डॉ. राजकुमार जैन : एक संत हृदय का महाप्रयाण

डॉ. राजकुमार जैन : एक संत हृदय का महाप्रयाण
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शिरोमणि दुबे, विद्या भारती मध्यभारत, प्रांत के प्रादेशिक सचिव

आज भोर में उनींदा सा अलसाई आंखों से जब खबरों को खोजने लगा तो हृदय को गहरा आघात देने वाली खबर पढक़र स्तब्ध रह गया। मन को मर्मांतक पीड़ा देने वाली खबर थी संघ शति का एक और दीपक बुझ गया। भौंती पिछोर जिला शिवपुरी में जन्मे संघ की पुरानी पीढ़ी के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. राजकुमार जी जैन अब हमारे बीच नहीं रहे। दोस्तो यूं तो जो जन्मा है उसे एक दिन जाना ही पड़ता है परंतु समय की शिला पर जो निशान छोड़ जाते हैं पीढिय़ां उसकी चौखट पर बंदगी के लिए सिर झुकाए खड़ी मिलती हैं। आदरणीय डॉटर राजकुमार जी जैन कहानी के ऐसे कथानक हैं, जिसमें केवल शदों का आरोह- अवरोह भर नहीं है, अपितु उसमें भाव भी हैं, भंगिमाऐं भी हैं तथा जीवन रहस्यों की अतल गहराईयां भी हैं। डॉटर साहब केवल एक अदद व्यक्ति की 67-68 वर्षों की दास्तान नहीं है बल्कि जीवन के उत्तरायण मे भी परिव्राजक जीवन का ककहरा सिखाने वाले वे आदर्श शिल्पी हैं। वह कविता की ऐसी छंदोबद्ध रचना बन कर जिए जिसमें लय भी है, ताल भी है और परिवर्तन का भैरव निनाद भी है। जीवन मूल्यों की पाठशाला में वे एक ऐसे व्यायाता हैं जो केवल भाषण से नहीं आचरण से उपदेश करते हैं। वे संगठन के ऐसे प्रवता थे जिनके व्यायान में गद्य का गांभीर्य तो था ही, पद्य का लालित्य भरपूर सुनाई देता था। उनके उपदेशों में जीवन की जिजीविषा कभी कमजोर नहीं पड़ी। बे गुनगुनाते थे - ईश्वर का दिया कभी अल्प नहीं होता, जो बीच में टूट जाए वह संकल्प नहीं होता। हार को जिंदगी से दूर ही रखना, योंकि जीत का कोई विकल्प नहीं होता।।

मित्रो! फकीरी भी शरमा जाए ऐसा मस्त-व्यस्त जीवन जीने वाले डॉटर साहब जैसे विरले होते हैं। खुद के प्रति बेपनाह बेपरवाह बेजार जिंदगी जीने वाले आदरणीय डॉटर साहब को देश समाज के लिए पल- पल, तिल-तिल जीते खपते सबने देखा है। मेरे पैतृक गांव भौती (पिछोर) में सरस्वती शिशु मंदिर नहीं था। इससे वे बड़े बेचैन रहते थे। बस एक दिन विद्या भारती के कार्यकर्ताओं को बुलाकर लाखों रुपए का भूमि-भवन शिशु मंदिर को सौंप दिया। आज जो सरस्वती विद्या मंदिर भौती में संचालित है उसकी बुनियाद में आदरणीय डॉटर साहब की मूल्यपरक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के प्रति गहरी समझ को दर्शाता है। आदरणीय डॉटर साहब के पार्थिव देह का पंचतत्व में विलीन हो जाना संगठन-समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। परंतु हास-परिहास, व्यंग-विनोद की मिठास में सनी-पगी, डॉटर साहब की विलक्षण कार्य शैली से जो अगणित कार्यकर्ता तैयार हुए हैं, उनके सामर्थ्य से भारत का भाग्य सूर्य अवश्य चमक उठेगा। डॉटर साहब के व्यक्तित्व की विराटता के आगे शद के अर्थ भी बौने लगते हैं डॉ शिवमंगल सिंह सुमन के शदों में - या हार में या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं। कर्तव्य पथ पर जो मिला, यह भी सही वह भी सही।।

डॉ. राजकुमार जैन की दिवंगत आत्मा की सद्गति के लिए एवं परिवार को इस असहनीय दुख को सहन करने की शक्ति मिले, यहीं प्रभु चरणों में प्रार्थना है। ऊँ शांति... शांति... शांति...

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