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भारत के ‘स्व’ को समझें और आध्यात्मिक आधारित जीवन शैली को आचरण में लाएं - डाॅ. मनमोहन वैद्य
साहित्योत्सव के सत्र को संबोधित करते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन जी वैद्य।
-ब्रज साहित्योत्सव में उपस्थित साहित्यकार बंधुओं को मिला सह सरकार्यवाह जी का मार्गदर्शन
-6 सत्र, 19 व्याख्यान, 150 साहित्यकारों, शोधार्थियों की सहभागिता
आगरा। भारत का दृृष्टिकोण सम्पूर्ण है। वसुधैव कुटुम्बकम की भावना है। किसी के खिलाफ होने का प्रश्न ही नहीं है। भारत की मान्यता है कि ईश्वर एक है उसके नाम अनेक हो सकते हैं और उस तक पहुँचने का मार्ग भी भिन्न हो सकते हैं। भारत के ‘स्व’ के अनुसार शिक्षा नीति, अर्थनीति, रक्षानीति आदि तय होनी चाहिए। इसके लिए भारत के ‘स्व’ को समझना एवं जानना जरूरी है। आज भारत के ‘स्व’ की अवधारण, आध्यात्मिक आधारित जीवन शैली को समझने और आचरण मेें लाने की जरूरत है। यह कहना था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डाॅ. मनमोहन वैद्य जी का। डाॅ. मनमोहन वैद्य जी रविवार को विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित ब्रज साहित्योत्सव के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
कैलाशपुरी रोड स्थित भावना क्लार्क में आयोजित साहित्योत्सव के विषय ‘स्व आधारित राष्ट्र के नवोत्थान का संकल्प’ पर उपस्थित साहित्यकारों, शोधार्थियों को संबोधित करते हुए मनमोहन जी ने कहा कि भारत की आध्यात्म आधारित जीवन शैली को समझना होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डाॅ. बीआर आंबेडकर विवि की कुलपति प्रो. आशू रानी ने कहा कि ‘स्व’ को समझना आवश्यक है। ‘स्व’ सम्पूर्ण मनोवैज्ञानिक अवधारणा है और समाज व देश के प्रति कत्र्तव्य को ‘स्व’ का हित समाज के बारे मेें सोचना। उन्होंने युवा पीढ़ी का आहवान किया कि अपने कर्तव्यों को समझते हुए सभी क्षेत्रों में आगे आएँ।
भारत कृषि प्रधान नहीं उद्योग प्रधान देश था
मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि ऐसा कहा जाता है कि भारत कृषि प्रधान देश है बल्कि सत्य तो यह है कि भारत उद्योग प्रधान देश रहा है। सन् 1700 तक भारत का निर्यात विश्व में उन्नत था और यहां कपड़ा, उद्योग, मेटलर्जी, मसाले, टैनरी आदि घरेलू उद्योग गाँव-गाँव में थे। पुरुष व्यापार हेतु देश-विदेश में जाते थे। महिलाओं के पास धन रहता था और घरेलू व्यवस्थाएं संभालती थीं। भारत के लोग व्यापार करने अन्य देशों में गए लेकिन, उन्होंने वहां पर काॅलोनियां खड़ी नहीं की और ना ही वहां के लोगों को गुलाम बनाया। उन्होंने कहा कि भारत उदारता की भावना में विश्वास करता है। पराए को भी दुश्मन नहीं मानता।
इनकी रही उपस्थिति
साहित्योत्सव के सर्व व्यवस्था प्रमुख मनमोहन निरंकारी ने बताया कि साहित्योत्सव में दो दिनों 6 सत्र, 19 व्याख्यान हुए। प्रांत भर से 75 शोधार्थी, 95 साहित्यकारों के अलावा नगर के प्रबुद्धजन और महाविद्यालयी छात्रों की उपस्थिति रही। साहित्योत्सव में भविष्य के चिंतन के लिए 31 विमर्श के बिन्दु भी तय किए गए। कार्यक्रम में क्षेत्र प्रचारक महेंदजी, क्षेत्र प्रचार प्रमुख पदमजी, प्रांत प्रचारक डाॅ. हरीशजी, क्षेत्र कार्यवाह डाॅ. प्रमोद शर्मा, प्रांत सह प्रचार प्रमुख कीर्तिजी, विभाग प्रचारक आनंदजी, सह विभाग संघचालक रामवीर, प्रांत प्रचार प्रमुख केशवदेव शर्मा, विजय कुमार गोयल, डाॅ. मुकेश शर्मा, डाॅ. मुनीश्वर गुप्ता, सह विभाग कार्यवाह सुनील कुमार आदि उपस्थित रहे। अतिथियों का स्वागत अनिल सिसौदिया, अशोक चैबे, रूचि चतुर्वेदी, ज्योत्सना शर्मा, रजत सिंघल, यशपाल, विनीत शर्मा ने किया।