दिल्ली: आज CJI डीवाई चंद्रचूड़ का लास्ट वर्किंग डे, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पर ले सकते हैं अहम फैसला

आज CJI डीवाई चंद्रचूड़ का लास्ट वर्किंग डे, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पर ले सकते हैं अहम फैसला
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Supreme Court Hearing on Aligarh Muslim University case : नई दिल्ली। चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया डी.वाई. चंद्रचूड़ का आज यानी 8 नवंबर को लास्ट वर्किंग डे है। ऐसे में माना जा रहा कि, सीजेआई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मामले पर कोई अहम फैसला ले सकते हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान माना जाए या नहीं इस पर फैसला सुनाएगी। इस बेंच की अध्यक्षता सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ कर रहे हैं।

1967 में हुआ था ये फैसला

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर विवाद का इतिहास 1967 तक जाता है। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में यह निर्णय दिया था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम 1920 का हवाला देते हुए कहा था कि AMU न तो मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था और न ही यह उसी समुदाय द्वारा संचालित किया जाता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के लिए जरूरी है।

विवाद का बढ़ता सिलसिला

1981 में AMU अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसमें कहा गया कि यह विश्वविद्यालय 'भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित किया गया था'। हालांकि 2005 में जब AMU ने अल्पसंख्यक दर्जे का दावा करते हुए पोस्टग्रेजुएट चिकित्सा पाठ्यक्रमों में मुस्लिम छात्रों के लिए 50% सीटें आरक्षित कीं, तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस आरक्षण नीति और 1981 के संशोधन को खारिज कर दिया। अदालत ने फिर से यह निर्णय लिया कि AMU एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। इस फैसले के खिलाफ विश्वविद्यालय ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, और 2019 में यह मामला सात जजों की एक बेंच को सौंपा गया ताकि यह तय किया जा सके कि क्या एस. अजीज बाशा मामले में दिया गया फैसला पुनः समीक्षा योग्य है या नहीं।

केंद्र सरकार का विरोध

2016 में केंद्र सरकार ने इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का विरोध किया। सरकार का कहना था कि AMU कभी भी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं था, क्योंकि इसे 1920 में साम्राज्यवादी कानून के तहत स्थापित किया गया था और तब से यह मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित नहीं किया गया है। वहीं, याचिकाकर्ताओं का यह कहना है कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि विश्वविद्यालय का प्रशासन और उसे संचालित कौन करता है। उनका तर्क है कि संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थान चलाने की स्वतंत्रता है, और यह संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे को प्रभावित नहीं करता।

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