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झड़ से अधमरी सोयाबीन को बचाने पेस्टिसाइड का वैक्सीन
उज्जैन/श्याम चौरसिया। लगातार 17 दिन की झड़ तिल्ली,उड़द,मुमफली,मक्का,मूंग,प्याज,टमाटर सहित अन्य फसलों की बलि ले बैठी। झड़ को टक्कर देते देते सोयाबीन न केवल अधमरी हो गयी बल्कि इल्ली भी लग गयी। कही कही पूरे फूल झड़ गए।अधिकांश खेतो में पौधों में बचे 02-04 फूल देख कर न तो किसान रो पा रहा है। न हस।
नए सिरे से पौधों में फूल लाने के लिए किसान फूल लाने की ग्यारंटी देने वाली बहुत महंगी प्रेस्टिसाइड पर दांव लगा रहा है। इन दिनों प्रेस्टिसाइड विक्रेताओं की चांदी चल रही है। लगातार पिछले 03 साल से पीला सोना सोयाबीन धोखा देती आ रही है।पिछले साल तो देखते देखते सोयाबीन अधबीच में टे बोल गयी। किसान कुछ समझ पाता या बचाव में कुछ कर पाता उसके पूर्व ही अज्ञात रोग ने कगार पर आ चुकी सोयाबीन को चौपट करके उम्मीदो, मंसूबो पर पानी फेर दिया।नतीजन मोहित करने वाली सोयाबीन की फलियां मुर्झा गई। दाना फूल नही पाया। दागी हो गया। सो अलग।खलियान? जी हां। 40% भी उत्पादन न मिलने से न लागत न मेहनत निकली।हालात ये रहा कि बीज रखने की बजाय बेचना पड़ा।बोवनी के समय बीज 10 हजार रुपये क्विंटल तक मे नही मिला। मिला वो भी अच्छी क्वालिटी का और प्रमाणिक नही।
बारिस थमते ही किसान इल्ली की शिकार और अधमरी सोयाबीन को बचाने के लिए प्रेस्टिसाइड विक्रेताओं के फेरे लगाने के लिए मजबूर हो चुका है। इल्ली नाशक, ओर फिर से फूल लाने का दावा करने वाली महंगी दवाओं को खरीदने के लिए सैलाब सा उमड़ा पड़ रहा है। आलम ये है कि 01-01 दिन में 01-01 ट्रक खाली हो रहे है।करोडो का बिजनेस।दम लेने की फुर्सत नही। हर किसान चिंताग्रस्त। आतुर। उतावला।तनावग्रस्त। फिक्र एक ही किसी तरह सोयाबीन तो बच जाए।
बतौर अन्तरवर्गीय फसल के रूप में मक्का,उड़द,मूंग बोया था। जिनकी बलि लगातार की मूसलधार बारिस ने ले ली। महज 17 दिन में औसतन 30 इंच से ज्यादा होने वाली बारिस ने सेकड़ो घरो,पुल पुलियाओं, सड़को का भी बंटाधार कर दिया। फिर ख़रीब फ़ेसले किस खेत की मूली है। किसान जनता है। हर प्रेस्टिसाइड जहरीला, खेत ओर जल स्त्रोतों के लिए घातक है। मगर धर्मसंकट में फ़सा किसान करे तो क्या? उसके पास गुजरात के भड़ोच, बड़ोदा की सेकड़ो रसायनिक फेक्ट्रियो के महंगे उत्पाद प्रेस्टिसाइडो पर दांव लगाने के सिवा कोई फौरी विकल्प नही बचता।
किसान जितना खर्च सोयाबीन पर हर साल करता है। उतना अन्य किसी फसल पर नही।मक्का,जुआर, उड़द,मूंग,मुमफली पर नही करता। यदि सोयाबीन उत्पादन से किसान तौबा कर ले तो यकीन मानिए। प्रेस्टिसाइड की हजारो फैक्ट्रियां बन्द हो जाए। यदि ये हो जाए तो पर्यावरण के लिए शुभ संकेत होगा। कृषि विभाग और सरकार को भी इस दिशा में ठोस निर्णायक कदम उठा कर सोयाबीन का विकल्प खोजना चाहिए।45 साल में सोयाबीन के बीज इतने बूढ़े हो चुके है कि पहले की तरह 16-20 क्विंटल प्रति हेक्टर की बजाय 06-10 क्विंटल प्रति हेक्टर भी उत्पादन नही ले पाता।किसान के पल्ले कुछ नही पड़ता।सिल्ला लोड़ी बराबर।