शाकाहारी बनें और प्रकृति के कोप से बचें - रेणुका गोस्वामी जी

शाकाहारी बनें और प्रकृति के कोप से बचें - रेणुका गोस्वामी जी

साहित्योेत्सव के सत्र को संबोधित करतीं रेणुका पुंडरीक गोस्वामी।

—ब्रज साहित्योत्सव में शोधार्थी छात्रों को मिला आध्यात्मिक पर्यावरण पर मार्गदर्शन

आगरा/वेब डेस्क। विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित साहित्योत्सव में रविवार को वृंदावन से पधारीं विख्यात आध्यात्मिक पर्यावरणविद् रेणुका पुंडरीक गोस्वामी जी ने ‘पर्यावरण में भारतीय अवधारणा’ पर ‘भ से भूमि, ग से गगन, वा से वायु, अ से अग्नि और न से नीर पर व्याख्या करते हुए कहा कि पंचमहाभूतों की सेवा भगवान की सेवा है। उन्होंने कहा कि वृक्षारोपण को प्रत्येक उपलक्ष्य का आवश्यक अंग बनाएं। यमुना को निर्मल बनाए रखने के लिए अपने स्तर से रसायनों का प्रयोग ना करें और कुछ समय नदीं के समीप अवश्य जाएं।

रेणुका गोस्वामी ने कहा कि हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि केवल तपस्वी नहीं, वरन अनुसंधानी विज्ञानी भी थे। तभी पंचमहाभूतों को देवता माना और उनसे आत्मिक रिश्ता जोड़ा। उन्होंने कहा कि आज के जगत में ऐसे कई व्यक्ति हैं जो कि लालचवश, जल्द मुनाफा और जल्द नतीजे प्राप्त करने वाले पर्यावरण को नुक्सान पहुंचा रहे हैं। हम अगर केवल शाकाहारी बनने का संकल्प ले लें तो प्रकृति के कोप से बच सकते हैं।

रेणुका गोस्वामी के संबोधन से हर कोई प्रभावित दिखायी दिया।

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