भारत की विजय गाथा : 13 दिनों में टूट गया था पाकिस्तान

भारत की विजय गाथा : 13 दिनों में टूट गया था पाकिस्तान
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रमेश शर्मा

वेबडेस्क। पाकिस्तान भारत का ही हिस्सा है, उसका जन्म भारत की भूमि पर हुआ। वहां रहने वाले लोग भी भारतीय पूर्वजों के वंशज हैं। फिर भी वे लोग दिन-रात भारत के विरुद्ध विष वमन और भारत को मिटाने का दंभ भरते हैं। पाकिस्तान ऐसा देश है जो अपने जन्म के पहले दिन से नहीं बल्कि अपने गर्भ काल से भारत की धरती पर रक्तपात का षड्यंत्र कर रहा है। इन षड्यंत्रों में सबसे भीषण था 1971 का युद्ध। जो उसने भारत पर थोपा लेकिन बुरी तरह मुंह की खाई। भारत के प्रति उत्तर से मात्र 13 दिनों में वह टूट गया। यह टूटन उसके मनोबल पर भी आई और उसके भू-भाग पर भी।

1971 का यह युद्ध कुल 13 दिनों तक चला था। दुनिया के इतिहास में यह सबसे छोटा निर्णायक युद्ध माना जाता है। इसके समापन के साथ एक नये देश का उदय हुआ जो अब बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है। बांग्लादेश के अस्तित्व की भूमिका 1947 में पाकिस्तान के निर्माण के साथ ही पड़ गयी थी। तब यह प्रक्षेत्र पाकिस्तान का हिस्सा बनकर पूर्वी पाकिस्तान कहलाया था। पर भाषा को लेकर मतभेद पहले दिन से था। सल्तनत काल में चले बलपूर्वक धर्मांतरण अभियान में यहाँ के निवासियों की पूजा उपासना पद्धति तो बदल गई थी पर भाषा के प्रति लगाव कम न हुआ था।

बांग्ला भाषा से लगाव -

बंगाली लोग अपनी राष्ट्रीयता बदलकर पाकिस्तानी के रूप पहचाने जाने लगे लेकिन उन्होंने अपनी मातृभाषा से लगाव न छोड़ा। वे चाहते थे कि उनकी भाषा बांग्ला ही रहे। जबकि पाकिस्तानी शासक उनकी यह बंगाली पहचान बदलना चाहते थे। वे बलपूर्वक उर्दू और अरबी का दबाव बना रहे थे। संघर्ष यहीं से शुरू हुआ। इसको लेकर 1948 से ही आंदोलन आरंभ हो गये थे। जिसका दमन पाकिस्तान की सरकार और सेना करती रही थी।

शेख मुजीबुर्रहमान की गिरफ्तारी -

1950 में बांग्ला भाषा के लिये एक बड़ा आंदोलन और उसके सैन्य दमन ने पूर्वी पाकिस्तान में निवासरत बंगालियों के मन में विभाजन की धारा खींच दी। यह अंतर्धारा और इसका दमन, दोनों 1968 के बाद तेज हुआ। पूर्वी पाकिस्तान में बाकायदा मुक्ति वाहिनी अस्तित्व में आ गयी और इसके नेता के रूप में शेख मुजीबुर्रहमान को जाना गया। 1970 आते-आते सैनिकों के जुर्म और बंगालियों का दमन व पलायन दोनों बढ़ गये। पाकिस्तानी सैनिक सामूहिक जुर्म ढाने लगे। बड़ी संख्या में बंगाली लोग भारत आकर शरण लेने लगे। 25 मार्च 1971 को बांग्ला अभियान के नेता शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया। जिसका भारत ने विरोध किया और मुक्ति वाहनी को नैतिक समर्थन देने की घोषणा भी कर दी। भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने आंदोलन को खुला समर्थन दिया और जो लोग भारत आ रहे थे, उन्हें भी पर्याप्त संरक्षण दिया।

युद्ध की घोषणा -

पाकिस्तान ने अपनी समस्या का ठीकरा भारत के सिर फोड़ना शुरू किया और दुनिया में यह प्रचार शुरू किया कि भारत अशांति फैला रहा है। इसे लेकर पाकिस्तान में भारत के खिलाफ जुलूस निकलने लगे।भारत के खिलाफ जमकर नारे लगते। ऐसे जुलूसों को सत्तारूढ़ दल के नेता संबोधित करते और भारत को मिटाने का दंभ भरते। इन तमाम कारणों से आरंभ हुये युद्ध की तिथि भले तीन दिसम्बर 1971 मानी जाती हो पर पाकिस्तान ने अपनी ओर से यह युद्ध 25 नवम्बर 1971 को ही आरंभ कर दिया था, जब लाहौर में ऐसी ही रैली को संबोधित करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भुट्टो ने बाकायदा युद्ध की घोषणा की और उसकी तीनों सेनाओं ने मोर्चाबंदी शुरू कर दी थी। पाकिस्तान ने जहाँ करांची बंदरगाह पर नौसेना बेड़े तैनात किये, वहीं सीमा पर फौज बढ़ा कर घुसपैठ शुरू कर दी थी।

हवाई हमले शुरू किए -

यह वही तकनीकी थी जो पाकिस्तान ने 1948 और 1965 के युद्ध के पूर्व अपनाई थी। लेकिन इस बार भारत सतर्क था भारत युद्ध तो नहीं चाहता था पर युद्ध से निबटने के लिये पूरी तरह तैयार था। भारत ने लगभग दस दिनों तक पाकिस्तान की घुसपैठ पर नजर रखी और स्वयं को मजबूत किया। दूसरी तरफ पाकिस्तान को लगा कि उसकी घुसपैठ सफल हो रही है। इससे उत्साहित होकर उसने 02 और 03 दिसम्बर 1971 की रात भारत पर हवाई हमला बोल दिया। पाकिस्तान की वायुसेना ने एक साथ एक रात में भारत के कुल 11 स्थानों पर बम गिराये। यह बम उसने केवल सीमावर्ती क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि भारत की सीमा में 480 किमी तक निशाना साधा। पाकिस्तान ने इस अभियान का नाम "ऑपरेशन चंगेज" दिया था और इसमें उसके 41 युद्धक विमानों ने हिस्सा लिया।

इंदिरा का संदेश -

इस बमबारी से पूरा भारत सकते में आ गया। 03 दिसम्बर को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने राष्ट्र के नाम संदेश दिया और सेना को आदेश दिया कि वह पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे। भारतीय सेना ने तब तीनों प्रकार की रणनीति अपनाई। जल, थल और हवाई युद्ध की। भारतीय थल सेना जहाँ पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से में घुसकर वहां संघर्षरत बंगलादेश मुक्ति वाहिनी की खुली मदद करने लगी, वहींं नौसेना की पनडुब्बी ने बंगाल की खाड़ी में तैनात पाकिस्तान के उस एयरबेस को उड़ा दिया, जिससे पाकिस्तान के युद्धक विमान उड़ान भर रहे थे। तीसरे, वायुसेना ने पाकिस्तान के उन मिलिट्री कैंपों पर भी धावा बोला जो उसकी थल सेना के आश्रय स्थल थे। यह सब काम केवल आरंभिक चार दिनों में हो गया। 09 दिसम्बर से पाकिस्तान की फौज डिफेन्स में आई। 10 दिसम्बर को भारत ने उसका सैन्य संचार तंत्र बिखेर दिया। हालत यह हुई कि पाकिस्तान के किस कैंप में कितनी सेना है, उसकी हालत क्या है, वह जीवित भी है या नहीं, यह सब सूचनाएं बंद हो गयीं। पाकिस्तान की सेना का सारा ताना-बाना बिखर गया।

भारत ने ढाका पर किया कब्ज़ा -

भारतीय फौज ने 14 दिसम्बर को ढाका पर कब्जा कर लिया और 15 दिसम्बर को पूर्वी पाकिस्तान में तैनात पाकिस्तानी सैनिक या तो बर्मा भाग गये या सरेंडर कर जान की भीख मांगने लगे। 15 दिसम्बर को भारत ने ढाका पर आधिपत्य की अधिकृत घोषणा की। इसी के साथ वहां तैनात पाकिस्तानी कमांडर ने फौज के आत्मसमर्पण का प्रस्ताव दिया, जिसे 16 दिसम्बर को मानते हुए भारत ने अपनी ओर से युद्ध विराम की घोषणा कर दी।

युद्ध की मुख्य बातें -

  • - युद्ध में पाकिस्तान के कुल 97368 युद्ध बंदी बनाये गये, इसमें 91 हजार वर्दीधारी सैनिक, दो हजार अर्धसैनिक और चार हजार अन्य सहयोगी थे।
  • - युद्ध में 3843 भारतीय सैनिक शहीद हुए जबकि पाकिस्तान के 09 हजार सैनिक मारे गये।
  • - युद्ध में भारतीय वायुसेना ने कुल 5878 उड़ानें भरीं, इसमें 4000 लगभग पश्चिमी मोर्चे और बाकी पूर्वी मोर्चा पर थी।
  • - 2 जुलाई 1972 को शिमला समझौता हुआ, जिसके तहत भारत ने पाकिस्तानी युद्धबंदी लौटाये और जीती हुई जमीन भी वापस कर दी।

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