क्यों शिकस्त खा गए अंचल के बड़े नाम

क्यों शिकस्त खा गए अंचल के बड़े नाम
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जनता ने बड़े नेताओं की सुंघाई जमीन

सात बार के विधायक नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह लहार में हार गए।कुछ समय पहले उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए अपना दावा ठोका था।पिछले तीन दशक से भाजपा गोविंद सिंह को शिकस्त देनें के लिए हर दाव आजमा चुकी थी लेकिन इस बार अम्बरीष शर्मा ने उन्हें अप्रत्याशित तरीके से पटखनी दे दी।

6 बार के विधायक केपी सिंह कक्काजू सातवी बार विधायक बनने के लिए शिवपुरी से मैदान में उतरे लेकिन भाजपा के देवेंद्र जैन ने उन्हें 43 हजार के भारी अंतर से पटखनी दी।

दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को 31 साल की महिला उम्मीदवार प्रियंका मीणा ने ऐसी शिकस्त दी जिसकी कल्पना चुनाव तक कोई नही कर पा रहा था।

महाराजा दतिया घनश्याम सिंह का नाम भी इस सूची में शामिल है जो सेंवढ़ा से भाजपा के प्रदीप अग्रवाल के हाथों हार गए।

चार बार के विधायक गोपाल सिंह चौहान डग्गी राजा चन्देरी में इस बार 78 साल के भाजपा उम्मीदवार जगन्नाथ सिंह से मात खा गए।

पूर्व ऊर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह खिलचीपुर में चुनाव हार गए।

दतिया में गृह मंत्री की हार भी चौकाने वाली रही।अपने चुनावी भाषणों में वे जनता को बता रहे थे कि उन्हें घेरने प्रियंका से लेकर कमलनाथ दिग्विजय क्यों सक्रिय हैं।

भाजपा सरकार में मंत्री,निगम अध्यक्ष रहे पूर्व आईपीएस रुस्तम सिंह ओर उनके पुत्र राकेश गुर्जर की जोड़ी को भी जनता ने मुरैना में नकार दिया।

दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह कैसे भी अपनी सीट बचाने में सफल रहे है।

पीडब्ल्यूडी मंत्री सुरेश धाकड़ करीब 50 हजार वोट से चुनाव हार गए।पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य गोहद मे,लाखन सिंह यादव भितरवार में,इमरती देवी डबरा में शिकस्त खा चुके हैं।लाखन सिंह ने तो भाजपा उम्मीदवार का मख़ौल उड़ाते हुए कहा था कि उन्हें तो हम मतदान के अगले दो घण्टे में पटखनी दे देंगे।

ग्वालियर अंचल में इन दिग्गज नेताओं के लिए चुनाव नतीजे सदमें से कम नही है।

वस्तुतः जनादेश की इबारत यह भी बता रही है कि जनता ने राजनीतिक प्रभुत्व की अतिशय कोशिशों को जमीन पर लाकर पटक दिया है।

इन सभी नेताओं के कद इतने बड़े हो गए थे कि इन्हें अपराजेय माना जाने लगा था।टिकट लेने से लेकर चुनावी जीत तक ये नेता मॉडल की तरह खुद को स्थापित कर चुके थे।जनता ने इन्हें चुनाव हराकर कई सन्देस दिए है।मसलन लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है।दूसरा राजनीतिक सामंती वातावरण जनता को बहुत दिनों तक स्वीकार्य नही रहता है।

गृह मंत्री ने जो विकास कार्य दतिया में खड़े किए वह अद्वितीय है लेकिन चुनावी राजनीति केवल विकास की अट्टालिका ओं ओर कंक्रीट के जाल से निर्धारित नही होती है।इसमें सातत्य के लिए विनम्रता ओर सरलता के साथ सर्वस्पर्शी पहुँच भी अनिवार्य तत्व है।दतिया,लहार,शिवपुरी, चांचौड़ा के सन्देश यही कहते हैं।

बड़े नाम जनता बनाती है और वही मिटा भी देती है।बनने का शोर बहुत लंबा चलता है लेकिन जब जनता नेताओं को खारिज करती है उनकी कार्यशैली को लेकर तब ऊँचे कद वालों का इसका अहसास भी नही होने देती है।अंचल के इन नेताओं की शिकस्त में लिखी इबारत को संजीदगी ओर ईमानदारी के साथ समझने की आवश्यकता है।

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