स्वामी विवेकानन्द के स्वप्नों का युवा भारत
वेबडेस्क। 12 जनवरी से जुड़ा यह युवा दिवस भारत के युवा स्वप्नों का साकार दिवस है। उल्लेखनीय है कि यह दिवस सम्पूर्ण राष्ट्र को संचालित करने वाले तन्त्र में युवाओं की भूमिका के साथ में राष्ट्र के भविष्य की दिशा को प्रतिबिम्बित करने का दिवस भी है। गौरतलब है कि इस बार का 26वॉ राष्ट्रीय युवा दिवस केन्द्र सरकार के युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय की ओर से 12 से 16 जनवरी तक कर्नाटक के हुबली में आयोजित हो रहा है। 30 हजार से भी अधिक युवा प्रतिभाग करेंगें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इन युवाओं से अपना विजन भी साझा करेंगें। खासतौर पर इस महोत्सव का उद्देश्य अमृतकाल के दौरान राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को बढ़ाना है। साथ ही इस महोत्सव में जी-20 की वाई(यूथ)-20 की गतिविधियों के बारे में भी युवाओं को संवेदनशील बनाया जायेगा। तत्पश्चात ये प्रतिभागी वाई-20 के संदेशों और विषयों को लेकर देश के कोने-कोने में जायेंगें।
सच यह है कि युवाओं को ऋणात्मक बनाकर न तो इस देश के लोक की कल्पना की जा सकती है, और न ही उस तन्त्र से जुड़ी हुई जनापेक्षाओं और जनाकाक्षाओं की। इस सन्दर्भ में स्वामी विवेकानन्द के विचार उद्धरण के योग्य हैं। उन्होंने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा था कि निराशा, कमजोरी, भय, आत्मकेन्द्रण तथा ईर्ष्या युवाओं के सबसे बड़े शत्रु हैं। युवाओं का उससे भी बड़ा शत्रु उनका स्वयं को कमजोर समझना है। युवाओं की कमजोरी का इलाज कमजोरी में निहित नहीं है, बल्कि उनकी विचारशैली ही भविष्य में उनको संजीवनी देने का कार्य करेगी। स्वामी जी ने युवाओं को जीवन में लक्ष्य निर्धारण करने के लिए स्पष्ट संकेत दिया कि तुम सदैव सत्य का पालन करो, विजय तुम्हारी होगी। आने वाली शताब्दियाँ तुम्हारी वाट जोह रही हैं। आने वाले भारत का भविष्य तुम्हारी कार्यशैली पर ही निर्भर करेगा। इसलिये यहाँ कहना न होगा कि स्वामी विवेकानन्द के जन्म के 160 वर्षों बाद भी उनकी भविष्य दृष्टि आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। यह उनकी राष्ट्रगत दूरदर्शिता ही थी कि इतने लंबे समय के बाद आज भी 21वीं शताब्दी युवा भारत की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं के प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में हमारे सामने है।
युवाओं के विषय में स्वामी विवेकानन्द की वैचारिकी बिल्कुल स्पष्ट थी। देश की आजादी से पूर्व भी उन्होंने कहा था कि हमें कुछ ऐसे युवा चाहिए जो देश की खातिर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार हों। फिर देश में आजादी आपके कदमों में होगी। आप महसूस करेंगे इतिहास में ऐसा परिलक्षित भी हुआ। सन् 1902 में महासमाधि लेने के बाद स्वामी विवेकानन्द के अनेक लेख व संदेश इतने समय के बाद आज भी हिन्दू संस्कृति, समाजसेवा, चरित्र निर्माण, देशभक्ति, शिक्षा, व्यक्तित्व तथा नेतृत्व इत्यादि के विषय में स्पष्ट सोच एवं दिशा निर्देश देने का कार्य कर रहे हैं। परिणामतः, वर्तमान संदर्भ में स्वामी विवेकानन्द के विचारों को केन्द्र में रखकर युवाओं की वर्तमान दशा और दिशा का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन करना भी आवश्यक हो जाता है।
आज भारत की जनसंख्या से जुड़े आंकड़े स्वतः ही भारत के युवा होने के प्रमाण प्रस्तुत कर रहे हैं। वर्तमान में 13 से 35 आयु वर्ग की कुल जनसंख्या यहाँ 55 करोड़ है। ऐसा अनुमान है कि 2030 तक देश में युवाओं की कुल जनसंख्या 62 करोड़ तक पहुँच जाएगी। विश्व स्तर पर युवाओं से जुड़े जो आंकड़े प्रस्तुत हो रहे हैं उनसे पता लगता है कि विकसित देशों में वरिष्ठजनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। दूसरी ओर भारत की जनसंख्या लगातार युवा होने के संकेत दे रही है। वैश्विक स्तर पर आंकड़े बताते हैं कि आने वाले एक दशक में जहाँ चीन की आयु 37 वर्ष, अमेरिका की आयु 45 वर्ष तथा पश्चिमी यूरोप और जापान की आयु 48 वर्ष होगी, वहीं भारत में 2030 तक एक दूसरे पर आश्रित रहने वाली आबादी का अनुपात केवल 0.4 प्रतिशत रह जाएगा। निश्चित ही सम्पूर्ण विश्व की दृष्टि आज भारत के कौशलयुक्त व कार्य के प्रति प्रतिबद्ध और उत्पादित युवाओं पर टिकी है। इसलिए यहाँ यह सच कहने में कोई गुरेज नहीं कि भारत अपने इन युवाओं की शक्ति के आधार पर ही अपनी परम्परागत छवि का आवरण उतारकर नूतन वैश्विक स्तर की अस्मिता बनाने में सफल रहा है। राष्ट्र के इन युवाओं की ताकत के आधार पर ही भारत के सतत विकास की धाक अमेरिका जैसा विकसित देश भी स्वीकार कर रहा है। इस सच्चाई से इन्कार नहीं किया जा सकता कि देश की आजादी के बाद भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के स्वप्न स्वामी विवेकानन्द के साथ हमारे अन्य युवा नायकों ने भी देखे थे। उन स्वप्नपूर्ति में देश काफी हद तक कामयाब भी हुआ। निःसन्देह आज का युवा अपने महापुरूषों के सन्देश सैद्धान्तिक रूप से विगत 75 वर्षों से लगातार पुस्तकों में पढ़ता रहा है। परन्तु उसके उलट जब वह समाज में सामाजिक संरचना और संस्थाओं में, सामाजिक व्यवस्था में पनपते विरोधाभास तथा राजनीति और राजनीतिज्ञों के निर्णयों और निर्णय करने वालों की कथनी और करनी में लगातार अन्तर देखता है, तो व्यवस्था से युवा शक्ति का मोह भंग हो जाता है। युवाओं में कुण्ठा तब पनपती है जब इस समाज में विद्यमान मानक युवाओं की दृष्टि में इतने अप्रभावी और हानिकारक हो जाते हैं जो उन पर आघात पहुँचाने लगते हैं। उनसे युवाओं का इतना अधिक अलगाव हो जाता है जो उन्हें इन मानदण्डों को बदल डालने को मजबूर करता है। परन्तु देश में नरेन्द्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आज युवाओं में एक नइ्र्र आशा का संचार हुआ है। आज भारत का युवा आशावादी निगाहों से नये भारत की तस्वीर देखकर बहुत आशान्वित है।
सच्चाई यह है कि युवाओं की सक्रिय भागीदारी समकालीन समाज में सामाजिक हलचल और राजनीतिक दिशाबोध का आवेगमय सूचकांक होती है। परन्तु आँकड़े साक्षी है कि 1980 के दशक के बाद युवा राजनीति और युवा चेतना का सूचकांक राजनीतिक पटल से गायब हो गया। युवा राजनीति तो स्वतन्त्रता संग्राम का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। सरदार भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, अश्फाक उल्लाह, चन्द्र शेखर आज़ाद व खुदीराम बोस ये कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने देश प्रेम के विशाल जज्बे के साथ देश पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। परन्तु देश की आजादी के बाद के कालखण्ड में राजनीति में बढ़ते परिवारवाद, मण्डल आयोग की सिफारिशें, जाति व धर्म से जुड़ी राजनीति, भ्रष्टाचार व घोटालों की लम्बी फेहरिस्त, राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि के लेगों का प्रवेश तथा भाई-भतीजावाद इत्यादि ये कुछ ऐसी घटनायें रहीं जिन्होंने युवा नेतृत्व का चेहरा बदरंग कर दिया। यही कारण है कि कुछ राजनीतिक दल इन युवाओं को अतीत में ले जाकर उन्हें आज भी आक्रोशित करने और सत्ता के खिलाफ भड़काने से नहीं चूकते।
सूंपर्ण विश्व इस समय बूढ़ी होती आबादी के दौर से गुजर रहा है। परन्तु भारत 21वीं शताब्दी में नूतन दौर की युवत्व बेला से गुजर रहा है। युवत्व का यह कालखण्ड उम्र के साथ-साथ विचार शैली से भी युवत्व होने के संकेत दे रहा है। इसलिए कहना न होगा कि देश की आबादी में युवाओं की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ लोगों की युवा विचार शैली में भी परिवर्तन आ रहा है। गहराई से विचार करें तो देश के युवा ढाँचे में यह परिवर्तन स्वामी विवेकानन्द की भविष्य दृष्टि का ही प्रक्षेपण है। आज युवाओं में बेचैनी की तीव्रता है और राष्ट्रीय सरोकारों की कमजोरी। युवाओं के इन मुद्दों पर आज परिवार भी चुप हैं, पाठ्यक्रम धीरे-धीरे केवल पुस्तकों तक सीमित होकर रह गया है। इस मुद्दे पर देश की राजनीति को गम्भीर होने की आवश्यकता है। इसलिए वर्तमान में युवाओं से जुड़ी इन परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए देश की राजनीति को समय रहते राष्ट्रहित में निर्णय लेना होगा तभी देश में इस राष्ट्रीय युवा दिवस तथा स्वामी विवेकानन्द के संदेशों की सार्थकता सिद्ध होगी।