Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की करें पूजा, जानें विधि, उपाय और कथा

आज यानी 2 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है। सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के इस रूप में अष्ट भुजाएं होती हैं, जिसमें कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जप माला धारण किए होते हैं। मां कुष्मांडा शेर पर सवार होकर आती हैं।
क्यों कहते हैं कुष्मांडा?
संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा का अर्थ कुम्हड़ होता है। कुम्हड़ कद्दू के जैसी दिखनी वाली सब्जी या फल होती है। मां कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहते हैं। मां कुष्मांडा का शुभ रंग नारंगी या गहरा नीला माना जाता है।
मां कुष्मांडा का प्रसाद
मां कुष्मांडा को विशेष रुप से मालपुए अतिप्रिय भोग माना जाता है। इसके अलावा उन्हें दही और हलवे का भी भोग लगाया जाता है। ऐसे में व्रती मां की पूजा पाठ करने के बाद इनका भोग लगाना चाहिए फिर सभी में प्रसाद के रूप में वितरित कर देना चाहिए। माता का मुख्य मंत्र "ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः" का 108 बार जाप और कुम्हड़ अर्पित करने से जीवन में सुख शांति आती है।
कैसे करें पूजा?
- सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और साफ - सुथरे कपड़े पहनें।
- फिर मंदिर को गंगाजल से शुद्ध कर वहां मां कूष्मांडा माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- पूजा स्थान या मंदिर में शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
- अब मां को कुमकुम और हल्दी से तिलक करें और उसे खुद भी माथे पर लगा लें।
- अब कूष्मांडा माता को लाल रंग का कपड़ा या चादर चढ़ाएं।
- मां को भोग लगाकर उनके मंत्र का जाप करें फिर मां का आशीर्वाद लें।
मां कुष्मांडा की पौराणिक कथा
माना जाता है कि ब्रह्मा, विष्णु और शंकर सृष्टि की रचना करने में असमर्थ नज़र आ रहे थे। चारों तरफ़ सिर्फ अंधेरा था। तब सभी देवता मां दुर्गा के पास इस समस्या को लेकर पहुंचे। मां दुर्गा ने अपने कूष्मांडा रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने प्रकट होकर सृष्टि का निर्माण किया। कुष्मांडा का अर्थ होता है कूष्म यानी तरंग और आंडा अर्थात् अंडा। यानी ऐसी देवी जिसने ब्रह्मांड के अंडे के रूप में प्रकट होकर सृष्टि की रचना करती है।