क्या है PFI? जानिए क्या है 10% वाला फॉर्मूला
वेबडेस्क। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया या पीएफआई एक इस्लामिक संगठन है। ये संगठन अपने को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला बताता है। संगठन की स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट के उत्तराधिकारी के रूप में हुई। संगठन की जड़े केरल के कालीकट में गहरी हैं। फिलहाल इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में बताया जा रहा है। शाहीन बाग वो ही इलाका जहां पर सीएए और एनआरसी के विरोध में पूरे देश में 100 दिन तक सबसे लंबा आंदोलन चला था।
एक मुस्लिम संगठन होने के कारण इस संगठन की ज्यादातर गतिविधियां मुस्लिमों के इर्द गिर्द ही घूमती हैं। कई ऐसे मौके ऐसे भी आए हैं जब इस संगठन से जुड़े लोग मुस्लिम आरक्षण के लिए सड़कों पर आए हैं। संगठन 2006 में उस समय सुर्ख़ियों में आया था जब दिल्ली के रामलीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था। तब लोगों की एक बड़ी संख्या ने इस कांफ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। फिलहाल कहा जा रहा है कि इस संगठन की जड़े देश के 24 राज्यों में फैली हुई है। कहीं पर इसके सदस्य अधिक सक्रिय हैं तो कहीं पर कम। मगर मुस्लिम बहुल इलाकों में इनकी जड़े काफी गहरी है।संगठन खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा का पैरोकार बताता है और मुस्लिमों के अलावा देश भर के दलितों,जनजतियों पर होने वाले अत्याचार के लिए समय समय पर मोर्चा खोलता है।
पार्टनर एनजीओ का सुगठित जाल
एनडीएफ के अलावा कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी , तमिलनाडु के मनिथा नीति पासराई , गोवा के सिटिजन्स फोरम, राजस्थान के कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी, आंध्र प्रदेश के एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस समेत अन्य संगठनों के साथ मिलकर पीएफआई ने कई राज्यों में अपनी पैठ बना ली है। इस संगठन की कई शाखाएं भी हैं। जिसमें महिलाओं के लिए- नेशनल वीमेंस फ्रंट और विद्यार्थियों के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया। गठन के बाद से ही इस संगठन पर कई समाज विरोधी व देश विरोधी गतिविधियों के आरोप लगते रहे हैं।
केरल सरकार का दोगलापन
केरल सरकार ने इस संगठन का बचाव करते हुए केरल हाईकोर्ट में दलील दी थी कि यह सिमी से अलग हुए सदस्यों का संगठन है, जो कुछ मुद्दों पर सरकार का विरोध करता है। सरकार के दावों को कोर्ट ने खारिज करते हुए प्रतिबंध को बरकरार रखा था। इतना ही नहीं पूर्व में इस संगठन के पास से केरल पुलिस द्वारा हथियार, बम, सीडी और कई ऐसे दस्तावेज बरामद किए गए थे जिसमें यह संगठन अलकायदा और तालिबान का समर्थन करती नजर आयी थी। दूसरी तरफ केरल की सरकार इस संगठन का बचाव भी करती है।
उप्र में गहरी जड़ें जमा चुका है पीएफआई -
केंद्रीय एजेंसियों के साथ उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से साझा किए गए एक खुफिया इनपुट और गृह मंत्रालय के मुताबिक, यूपी में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, वाराणसी, आजमगढ़ और सीतापुर क्षेत्रों में पीएफआई सक्रिय रहा है। दंगे भड़काने में भी इनकी भूमिका रही है। माहौल को खराब करने के लिए संगठन हर तरह की मदद करने में आगे रहता है।कानपुर की घटना भी इसी संगठन के इशारों पर हुई थी।
मप्र में मालवा बना केंद्र
मप्र के मालवा क्षेत्र में सिमी का सशक्त नेटवर्क और नेतृत्व काम करता रहा है।उज्जैन, शाजापुर,देवास, इंदौर,धार, मन्दसौर, नीमच झाबुआ,आलीराजपुर में सिमी का नेटवर्क सफदर नागोरी के समय से ही फलफूल गया था।आज भी भोपाल,रायसेन के अलावा मप्र के उत्तरी अंचल में भी पीएफआई की गतिविधियां पर्दे के पीछे से सक्रिय हैं।
कुछ एनजीओ और संगठन सहयोगी
पीएफआई ने बहुत ही चालाकी से अपने मिशन के साथ दलित औऱ जनजाति सम्बद्ध समूहों और कुछ एनजीओ को अपने साथ जोड़ लिया है। भीम आर्मी,दलित पैंथर्स, मिशन अंबेडकर,बिरसा ब्रिगेड,तँत्या सेना,इंकलाबी जमात,दीक्षाभूमि,जैसे संगठन मप्र में भी एक्टिव है जिनकी फंडिंग की जांच की जाए तो पीएफआई के कनेक्शन सामने आने की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता है।इन छोटे छोटे संगठनों की तकरीरें बहुत कुछ स्पष्ट कर देती हैं कि मूल जड़ कहाँ पर हैं।
क्या है पीएफआई का 10% वाला फॉर्मूला
जो दस्तावेज हाल ही में पीएफआई के पास से बरामद हुए है उनमें एक फार्मूले का जिक्र है। जिनमे भारत को 2047 तक इस्लामिक शासन की ओर ले जाने का जिक्र किया गया है। इसके लिए उन्होंने दस्तावेजों में पुख्ता प्लानिंग भी बनाई। जब्त किए गए दस्तावेजों के पेज नंबर 3 में 10% वाले फॉर्मूले का जिक्र किया गया है। पीएफआई को विश्वास है कि अगर कुल मुस्लिम आबादी का केवल 10% भी इसके साथ जुड़ता है, तो भी पीएफआई 'कायर बहुसंख्यक' समुदाय को उसके घुटनों पर ला देगा और इस्लामी शासन की स्थापना करेगा।