ज्योतिरादित्य रामघाट पहुंच कर करेंगे महाकाल का पूजन, ऐसा करने वाले सिंधिया राजवंश के पहले सदस्य

ज्योतिरादित्य रामघाट पहुंच कर करेंगे महाकाल का पूजन, ऐसा करने वाले सिंधिया राजवंश के पहले सदस्य
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उज्जैन। इतिहास अपने आप को दोहराता है,यह तो सुना था। लेकिन इतिहास परंपराओं को तोड़ता है, ऐसा पहली बार आगामी सोमवार को होगा। इस बार बाबा महाकाल की शाही सवारी में एक इतिहास बनेगा है और एक मिथक टूट जाएगा। ऐसा होगा ज्योतिरादित्य सिंधिया के उज्जैन आगमन पर।

शैव एवं वैष्णवों के बीच रहा मतांतर

तत्कालिन सिंधिया रियासत की बात की जाए तो उस समय शैव एवं वैष्णवों के बीच मतांतर के चलते संघर्ष की स्थितियां रहती थी। सिंधिया रियासत शैव धर्म का पालन तो करती थी लेकिन वैष्णवों को भी समभाव से स्थान देती थी। इतिहास को थोड़ा पिछे जाकर खंगालें तो तत्कालिन रियासतदारों ने राजपाठ चलाने के लिए शैव एवं वैष्णवों के बीच समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से हरि-हर मिलन की परंपरा स्थापित की थी। यह दो हिस्सों में होती थी। पहली तो बाबा महाकाल की श्रावण-भादौ मास की सवारी की रामघाट से वापसी में गोपाल मंदिर के बाहर सिंधिया परिवार के सदस्य द्वारा बाबा महाकाल की अगवानी करके आरती,पूजन करने की तो दूसरी वैकुण्ठ चतुर्दशी पर रात्रि में बाबा महाकाल का हरि के राजप्रासाद में आकर मिलने की।

कोरोना संकट के चलते बदला मार्ग

इस बार कोरोना काल में यह परंपरा एक वर्ष के लिए टूट गई। कोरोनाकाल में जिला प्रशासन द्वारा सामाजिक दूरी का पालन करवाते हुए नए छोटे मार्ग से बाबा की सवारी निकाली जा रही है। इसके चलते पुराने रूट पर गोपाल मंदिर आएगा नहीं, यही कारण है कि सिंधिया परिवार इस बार स्वयं रामघाट जाएगा और वहां पर बाबा महाकाल का पूजन करते हुए परंपरा का निर्वाह करेगा। शैव-वैष्णव के बीच समन्वय की अपनी रियासती दौर की परंपरा का पालन करते हुए ज्यातिरादित्य सिंधिया हरि की ओर से हर के लिए भेंट लेकर भी पहुंचेंगे। इसी के साथ वे यह मिथक तोड़ देंगे कि रियासतकालीन परंपराएं अटूट नहीं रहेगी, बल्कि समय काल के अनुसार इसमें परिवर्तन किया जाएगा।

सिंधिया रामघाट पहुंच करेंगे पूजन

सूत्रों का कहना है कि यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया थोड़ा सा भी दबाव बनाते तो जिला प्रशासन को शाही सवारी का मार्ग पर्व वर्षो के परंपरागत मार्ग को करना पड़ सकता था। इसमें अत्यधिक मशक्कत करना पड़ती और लोकतंत्र में राजशाही का गलत संदेश जाता। यही कारण है कि ग्वालियर से ही यह पहल हुई कि परिवार के मुखिया याने ज्योतिरादित्य सिंधिया स्वयं रामघाट पहुंचकर बाबा का पूजन करेंगे। ऐसा करके एक नया इतिहास लिखेंगे। पूर्व मे कभी नहीं हुआ कि रियासतकालीन परिवार के सदस्य रामघाट पहुंचे हो और बाबा महाकाल का पूजन किया हो।

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