नारी तुम केवल श्रद्धा हो...

नारी तुम केवल श्रद्धा हो...
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  • साधना सिंह चौहान

अगर आज हम वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो आज भी आधुनिक सभ्यता में लोगों की सोच पुरुष प्रधान है, यह हमारे स्त्री-पुरुष अनुपात आकड़े (1000 पुरूष पर 940स्त्रियां) दर्शाती है। आज भी लोगों में पुत्र चाह की भावना है, क्योंकि लोगों की सोच है कि बेटा वंश बढ़ाता है लेकिन वो यह नहीं जानता कि बेटियां दोनों कुलों का नाम रोशन करती हैं। परन्तु हमारी सरकार का रवैया हमेशा से ही महिलाओं के हित में रहा है, तभी तो महिला संरक्षण अधिनियम, घरेलू हिंसा अधिनियम, तीन तलाक जैसे कानून महिलाओं के हितों को ध्यान में रख कर सरकार द्वारा बनाये गये। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और मध्यप्रदेश द्वारा संचालित '' लाड़ली लक्ष्मी योजना बेटियों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है, इससे महिलाओं की परिस्थितियों में और भी सुधार की अपेक्षा की जा सती है।

वेबडेस्क। मां है वो, बेटी है वो, बहन है वो तो कभी पत्नी है वो। जीवन के हर सुख-दु:ख में शामिल है वो, शति है वो, प्रेरणा है वो। नमन है उन जैसी नारियों को जो किसी न किसी रूप में हमारा साथ देती हैं।। आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर विश्व की समस्त नारी शति को हार्दिक शुभकामनाएं। इसी के साथ मैं ईश्वर का अभिवादन करती हूं जिनसे मुझे महिलाओं के लिए कुछ लिखने की प्रेरणा जागृत हुई।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस प्रत्येक आठ मार्च को पूरे विश्व में महिलाओं के योगदान व उपलब्ध की तरफ ध्यान केंद्रित करने के लिए मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य नारी(महिलाएं) को समाज में एक सम्मानित स्थान दिलाना और उनको स्वयं में निहित शतियों से परिचय कराना होता है। सर्वप्रथम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत सन् १९०८ में न्यूयार्क में कामकाजी महिलाओं के द्वारा एक आंदोलन से हुई तथा १९११ में इसे जेटकिन के प्रयास से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। हम भारतीयों ने हमेशा से ही नारियों को समान दिया है योंकि यत्र नार्यस्तु पुज्यंते रमन्ते तत्र देवता की पंरपरा हमारे ग्रंथों में लिखी गई है और ऐसी परंपरा होना भी चाहिए क्योंकि यह समाज महिलाओं की ही देन है, बिना नारी अस्तित्व के राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है। इसलिए नारी को जगत जननी की उपाधि दी गई है।

प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों ने नारी के महत्व को भलीभांति समझा था प्राचीन काल से ही नारी का सर्वागीण विकास हुआ था। सीता मां जैसी साध्वी, सावित्री जैसी पवित्रता, गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियों ने इस भूमि को अलंकृत किया था। मध्यकालीन सभ्यता में भी नारी का योगदान अव्वल दर्जे का रहा है। यदि कहा जाए संस्कृति, परंपरा या धरोहर नारी के कारण ही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती है तो यह कोई अतिश्योति नहीं होगी,

कौन भूल सकता है माता जीजाबाई को जिनकी शिक्षा-दीक्षा ने शिवाजी को महान देशभत और कुशल योद्धा बनाया। कौन भूल सकता है रानी लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्तान, पद्मावती और मीरा के शौर्य, जौहर एवं भक्ति ने मध्यकाल की विकट परिस्थितियों में भी सुकीर्ति का झंडा फहराया। कैसे कोई याद न करे विद्यावती को जिसका पुत्र भगत सिंह फांसी के तख्ते पर खड़ा था और उसकी मां विद्यावती को यह खेद था कि उसकी कोख से एक और भगत सिंह ने जन्म क्यों नहीं लिया।

यदि वर्तमान परिदृश्य की बात की जाए तो आज भी महिलाएं पुरुषों के कन्धे से कंधा मिलाकर चलती हैं, चाहे वो राजनैतिक क्षेत्र हो या शिक्षा का क्षेत्र हो या कला संगीत साहित्य का क्षेत्र में महिलाएं उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं। अगर राजनीति की बात करें तो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में भारतीय महिला नेत्रियों ने कुशल नेतृत्व कर जनता के सदन में कई बार प्रतिनिधित्व किया है। अगर साहित्य के क्षेत्र में बात करें तो स्वर्गीय लता मंगेशकर , आशा भोंसले और तीजन बाई जैसी कलाकारों का कार्य सराहनीय है। वहीं अगर खेल के क्षेत्र की बात करूं तो मैरी कोम, साईना नेहवाल , पीटी उषा, हरमन प्रीत कौर जैसी महिलाओं ने भी विश्व में भारत को खेल के क्षेत्र में कई उपलब्धियां दिलाई। यहां तक कि कल्पना चावला, सुनीता विलिमस व शिरिषा बादला जैसी भारतीय महिलाएं अंतरिक्ष भ्रमण करने में भी पीछे नहीं रहीं।

संसार में पुरूषों का अस्त्वि नारी से ही है, चाहे वह मां के रुप में हो, चाहे बहन के रुप में हो पत्नी के रूप में हो। फिर भी पुरूषों ने नारी को हमेशा अपने से कम आंका है और नारी का हमेशा तिरस्कार ही हुआ है। विदेशी आक्रमणों के बाद तो भारत में महिलाओं के प्रति परिदृश्य बदल ही गया था। मलिक कापूर, अलाउद्दीन खिलजी व औरंगजेब जैसे शासकों ने तो मनुष्यता की भाषा को झुठला दिया था। सल्तनत काल के इसी नैतिकता विहीन वातावरण में नारियों के साथ अनेक अत्याचार हुये। उन्हें विजेता की भोग्या बनाया गया या आत्महत्या के लिए मजबूर किया फिर भी नारियों ने अपना सतीत्व नहीं खोया, भले ही संयोगिता, पद्मावती जैसी महान स्त्रियों ने जौहर कर लिया।

अगर आज हम वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो आज भी आधुनिक सयता में लोगों की सोच पुरूष प्रधान है, यह हमारे स्त्रीपुरूष अनुपात आकड़े (1000 पुरूष पर 940 स्त्रियां) दर्शाती हैं। आज भी लोगों में पुत्र चाह की भावना है, क्योकि लोगों की सोच है कि बेटा वंश बढ़ाता है लेकिन वो यह नहीं जानता कि बेटियां दोनों कुलों का नाम रोशन करती हैं। परन्तु हमारी सरकार का रवैया हमेशा से ही महिलाओं के हित में रहा है, तभी तो महिला संरक्षण अधिनियम, घरेलू हिंसा अधिनियम, तीन तलाक जैसे कानून महिलाओं के हितों को ध्यान में रख कर सरकार द्वारा बनाये गये। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और मध्यप्रदेश द्वारा संचालित '' लाड़ली लक्ष्मी योजना बेटियों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है, इससे महिलाओं की परिस्थितियों में और भी सुधार की अपेक्षा की जा सती है।

महिलाएं समाज का मुख्य हिस्सा होती हैं, तथा आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक क्रियाओं में एक बड़ी भूमिका अदा करती हैं। महिलाओं की उपलब्धियों की सराहना करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। आज विश्व की समस्त महिलाओं को शुभकामनाएं देते हुये मैं अपने शब्दों से ''जयशंकर प्रसाद की कविता के माध्यम से विराम देती हूं। ''नारी तुम केवल श्रद्धा हो। विश्वास -रजत-नग-पग-तल में पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।।

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