सत्य केवल एक सिरे पर स्थित नहीं है
वेबडेस्क। जब कभी भारतीय सिद्धांत, दर्शनशास्त्र और धार्मिक ग्रंथों को समझने की बात आती है तो पश्चिम से प्रभावित हमारी विचारधारा हमें बहुत-सी चीज़ों को लेकर दुविधा में डाल देती है। हमारे ग्रंथों में दिए संदेश को समझने के लिए हमें सबसे पहले यह जानना होगा कि भारत में अन्य देशों की तरह चीजों को सरल करने या चीज़ों को सही गलत के मापदण्डों पर दर्ज करने का सिद्धांत पर आधारित नहीं था। हमारे ग्रंथों में ऐसी बहुत-सी बातें हैं जो अस्पष्ट हैं, लेकिन इस कारण किसी तरह की दुविधा या अज्ञानता या भ्रम नहीं उत्पन्न होता। चीजों को तर्कसंगत और सीधे, सरल ढंग से समझने का तरीका भारतीय ग्रंथों को समझने में इसलिए कारगर सिद्ध नहीं होता, क्योंकि भारत का सौंदर्य उसके एकीकृत जीवन में समाहित है। यदि आप उसे अलग ढंग से नहीं देखेंगे तो वह आपको अव्यवस्थित और जटिल नजर आएगा। आपको चीजें विरोधी और जटिल लगेंगी, लेकिन इनके पीछे शाश्वत विचारधारा है, जो हिंदू धर्म के मूल सिद्धांत को दर्शाती है और उसका समर्थन करती है।
रावण की अच्छे कामों के लिए प्रशंसा -
भारत का मूल सिद्धांत कहता है कि सत्य एक सिरे पर नहीं होता और कोई चीज़ पूरी तरह अच्छी या बुरी नहीं होती। हमारे पुराण ऐसी कथाओं से भरे पड़े हैं, जो बताते हैं कि देवताओं ने भी गलतियाँ की और कई बार असुर और राक्षस दयालु और अच्छी प्रवृत्ति के होते थे। रामायण का एक रूप ऐसा भी मिलता है, जहाँ राम पर उनके किए कार्यों पर सवाल उठाए जाते हैं और रावण की अच्छे कामों के लिए प्रशंसा की जाती है। हर पात्र में त्रिगुण का मिश्रण होता है; इसलिए हर अच्छे इंसान में कुछ हद तक बुरी आदतें होती हैं और इसी तरह हर बुरे आदमी में भी अच्छे विचार और कृत्य पाए जाते हैं। इसलिए किसी भी पात्र को पूरी तरह अच्छा या बुरा कह देना हिंदू धर्म की मूल प्रवृत्ति के विरुद्ध है। कई ऋषि-मुनियों की तपस्या आसक्ति के कारण भंग हुई और कई असुरों ने अपनी इच्छाशक्ति के बल पर देवपद हासिल किया। यहाँ तक कि सर्वाधिक पूजे जाने वाले देवता जैसे राम, कृष्ण,शिव और ब्रह्मा भी नैतिक रूप से हमेशा सही नहीं होते थे। उनसे हमेशा सदाचार की उम्मीद नहीं की जाती थी। सनातन धर्म में देवताओं के लिए ऐसा कोई प्रतिमान स्थापित नहीं किया गया। वास्तव में परमात्मा के साथ उनके मिलन के कारण ही उन्हें देव-पद प्राप्त हुआ है।
भक्त प्रह्लाद की कहानी -
हम सबने हिरण्यकशिपु और कयाधु के पुत्र भक्त प्रह्लाद की कहानी सुनी है। हिरण्यकशिपु, भगवान विष्णु का कट्टर शत्रु था। उसने स्वयं को त्रिलोक का स्वामी घोषित कर दिया था। इसलिए हिरण्यकशिपु ने किसी और देवी-देवता की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया था। जो व्यक्ति उसकी आज्ञा का उल्लंघन करता, उसे हिरण्यकशिपु के क्रोध का सामना करना पड़ता था। परन्तु उसका अपना पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था और ईश्वर में इसी गहन निष्ठा के कारण प्रह्लाद, विष्णु का सर्वप्रिय भक्त बन गया। परंतु इसी कारण उसे हिरण्यकशिपु के अत्याचार और प्रताड़ना का भी सामना करना पड़ा। प्रह्लाद अपनी निष्ठा से नहीं डिगा। इसीलिए भक्त प्रह्लाद का भागवत पुराण में बहुत महत्त्व है। वैष्णव धर्म के अनुयायी प्रह्लाद के महत्त्व को गीता के इस श्लोक से समझा जा सकता है, जिसमें श्रीकृष्ण कहते हैं :
"मैं दैत्यों में भक्त प्रह्लाद हूँ और दमनकारियों में समय हूँ, पशुओं में सिंह हूँ और पक्षियों में गरुड़ हूँ।"
नरसिंह अवतार -
विष्णु को प्रह्लाद की उसके पिता हिरण्यकशिपु से रक्षा करने के लिए नरसिंह अवतार लेना पड़ा। हिरण्यकशिपु ने भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके चालाकी से लगभग अमर होने का वरदान प्राप्त कर लिया था। उसने ब्रह्मा से यह माँगा कि उसकी मृत्यु ना धरती पर हो, ना आकाश में, ना अग्नि से, ना जल में, ना दिन में, ना रात में, ना घर से बाहर, ना घर के अंदर, ना किसी मनुष्य से और ना किसी पशु या देवता से हो, उसे मारने वाला ना निर्जीव हो और ना सजीव! इसलिए भगवान विष्णु ने आधे पुरुष और आधे सिंह का रूप लेकर हिरण्यकशिपु का वध किया। इस तरह ब्रह्मा द्वारा हिरण्यकशिपु को दिया अमरता का वरदान विफल हो पाया। भगवान विष्णु, नरसिंह के रूप में एक स्तंभ में से उस क्षण प्रकट हुए जब ना दिन था, ना रात्रि थी। वह स्तंभ, हिरण्यकशिपु के महल के प्रवेश द्वार की ड्योढ़ी पर बना हुआ था। इसलिए वह ना घर के भीतर था, ना बाहर। विष्णु ने उसे अपने नाखूनों से मारा जो ना सजीव होते हैं, ना निर्जीव। विष्णु ने जब हिरण्यकशिपु को अपनी गोद में लिटा कर मारा तो बहना धरती पर था ना आकाश में इस तरह विष्णु ने हिरण्यकशिपु का वध किया अंत में प्रहलाद असुरों का राजा बना और उसे अपनी प्रजा का भरपूर प्रेम और सम्मान प्राप्त हुआ लेकिन जैसा पहले कहा जा चुका है ।कोई व्यक्ति पूरी तरह अच्छा या बुरा नहीं होता।
विष्णु-प्रह्लाद युद्ध -
हिंदू दर्शनशास्त्र यही कहता है। प्रहलाद का बाद का जीवन इसी बात का एक विचित्र उदाहरण प्रस्तुत करता है। देवी भागवत की एक कहानी में यह घटना उल्लेखित है जहां प्रहलाद और भगवान विष्णु को आपस में युद्ध करना पड़ा वे दोनों एक दूसरे से अनेक वर्षों तक लड़ते रहे ।और उस युद्ध का अंत किसी को दिखाई नहीं पड़ता। अंत में युद्ध रोक दिया जाता है। जिसमें दोनों में से किसी भी पक्ष की वजह नहीं होती इसके बाद प्रहलाद अपने पुत्र विरोचन को राज्य सौंप देता है और तीर्थ यात्रा पर चला जाता है। यह घटना प्रहलाद की मूल प्रवृत्ति की विजय को दर्शाती है ।आखिरकार प्रहलाद को मोक्ष प्राप्त हुआ और भगवान विष्णु ने उसे यह वरदान दिया कि अगले जन्म में प्रहलाद ही मनु बनकर पैदा होगा।
अंधविश्वास नहीं ज्ञान को बढ़ावा -
इसलिए हिंदू धर्म की विचारधारा अंदरूनी तौर पर अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देती वल्कि ज्ञान को अधिक लचीले ढंग से प्रसारित और प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है। यह उन परंपराओं और धर्मों की तरह नहीं है जो भारत से बाहर विकसित हुए और जिन्हें विरासत में प्राप्त किया गया। व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक उन धर्म दर्शन सिद्धांतों परंपराओं अनुष्ठान आदि का पालन करता है। उस पर सवाल उठाने का मतलब ही नहीं है। परंतु सनातन परंपरा में हम अपने गुरु से प्रश्न करते हैं। फिर उसे सुनते हैं उस पर विचार करते हैं और फिर अमल करते हैं ,उसके बाद ही हम किसी बात पर विश्वास करते हैं। इसका सबसे श्रेष्ठ उदाहरण भगवत गीता है। जिसे हिंदुओं का सबसे पवित्र धर्म ग्रंथ माना जाता है।
नर-नारायण -
इसमें अर्जुन नर का अवतार है और वह नारायण के अवतार भगवान श्री कृष्ण से प्रश्न करता है। अर्जुन इस अध्याय में केवल प्रश्न ही नहीं करता बल्कि ईश्वर के साथ वार्ता और तर्क वितर्क भी करता है। अर्जुन ऐसे प्रश्न केवल कृष्ण की दिव्यता से अनजान होने की अवस्था में ही नहीं बल्कि उनका विश्वरूप देखने के बाद भी करता है। अर्जुन कृष्ण से घबराता नहीं है। ग्यारहवें अध्याय में विराट स्वरूप देखने के बाद भी वह अगले सात अध्याय तक लगातार कृष्ण से प्रश्न करता है। यह इस बात को दर्शाता है की सनातन धर्म आपको पूरी स्वतंत्रता प्रदान करता है ।यही कारण है कि गीता को भगवान का गीत कहा गया है। इसमें धर्म सिद्धांत नहीं बताए गए हैं गीता में भगवान दिव्य शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। और अर्जुन मानव मस्तिष्क की वास्तविक अवस्था को दर्शाता है। जो चीजों का मूल्यांकन करने उनकी तुलना करके फिर उन्हें समझने के लिए विकसित हुआ है