भारत के विश्वविद्यालयी शिक्षा में क्रान्तिकारी कदम है मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम

भारत के विश्वविद्यालयी शिक्षा में क्रान्तिकारी कदम है मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम
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निरंजन कुमार

वेबडेस्क। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कीके संरक्षण और मार्गदर्शन में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की दूसरी वर्षगाँठ कुछ ही दिन पहले मनाई गई. फिर 7 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली नीति आयोग की अहम बैठक में भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 के क्रियान्वनपर गहन चर्चा हुई. 21वीं सदी की चुनौतियों से मुकाबला के लिए तैयार एनईपी-2020 के उद्देश्य बहुत उच्च और दूरगामी हैं. लेकिन इनका क्रियान्वनभी अपने आप में बड़ी एक चुनौती है. एनईपी-2020 का एक प्रमुख लक्ष्य विद्यार्थियों का चरित्र निर्माण है. एनईपी-2020 अभिलेख के 'परिचय' मेंही उल्लिखित हैकि शिक्षार्थियों में नैतिकता, तार्किकता, करुणा और संवेदनशीलताविकसित करनी चाहिए ताकि शिक्षार्थियों के जीवन के सभी पक्षों और क्षमताओं का संतुलितविकास हो सके।


दरअसल भारतीय चिंतन परम्परा में चरित्र निर्माण और समग्र व्यक्तित्व विकास, विद्या या कहें कि शिक्षा का महत्वपूर्ण लक्ष्य माना जाता है. वर्तमान में अनेक युवाओं के व्यक्तित्व में विभिन्न असंतुलन को देखते हुए चरित्र निर्माण और समग्र व्यक्तित्व विकास की जरूरत और बढ़ जाती है. यह केवल संयोग नहीं कि एनईपी-2020 की घोषणासाथही'मानवसंसाधनप्रबंधनमंत्रालय'कानामबदलकर'शिक्षा मंत्रालय' कर दियागया. 'मानव संसाधन' सेध्वनितहोताथाकिमानवीयसंवेदना, भावोंवसंस्कारोंसेरहितमनुष्यजैसेएकभौतिकसंसाधनमात्रहोजिसेइस्तेमालकरफेंकदियाजाए. यहएकतरहसे पश्चिम केभौतिकवादीचिन्तनसेप्रेरितथा. जबकि 'शिक्षा' अभिधानमनुष्यकेभौतिकवादीपहलूकेसाथ-साथचारित्रिक, सांस्कृतिकऔरमनोवैज्ञानिकसभीपक्षोंकोसमाहितकरताहै, जो भारतीय चिंतन-पद्धतिकाप्रतिबिम्बनहै. युवाओं की इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखकर एनईपी-2020 के क्रियान्वन की दिशा में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा 'वैल्यूएडीशनकोर्सेस' अर्थात मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रमों का निर्माण किया गया है. देश के विश्वविद्यालयी व्यवस्था में यह एक अभिनव और ऐतिहासिक कदम है जिसके दूरगामी परिणाम होंगे।

पश्चिम से प्रभावित जीवन शैली,टेक्नॉलोजी के खोल में सिमटती हुई दुनिया,रियललाइफ के बजाय वर्चुअल लाइफ और सोशल मीडिया का बढ़ता वर्चस्व, शारीरिक और श्रम-परक खेलकूद की जगह गैजेटगेम्स में उलझता जीवन, बढ़ता एकाकीपन जैसी चीजों ने देश के युवाओं को एक खतरनाक गिरफ्त में लेना शुरू किया है.इनका दुष्परिणाम है ऐसे असंतुलित व्यक्तित्व का निर्माण जो परिवार, समाज और देश के लिए भी अनुत्पादक, बोझ और खतरनाक साबित हो रहे हैं. आए दिन युवाओं से सम्बन्धित अनेक असामान्य और डरावनी घटनाएँ हमें देश भर से सुनने को मिलती हैं. शिक्षा के धरातल पर इन्हीं से निपटने के लिए एक सुचिंतित, सुविचारित और दूरगामी प्रयास है मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम, जो दिल्ली विश्वविद्यालय ने तैयार किया है, और जिस पर पूरे देश की नज़र है. देश भर के विशेषज्ञों की सहायता से तैयार इन पाठ्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य छात्रोंकासर्वांगीण व्यक्तित्व विकास और चरित्र निर्माण है. इसके घटकों में नैतिक,सांस्कृतिक और संवैधानिक मूल्यों काबीजारोपण, 'भारतीय ज्ञान परम्परा' से जुड़ाव, विवेचनात्मक चिंतन, वैज्ञानिक स्वभाव,संप्रेषण कौशल, रचनात्मक कल्पना शक्ति आदिसॉफ्टस्किल्स और टीम वर्कका विकास करना है। एनईपी2020 की भावना के अनुरूप इन पाठ्यक्रमों की एक बड़ी विशेषता यह है कि मैकालेमॉडलकी तरह ये कोरे सैद्धांतिक कोर्स नहीं होंगे. बल्कि प्राचीन भारतीय अध्ययन पद्धति या महात्मा गाँधी के मॉडल से प्रेरित सभी कोर्सों में प्रैक्टिकल, प्रायोगिक या एप्लाइडअध्ययनकम से कम 50% होगा.इनमें फील्डवर्क, सर्वे से लेकर प्रोजेक्ट या अन्य क्रियाकलाप होंगे. अहम बात यह है कि 50% प्रैक्टिकल आधारित अध्ययन केवल विज्ञानपरक पाठ्यक्रमों में ही नहीं बल्कि मानविकी-सामाजिक विज्ञानों या कॉमर्स की दिशा में झुके हुए पाठ्यक्रमों में भी होगा, जो छात्रों को व्यवहारिक अनुभव प्रदान करेगा. इन पाठ्यक्रमों की एक अन्य विशेषता यह है किविशुद्ध लेबोरेट्री की जगह प्रैक्टिकल या एप्लाइड क्रियाकलाप 'जीवन की प्रयोगशाला' में संपन्न होंगे जो छात्रों को वृहत्तर समाज-देश से जोड़ने का कार्य करेंगे. उदाहरण के लिए 'स्वच्छ भारत' नामक कोर्स जो प्रधानमंत्री मोदी के 'स्वच्छ भारत अभियान' से अभिप्रेरित है, केवल स्वच्छता सम्बन्धी नीति, योजना और सम्बन्धित विषयों की केवल सैद्धांतिक जानकारी नहीं देगा, बल्कि इसमें'स्वच्छता इंटर्नशिप','स्वच्छतासर्वे' जैसे कई प्रायोगिक क्रियाकलाप हैं जो सीधे समाज से जुड़कर होंगे. एक तरफ ये हमारे युवाओं में सामाजिक दायित्व का बोध और सेवा का भाव भरेंगे, तो दूसरी तरफ उनमें देशप्रेम का भाव भी विकसित होगा. इन कोर्सेस की एक अन्य विशेषता है कि इनको साइंस,ह्यूमैनिटीज-सोशलसाइंस और कॉमर्स आदि सभी के छात्र पढ़ सकते हैं.

आगामी अकादमिक सत्र 2022-23 के पहले सेमेस्टर के लिए अब तक 24 कोर्स बनाए जा चुके हैं. पूरे स्नातक प्रोग्राम के लिए कुल लगभग 100 ऐसे बनाए जाएंगे. वर्तमान के कुछ प्रमुख कोर्स इस प्रकार हैं-'वैदिक गणित','स्वच्छ भारत','फिट इंडिया','आर्ट ऑफ बीइंगहैप्पी','इमोशनलइंटेलिजेंस','पंचकोश:होलिस्टिकडेवलपमेंट','भारतीय भक्ति परंपरा और मानव मूल्य','आयुर्वेद एंड न्यूट्रिशन','साइंस एंड सोसायटी','योग:फिलॉसफी एंड प्रैक्टिसेज','साहित्य संस्कृति और सिनेमा','प्राचीन भारतीय परंपरा में आचार-नीति और मूल्य', 'कांस्टीट्यूशनलवैल्यूज एंड फंडामेंटलड्यूटीज', 'डिजिटलएंपावरमेंट' इत्यादि. इन कोर्सेसकी एक अन्य विशिष्टता है किइनमें समृद्ध भारतीय ज्ञान परंपरा के तत्वों काविशेष ध्यान रखा गया है, जो एनईपी 2020 में भी निर्दिष्ट है. उदाहरण के लिए 'वैदिक गणित' का पाठ्यक्रम अपने ढंग का अद्वितीय कोर्स है जोक्रेडिट कोर्स के रूप में देश के किसी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाएगा. 'वैदिक गणित' की चर्चा प्रधानमंत्री मोदी अपने कई वक्तव्यों में कर चुके हैं. यह हमारा दुर्भाग्य रहा कि गणित की हमारी प्राचीन समृद्ध विरासत को स्वाधीनता पश्चात भी हम अपने पाठ्यक्रमों में शामिल नहीं कर पाए. 'वैदिक गणित' विद्यार्थियों की संगणन क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है. ध्यातव्य है कि आइआइएम में प्रवेश के लिए 'कैट एग्जाम' की कोचिंग कराने वाले संस्थान वैदिक गणित की टेक्नीक सिखाते हैं. यही नहीं,वैदिक गणित विद्यार्थियों के क्रिटिकलथिंकिंग को भी बढ़ावा देगा, और भारत के प्रति गौरव-सम्मान का भाव भी भरेगा. वर्तमान शिक्षा प्रणाली से पैदा अनेक युवाओं में प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रति एक खिल्ली का भाव दिखाई देता है. इसी तरह आज युवाओं में बढ़ते हुए असंतुलन, मानसिक तनाव और आक्रामकता आदि से निपटने में 'पंचकोश:होलिस्टिकडेवलपमेंट' बहुत सहायक सिद्ध होगा. तैत्तिरीय उपनिषद में उल्लिखित 'पंचकोश' के आधार पर व्यक्तित्व-चरित्र का निर्माण युवाओं को एक नई दिशा देने का कार्य करेगा. 'योग :फिलॉसफी एंड प्रैक्टिसेज' कोर्स भी आज के जटिल और तनावपूर्ण जीवन में बहुत उपयोगी सिद्ध होने वाला है. कुल पाठ्यक्रमों में से 25% कोर्स भारतीय ज्ञान परंपरा सम्बन्धी विषयों से ही हैं. अन्य कोर्सों में भी भारतीय ज्ञान परंपरा के तत्वों को यथासंभव शामिल किया है. जैसे 'कांस्टीट्यूशनलवैल्यूज एंड फंडामेंटलड्यूटीज' वाले कोर्स में 'सेक्युलरिज्म' के साथ-साथ 'सर्व धर्म समभाव' की अवधारणा भी जोड़ी गई है. धर्म को लेकर हमारी सांविधानिक स्थिति 'सेक्युलरिज्म' की अवधारणा के बजाय भारतीय 'सर्व धर्म समभाव' की अवधारणा के ज्यादा अनुरूप है. इसी तरह 'रीडिंग इंडियन फिक्शन इन इंग्लिश' वाले पाठ्यक्रम तक में 'भारत माता' की अवधारणा को जन-जन में लोकप्रिय बनाने वालीकालजयी कृति 'आनंदमठ' (अंग्रेजी अनुवाद) को शामिल किया गया है.

21वीं सदी में दुनिया में परचम लहराने को तैयार युवाओं का'न्यू इंडिया' आर्थिक रूप से तो तैयारी कर ही रहा है. लेकिन यह जरूरी है कि'न्यू इंडिया' संतुलित, चरित्रवान, सामाजिक दायित्व-बोध और राष्ट्रप्रेम के भाव से युक्त भी हो, तभी भारत पुनः जगद्गुरु बन पाएगा.डीयू के 'वैल्यूएडीशनकोर्सेस' देश के विश्वविद्यालयों के लिए इस संदर्भ में एक मॉडल होंगे, इसमें संदेह नहीं।

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