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भारतीय संगीत का आध्यात्म-उस्ताद अमीर खां
मधुकर चतुर्वेदी
ईश्वर ने सृष्टि की रचना करते समय विभिन्न प्रकार के प्राणियों को जन्म दिया, इन प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनने का सौभाग्य मनुष्य को प्रदान किया। मनुष्य ने अपने जीवन के विकास क्रम में भाषा का सहारा लिया तथा अपने जीवन को आनंदमयी बनाने के लिए संगीत रूपी तत्व की खोज की। संगीत के विकास क्रम को समय-समय पर अनेक महापुरूषों ने अपनी तपस्या व रचनाओं से पल्लवित और पुष्पित किया। भारतीय शास्त्रीय संगीत के मूर्धन्य शास्त्रीय गायक उस्ताद अमीर खां सुरों की प्रकृति के ऐसे पुष्प थे, जिनके सुरों की सुगंध से आज संगीत जगत अपने को गौरवान्वित अनुभव कर रहा है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि बीसवीं सदी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को चार महान कलाकार दिए। उस्ताद बड़े गुलाम अली खां, उस्ताद अमीर खां, पं. कुमार गंधर्व और पं. भीमसेन जोशी। इसमें उस्ताद अमीर खां ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने अपनी गायकी से इंदौर के स्वतंत्र घराने को स्थापित किया।
15 अगस्त को उस्ताद अमीर खां का जन्मदिन है। देश और संगीत जगत उन्हें स्मरण कर रहा है। क्योंकि उन्होंने ना केवल रागों का गायन किया, बल्कि अपने गायन के जरिये सुर का चिंतन भी किया। उनके सुर कल्पनाओं का अनूठा संसार लिए हुए था, तो दर्शनशास्त्र की गहराई भी। जब हम पहली बार उस्ताद अमीर खां को सुनेंगे तो अनुभव होगा कि उनके गायन की धीमी बढ़त और स्वरों के उतार-चढ़ाव हमारे धैर्य की परीक्षा लेंगे लेकिन, जैसे-जैसे उनके स्वरों की गहराई में डूबते जाएंगे, तो स्वरों का सम्मोहन हमें सब कुछ भूलने पर विवश कर देगा। शास्त्रीय संगीत सुर प्रधान है लेकिन, अमीर खां ने अपने संगीत को शब्द प्रधान भी बनाया।
उस्ताद अमीर खां ने अपनी गायन शैली को विशेष बनाया। कुछ नए प्रयोग भी किए। उनके ख्याल की विलंबित शैली में 'मेरुखण्ड' की झलक मिलती है। मेरूखंड भी ऐसा कि जिसमें धु्रपद और ख्याल का अंतर समझना मुश्किल हो जाए। उस्ताद अमीर खां के शिष्य पं. अमरनाथ ने एक बार कहा था कि उस्ताद अमीर खां ने पहली बार मेरूखंड के रागों को अवरोह में खोला, हालांकि इसे शारंगदेवजी की पुस्तक में आरोही के रूप में दिया गया है। अमरनाथ जी ने इसे ऐसे समझाया कि आरोही में अवरोही नहीं होती, लेकिन अवरोही में आरोही जरूर होती है। सीधे अर्थो में समझें तो जाने में आना नहीं होता लेकिन, आने में जाना जरूर होता है। इस तरह उस्ताद अमीर खां ने मेरूखंड के वैज्ञानिक रूप को एक आंदोलन में परिवर्तित कर दिया।
उस्ताद अमीर खां के संगीत में जहां एक ओर राष्ट्र के प्रति स्वाभिमान था तो वहीं दूसरी ओर भारत की विशाल आध्यात्मिक परंपरा की समग्रता भी थी। उस्ताद अमीर खां पुष्टिमार्ग संप्रदाय से प्रभावित थे और अष्टछाप के कवियों की रचनाओं का भी गायन करते थे। प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पद्यमभूषण पं. गोकुलोत्सव महाराजश्री ने एक बार बताया था कि उस्ताद अमीर खां इंदौर के श्रीगोवर्धननाथ जी मंदिर में अक्सर आते थे और मंदिर की समाज में सहभागिता करते थे। जिन 'मेरुखण्ड' की तानों के लिए अमीर खाँ साहब की प्रशंसा होती है, वह उन्हें इंदौर के इसी मंदिर से प्राप्त हुईं। गोकुलोत्सव जी का तो यहां तक कहना है कि 'आकार' लगाने का जो तरीका उस्ताद अमीर खाँ साहब के पास था, वह सामवेद की स्वरोच्चार पद्धति ही है। यानी मुँह खोल कर 'अकार' उच्चारण नहीं किया जाना चाहिए।
नई दिल्ली निवासी इंदौर घराने के जाने-माने शास्त्रीय गायक पं. सुरेश गंधर्व ने एक बार अनौपचारिक चर्चा के दौरान कहा था कि उस्ताद अमीर खां ख्याल गायन में काव्य को बहुत महत्व देते थे, क्योंकि वह खुद भी एक अच्छे कवि थे और उन्होंने 'सुर रंग' के नाम से कई रचानाओं का सृजन भी किया। सुरेश गंधर्व ने कहते हैं कि उस्ताद अमीर खां ने तराना को भी लोकप्रिय बनाया। साथ ही अप्रचलित तालों जैसे झूमरा का प्रयोग विलंबित ख्याल में अक्सर किया करते थे।
बंगला फिल्म 'क्षुधितो पाशाण', 'बैजू बावरा' और 'झनक झनक पायल बाजे' फिल्म में उनके गायन का जादू जनता के सिर चढ़ कर बोला। खुद भारतरत्न स्वर कोलिका लता मंगेशकर उस्ताद अमीर खां के गायन से प्रेरणा लेती रही हैं। लता जी का मानना रहा है कि उस्ताद अमीर खां का संगीत सुनना मन को शांति के एक सफर पर ले जाने जैसा है। लता जी के भाई संगीत निर्देशक पंडित हृदयनाथ मंगेशकर अमीर खां सहाब के गंडाबद्व शिष्य भी रहे हैं। पं. भीमसेन जोशी ने भी समय-समय पर अमीर खां सहाब की रचनाओं का गायन किया। आज भी जब उस्ताद अमीर खां सहाब के भैरव, तोड़ी, ललित, मारवा, पूरिया, मालकौंस, केदार, दरबारी, मुल्तानी, पूर्वी, अभोगी, नंद, मल्हार आदि रागों के अंगों को सुनो तो ऐसा लगता है स्वरों का साक्षात्कार प्रत्यक्ष हो रहा है।
15 अगस्त 1912 में जन्में और 13 फरवरी 1974 में एक कार दुर्घटना में अनंत में विलीन हुए उस्ताद अमीर खां को उनके सुपुत्र व बाॅलीवुड के नामचीन अभिनेता शहबाज खां उनकी विरासत को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। संगीत सम्मेलनों का आयोजन हो अथवा प्रबुद्धवर्ग सम्मेलन आदि के द्वारा वह अपने पिता की स्मृतियों को संजोने के लिए योगदान दे रहे हैं। वास्तम में उस्ताद अमीर खां किसी राजघराने के गायक नहीं थे, बल्कि बैरागी थे। सच कहें तो वह संगीत के संत थे। बड़े कलाकारों को तो सब सुनते हैं, लेकिन, अमीर खां छोटे कलाकरों को भी सुनते थे। 'जितनी गहरी नींव, उतनी बड़ी इमारत' कहावत को उन्होंने अपने व्यक्तित्व से चरितार्थ कर दिया था।
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उस्ताद अमीर खां सहाब का संगीत अमर है। वह भारतीय संगीत और हम भारतीयों की पहचान हैं। आने वाले दिनों में हम उनके व्यक्त्वि पर एक फिल्म का निर्माण व उनके नाम पर एक संगीत अकेडमी की स्थापना का प्रयास करने जा रहे हैं।
-शहबाज खां, बाॅलीवुड अभिनेता व पुत्र उस्ताद अमीर खां।
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उस्ताद अमीर खां शास्त्रीय संगीत के ऐसे महान कलाकार थे, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। हमने उनकी याद में हाल ही में गुडगांव में एक विद्यालय प्रारंभ किया है। युवा पीढ़ी को उनकी गायकी से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
-पं. सुरेश गंधर्व, शास्त्रीय गायक, इंदौर घराना।