलपुर में बातचीत के दौरान कही। स्वामी जी ने कहा भारत शद की निरुति पर जाता है तो सामान्य रूप से भरत के नाम से भारत को जाना जाता है किंतु यह जयंती ऋषभ के पुत्र भरत, शकुंतला पुत्र भरत का और कैकई पुत्र भरत का और यह तिरंगा झंडे के जैसे तीन रंग है जिनमे केसरिया जयंती पुत्र से श्वेत शकुंतला पुत्र भरत से और हरा रंग कैकई पुत्र भरत है।
भारत तीन शदों को मिलकर बनाता है, जिनमें भ का भगवान, आ का अर्थ आदर और रत का अर्थ है प्रेम और जिस देश में भगवान राम का आदर भी है और प्रेम भी है उसका नाम है भारत। भारत में समरसता प्रारभ काल से ही रही। उन्होंने कहा भारत में समरसता प्रारभ से है विरसता तो कुर्सी के लालची नेताओं ने किया हमारे यहां जाति और वर्ण थे किंतु जातिवाद नही था। स्वतंत्रता के पश्चात यदि जाति के आधार पर आरक्षण नहीं होता तो जातिवाद कभी नही आता। ऋग्वेद से लेकर हनुमान चालीसा तक भारतीय वैदिक वंगमान्य में कभी विरसता की चर्चा नहीं आई। उन्होंने कहा रामचरित मानस की चौपाई भी कहती है कि चलना है तो एक साथ मिलकर चलो, बोलना है तो एक स्वर में बोलो, कोई संकल्प हो तो सबके मन एक साथ संकल्प करें. जिस प्रकार यज्ञ में आमंत्रित करने में सभी देवता आ जाते हैं तो भारत के 140 करोड़ लोग एक साथ यदि कोई बात कहें तो कोई भी सरकार बात को नकार नहीं सकता और यदि हमारा एक स्वर हो जायें तो सरकार हमें नहीं नचा सकती, बल्कि सरकार को नचा सकते हैं।
उन्होंने कहा हमारे देश मे करोंड़ो वर्ष पहले से समरसता थी भगवान राम के राज्य में कोई वीआईपी नहीं था, बल्कि प्रत्येक भारतीय वीआईपी थे। अयोध्या के रामघाट पर चारों वर्णों लोग एक साथ नहाते थे भारत से जब तक वीआईपी की परंपरा नहीं जाएगी, तब तक भारत समर्थ भारत नहीं बन सकता. जहां गिद्ध को और कुो को भी न्याय मिलता हो यह हमारा भारत था और आज एक एक मुकदमा चालीस से पचास वर्ष तक चलते है, भगवान श्रीराम की जन्मभूमि का मुकदमा 1949 से 9 नवंबर 2019 तक मुकदमा चला तब हमें न्याय मिल पाया। उन्होंने कहा हमारे यहां चार वर्ण थे और हमारे यहां सवर्ण और असवर्ण था ही नहीं और न ही किसी ने शेड्यूल कास्ट की बात की थी।
भगवान के चारो वर्ण बेटे है और और वर्ण व्यवस्था भगवान ने बनाई और कर्म के आधार पर अपने चारों बेटों का नाम रखा जिनमे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र प्रगट हुए. उन्होंने कहा समरसता का मंत्र समाज मे फैली विरसता के दुर्गंध को मिटाता है. हमें भारत को एक भारत अखंड भारत, समरस भारत समर्थ भारत बनाना है। उन्होंने कहा भगवान राम जैसी समरसता कहीं नहीं मिलेगी और उसका उदाहरण है कि भगवान राम जिस विश्वविद्यालय में पढ़ते थे और उसी में निषादराज भी पढ़ते थे। रामायण में चक्रवर्ती सम्राट के बेटे ने केवट से नाव की भीख मांगी थी यह भगवान राम के भारत की समरसता थी।
उन्होंने कहा श्रीराम की समरसता इतनी व्यापक है, जिसने पशुओं के मन से भी भेदभाव हटा दिया। भगवान ने तो वानर जैसे बदमाश प्राणियों को भी अनुशासन सीखा दिया। उन्होंने कहा हम अखंड भारत चाह रहे थे, किन्तु भारत के प्रथम प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षा ने देश का बंटवारा मजहब के आधार पर करा दिया फिर भी हमने कहा किसी भी धर्म को मानने वाले रघुवर और यदुवर के होकर रहना है तो रह लो, किन्तु बाबर का होकर नहीं रह सकते। भारत में रहना होगा तो वंदे मातरम कहना होगा। उन्होंने कहा समरस वही हो सकता है, जो किसी का अमंगल नहीं चाहता है और सबको मंगल देने वाले का नाम ही राम है।
पूज्य महाराज जी ने कहा प्रधानमंत्री मोदी जी अच्छा काम कर रहे हैं। कश्मीर में 370 और धारा 35ए हट गई है और यदि सामान नागरिक सहिंता लग जाये, रामचरित मानस राष्ट्र ग्रंथ बन जाए, गौ माता राष्ट्र धरोहर बन जाये तो हम 10 वर्षों में ही विश्व गुरु बन जाएंगे। पूज्य महाराजी ने कार्यक्रम के अंत में कहा आप सभी श्रीराम के आदर्शों का पालन करते हुए समरसता का कार्य कीजिये मैं आपके सदैव आपके साथ हू