नारी शक्ति वंदन अधिनियम का विश्लेषण : नीति और निर्णय में बढ़ेगी महिला हिस्सेदारी

नारी शक्ति वंदन अधिनियम का विश्लेषण : नीति और निर्णय में बढ़ेगी महिला हिस्सेदारी
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डॉ.प्रियंका नितिन वर्मा (लेखिका, पेशे से दंत चिकित्सक हैं और सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं।)

वेबडेस्क। नारी शक्ति वंदन अधिनियम से देश के निर्माण में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ेगी। इससे राष्ट्रीय नीतियों एवं कार्यक्रमों के निर्माण और विधायी निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार महिला सशक्तिकरण के लिए वास्तविक अर्थों में प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समय-समय पर दोहराया है कि उनकी सरकार महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए हर संभव प्रयास करेगी। नारी शक्ति वंदन अधिनियम इसी प्रयास का परिणाम है। हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने महिला आरक्षण विधेयक 2023 अथवा नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित कर दिया। यह विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है।

132 सदस्यों की सार्थक चर्चा का अपना अलग महत्व और मूल्य है। नारी सशक्तिकरण के लिए जो स्पिरिट पैदा हुई, यह देश के जन-जन में नया आत्मविश्वास पैदा करेगी। इसमें सभी सांसदों और दलों ने बड़ी भूमिका निभाई। नारी शक्ति को विशेष सम्मान, सिर्फ विधेयक पारित होने से मिल रहा, ऐसा नहीं है। इसके प्रति देश के सभी दलों की सकारात्मक सोच होना भी नारी शक्ति को एक नई ऊर्जा देने वाली है। यह एक नए विश्वास के साथ राष्ट्र निर्माण में योगदान देने में नेतृत्व के साथ आगे आएगी, यह अपने आप में भी हमारे उज्जवल भविष्य की गारंटी बनने वाली है।


नारी शक्ति वंदन अधिनियम के समर्थन में मतदान करने वाले करने वाले सभी सांसद साधुवाद के पात्र हैं। यह देश की लोकतांत्रिक यात्रा में निर्णायक क्षण है। 140 करोड़ नागरिकों के लिए ऐतिहासिक कालखंड है। यह केवल कानून नहीं, बल्कि उन अनगिनत महिलाओं का सम्मान है, जिन्होंने देश को बनाया। यह उनकी आवाज अधिक प्रभावी तरीके से सुना जाना सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता में ऐतिहासिक कदम है।

19 सितम्बर 2023 का दिन भारतीय संसद के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। गणेश चतुर्थी पर नई संसद में पहली बार कामकाज हुआ और वर्षों से लंबित महिला आरक्षण बिल पेश हुआ। इस घटना ने 140 करोड़ की आबादी में 50% हिस्से वाली मातृशक्ति को सच्चे अर्थों में सम्मानित करने का काम किया। यह महिला सशक्तिकरण के लिए राजनीतिक एजेंडा नहीं बल्कि यह महिला सशक्तिकरण की मान्यता का मुद्दा है। इसके बाद से महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और सहभागिता मोदी सरकार की श्वास और प्राण बनकर उभरे हैं।

महिलाएं, पुरुषों से भी सशक्त हैं। इस विधेयक से अब डिसीजन और पॉलिसी मेकिंग में महिलाओं की भागीदारी बढेगी। इससे समाज व्यवस्था की त्रुटि सुधरेगी। महिलाओं की प्रतिभागिता और सम्मान बढ़ेगा। विश्व को संदेश मिला कि ‘वीमेन लीड डवलपमेंट’ की कल्पना साकार करने को पूरा सदन एकमत है।महिला आरक्षण विधेयक लाने को पहले की सरकारों ने भी चार प्रयास किए थे। यह बिल पहली बार 1996 में देवगौड़ा सरकार लाई। अटल सरकार 1998 में यह विधेयक लेकर आई, विपक्ष ने इसे सदन में पेश नहीं करने दिया। अटल सरकार पुनः बिल लेकर आई पर एक बार फिर इस पर चर्चा नहीं हो सकी। डॉ. मनमोहन सिंह सरकार संशोधन विधेयक राज्यसभा में लेकर आई, जहां पारित होने के बाद यह विधेयक लोकसभा में आ ही नहीं सका।

सर्वानुमति से संविधान संशोधित कर मातृशक्ति को आरक्षण देने का काम ऐतिहासिक है। संसद में आने वाले सदस्यों की तीनों श्रेणियों- सामान्य (इसमें ओबीसी शामिल हैं), अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में मोदी सरकार ने 33% आरक्षण महिलाओं को दिया है। संविधान संशोधन की धारा 330 (ए) और धारा 332 (ए) के माध्यम से महिला आरक्षण का प्रावधान किया गया। तीनों श्रेणियों में वर्टिकल आरक्षण देकर एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गईं। डिलिमिटेशन कमीशन देश की चुनाव प्रक्रिया को निर्धारित करने वाली महत्वपूर्ण इकाई का कानूनी प्रावधान है। वह नियुक्ति से होता है पर क्वासी ज्यूडिशियल प्रोसीडिंग्स होती हैं। इसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज करते हैं। इसमें चुनाव आयुक्त के प्रतिनिधि भी होते हैं। जिन एक-तिहाई सीटों को रिजर्व करना है, उनका चयन डिलिमिटेशन कमीशन करेगा। यह कमीशन हर राज्य में जाकर, ओपन हियरिंग देकर पारदर्शी पद्धति से नीति निर्धारण करता है। डिलिमिटेशन कमीशन लाने के पीछे एकमात्र उद्देश्य पारदर्शिता है। इसके गठन से किसी प्रकार की देरी नहीं होगी, चुनाव के बाद जनगणना और डिलिमिटेशन दोनों होंगे। जल्द ही वह दिन आएगा जब इस सदन में एक-तिहाई महिला सांसद बैठकर देश के भाग्य को तय करेंगी।

महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा वर्ष 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल से ही की जाती रही है। तत्कालीन सरकार के पास बहुमत नहीं होने के कारण इस विधेयक को स्वीकृति नहीं मिल सकी। इस बार केंद्र में भाजपा सरकार पूर्ण बहुमत में है। इसलिए विधेयक आसानी से पारित हो गया। इसके पारित होने से राजनीतिकरण पर भी विराम लग गया। नि:संदेह इस विधेयक लागू होने से राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी।

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