अब किधर जायेंगे मुसलमान ?
वेबडेस्क। उर्दू मुहावरा ''गुनाह बेलज्जत'' अब अखिलेश यादव ने समझ लिया होगा। प्राणपण से, तहे दिल से यूपी के मुसलमानों का भला करने वाले सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष पर इन इस्लमी नेताओं ने ''पर्याप्त न करने'' का आरोप लगाया है। रोष है कि खान मोहम्मद आजम खान से सीतापुर जेल में चौबीस माह में केवल एक बार ही सपा मुखिया मिलने गये।
अवध के मुसलमान का बड़ा तबका जिनकी बड़ी किरदारी रही इस्लामी जमूरियाये पाकिस्तान की रचना में, सैफई के इस यादव पिता—पुत्र की कृतज्ञता नकार रहे हैं। मगर यथार्थ यह है कि मुलायम सिंह यादव और अखिलेश ने यूपी व मुसलमानों के लिये जो किया वह माडल हाउस (लखनऊ) के निवासी रहे चौधरी खालिकुज्जमान ने भी नहीं किया होगा। मोहम्मद अली जिन्ना का यह दायां हाथ भारत में रहा और पांच साल बाद कराची गया। कांग्रेसी नेता रफी अहमद किदवाई ने इन्हें मंत्री नहीं बनने दिया था। अत: भारत छोड़ दिया। मेरठ के मुस्लिम लीग नेता नवाब मोहम्मद इस्माईल खान जो जिन्ना के उत्तराधिकारी नामित थे भी भारत में अपनी अकूत जायदाद बचाने के कारण कराची नहीं गये। नवाब ने ही अपनी समूर टोपी जिन्ना को भेंट दी थी जो बाद में मशहूर जिन्ना टोपी कहलाई। तुलनात्मक रुप में इस नवाब से भी बड़े रक्षक यादव पिता—पुत्र रहे मुसलमानों के।
अत: क्या तुक है आजम खान के विधायक पुत्र अब्दुला और उनके मीडिया प्रवक्ता फसाद अली खान के कथन कि करीब 111 सपा विधायक केवल आजम खान के कारण विजयी हुये है। मुस्लिम वोट उन्हें थोक में मिला। मायावती का तो आरोप था कि यदि मुसलमान बहुजन समाज पार्टी को वोट देते तो भाजपा हार जाती। बसपा नेता का दावा है कि 89 सीटों पर उन्होंने मुसलमान प्रत्याशी नामित किये ताकि सपा पिछड़ जाये। आजम—समर्थक जो आज कह रहे है उसे मजलिस नेता असदुद्दीन ओवैसी पहले ही कह चुके हैं। उनकी राय में अखिलेश ने मिल्लत की पूरी उपेक्षा की है।
अब कुछ वे तथ्य और बतादें जो अखिलेश यादव ने आजम खान के हितैषी के नाते किये थे। मगर हिन्दू मतदाता इनसे रुष्ट हो गये और भाजपा के पक्ष में चले गये। मसलन अजमेर दरगाह के ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के उर्स पर यूपी में अखिलेश ने अवकाश घोषित कर दिया था। किन्तु आजम भी बाज नहीं आये। रामपुर में 80 बाल्मीकी परिवारों ने आजम खान से अपने मकान बचाने के लिये कलमा पढ़ा, मुस्लमान बन गये (10 अप्रैल 2015 : इंडयन इक्सप्रेस)। अपने अनुपूरक बजट (नवम्बर 2012) में आजम खान ने सदन में घोषणा की थी कि एक पाई भी हाथी या मूर्ति पर व्यय नहीं होगी। इससे बसपा का नाराज होना स्वाभाविक था। उधर बेगम महताब जमानी नूरबानों ने चेताया था कि : ''आजम के साथ सरकार है, हमारे साथ आवाम है।'' मगर विधानसभा चुनाव के चन्द माह पूर्व ही मलिहाबाद में मुसलमानों की विशाल जनसभा (18 नवम्बर 2021) में मिल्लत का खुला ऐलान था कि : ''सच्चा समाजवादी कभी किसी के बहकावें में नहीं आयेगा।'' अतएव उन सब ने संकल्प किया था कि लोहिया के विचारों को आगे बढ़ाते हुए नेता मुलायम सिंह के पद चिन्हों पर चलकर जाति धर्म की राजनीति का बीज बोने वाली भारतीय जनता पार्टी को 2022 चुनाव में सरकार से बेदखल करके समाजवादी पार्टी को ज्यादा सीटें जितायेंगे। मगर यह हुआ नहीं। मुस्लिम समाज एकत्र होकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के हाथों को मजबूत करने का काम करें। पूर्व विधायक इरशाद खां ने कहा था कि ''सभी को चाहिये कि आपसी मतभेद भुलाकर समाजवादी पार्टी को मजबूत करने का काम करें और मुस्लिम समाज से एकजुट होकर सपा को वोट करने की बात कही गयी थी।
तब एक ही फिजा सपा के पक्ष में थी। कम से कम ठेके पर ऐलानिया तौर पर चन्द मीडियकर्मी कह रहे थे कि ''योगीजी रुखसत हो जायेंगे, लाल टोपीवाले सरकार बनायेंगे।''
अब कुछ उल्लेख हो कि अखिलेश ने आजम पर कितने नेमते बरसायीं। अखिलेश सरकार ने वक्फ बोर्ड का ट्रिब्यनल रामपुर में बनवाया। इस पर उच्च न्यायालय ने कारण पूछा था। तब आजम खान का दबाव था सपा सरकार पर। आजम का बस चलता तो उनके नेता मुलायम सिंह यादव की मूर्ति लगवाकर रामपुर में मंदिर निर्मित हो जाता। मगर बरेलवी आस्थावानों के मंजरे इस्लाम द्वारा विरोध हो गया।
आजम खान ने भगोड़े डा. जाकिर नाईक का पक्ष लिया था जो भाग कर मलेशिया में पनाह पाया। डा. नाईक पर इल्जाम है कि उसके प्रवचन सुनकर कई मुस्लिम युवा आतंकी हो गये। आजम की संसदीय अर्हता पर तो तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक की उक्ति थी (1 अप्रैल 2016) कि संसदीय कार्य मंत्री बनने के लिये आजम खान अक्षम है। वे संसदीय मर्यादाओं से अनभिज्ञ हैं। तभी आजम ने कहा था कि ''वे भारत के प्रधानमंत्री बन सकते हैं क्योंकि उन्हें चाय बनानी आती है। और ढोल भी बजा सकते हैं।'' मोदी की भांति।
मुस्लिम वोट को लुभाने हेतु अखिलेश ने (1 नवम्बर 2021) कह दिया था कि सरदार पटेल और जिन्ना राष्ट्रभक्त रहे। जब कि वास्तविकता यह है कि सरदार पटेल राष्ट्रनिर्माता थे और जिन्ना देश विभाजक। मगर जिन्ना की श्लाधा सुनकर उनके मुसलमान वोटर बड़े प्रमुदित हुये थे।
सपा के संदर्भ में यह गमनीय है कि मुसलमान मतदाताओं को रिझाने हेतु लोहियावादी पिता—पुत्र ने तीन तलाक, चार बीवी और बुर्का—हिजाब को प्रचारित किया था। लोहिया ने बुर्का को पुरुषों का दासत्व बताया था। चार शादियों और तीन तलाक को नरनारी समता का घोर उल्लंघन लोहिया ने बताया था। नरेन्द्र मोदी ने लोहिया के इन नियमों को लागू किया नतीजन मुस्लिम महिलाओं ने कमल का बटन दबाया।
इन मुसलमानों ने अखिलेश पर यह आरोप भी आयद किया था कि मुख्तार अंसारी, अतीक और बरेली के सपा विधायक शर्जिल इस्लाम के पेट्रोल पम्प पर बुलडोजर का विरोध अखिलेश ने कभी नहीं किया। शायद पूर्व मुख्यमंत्री को दायित्य बोध था।
उधर संभल के सपा (91—वर्षीय) सांसद शफीकुर रहमान वर्क ने भी कहा कि सपा सरकार मुसलमानों की उपेक्षा कर रही है। अब मुद्दा यह हे कि यदि मुसलमानों की नाराजगी बनी रही तो आगामी संसदीय निर्वाचन (2002) में समाजवादी पार्टी की अपार हानि हो सकती है। मगर आज के संदर्भ में उत्सुकता रहेगी कि आजमगढ़ के प्रस्तावित लोकसभा उपचुनाव में क्या होगा ?
केवल मुसलमान वोट के खातिर मुलायम सिंह यादव ने रामभक्त कारसेवकों पर गोली चलवा दी थी। परिणामस्वरुप भाजपा तब सत्ता पर आ गयी थी। इस बार स्वयं अखिलेश यादव अपने चुनाव अभियान में हनुमान गढ़ी गये पर सावधानी से रामलला के जन्मस्थान पर नहीं गये। बड़े प्रसन्न हुये थे मुसलमान।उजबेकी डाकू जहीरुद्दीन बाबर के ढाचे को मलबे में बदलने पर भाजपाईयों के साथ क्या व्यवहार हुआ ? वह अमानवीय था। अक्षम्य था। इसका प्रमाण है।