अयोध्या: अवध विश्वविद्यालय बना भ्रष्टाचार का अड्डा, फिर भी नहीं मिल रहे सबूत!
ओम प्रकाश सिंह/अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय एक बार फिर अवध से अवैध बनने की दिशा में अग्रसर हो गया है। लगभग बारह करोड़ रुपये से ज्यादा के भ्रष्टाचार से संबंधित फाइल गायब हो गई है। अदालत के आदेश पर ईओडब्ल्यू बनारस पूरे मामले की जांच कर रहा है। जांच अधिकारी इंस्पेक्टर सुनील कुमार वर्मा के लिए साक्ष्य इकठ्ठा करना चुनौती है। मनमानी करने के लिए कार्य परिषद में होने वाले छात्र प्रतिनिधियों का चुनाव भी नहीं कराया जा रहा है।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जन्म स्थली अयोध्या में बसे डॉ राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर गुलाबचंद राम जायसवाल ने अपने 3 साल के कार्यकाल में करोड़ों की कमाई की। शिकायत शासन में हुई तो अयोध्या मंडलायुक्त के नेतृत्व में एसआईटी की जांच समिति गठित कर दी गई। जांच में पूर्व कुलपति के साथ तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक और विश्वविद्यालय प्रशासन के कई अन्य लपेटे में आ गए।आरोपियों ने अपने राजनीतिक रसूखों का इस्तेमाल कर मामले को लटकाए रखा। मामला अदालत में पहुंचा तो अदालत ने छः सप्ताह में जांच पूरी कर रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश ईओडब्ल्यू बनारस को दिया है।
आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन बनारस ने अवध विश्वविद्यालय के घोटाले की जांच का जिम्मा इंस्पेक्टर सुनील कुमार वर्मा को सौंपा है। जांच अधिकारी को साक्ष्य जुटाने में पसीना छूट रहा है। घोटाले से संबंधित अभिलेख ही विश्वविद्यालय से गायब हैं। विश्वविद्यालय कि ढिठाई देखिये उसने जनसूचना में स्वीकार किया कि फाइल गायब है। जांच अधिकारी के नखरे भी कम नहीं हैं। गेस्टहाउस में सेवा में कमी हुई तो विश्वविद्यालय प्रशासन को ही देख लेगें के अंदाज में आ गए। घोटाले को दबाने के लिए एक सेवानिवृत्त कर्मचारी को सेवा विस्तार भी दे दिया गया है। विश्वविद्यालय के एक शिक्षक डॉ. अनिल यादव ने अपर मुख्य सचिव गृह को पत्र भेजकर प्रशासनिक अधिकारियों के ऊपर साक्ष्यों में लीपापोती का आरोप लगाया है।
अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. जीसीआर जायसवाल एवं अन्य तत्कालीन अधिकारियों के ऊपर 12 करोड़ के घपले का मुकदमा दर्ज है। अवध विश्वविद्यालय परिसर के भौतिकी विभाग के एक शिक्षक डाक्टर अनिल यादव कुलसचिव व कुलपति के भ्रष्टाचार की शिकायत न्यायालय से लेकर सरकार तक से करते रहे। मंडलायुक्त अयोध्या ने विशेष जांच टीम का गठन कर पूरे प्रकरण की जांच कराई और उस जांच में कुलपति प्रोफेसर जी सीआर जायसवाल व तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक अंसारी को दोषी पाया गया। सन 2017 में हुई जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी गई लेकिन मामला लंबित रहा
भ्रष्ट आचरण के दोषी पाए गए दोनों व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई होते ना देखकर डॉक्टर अनिल यादव ने न्यायालय की शरण लिया। न्यायालय ने संपूर्ण प्रकरण पर एफ आई आर दर्ज कराने का निर्देश दिया। न्यायालय के आदेश का संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश शासन ने अवध विश्वविद्यालय प्रशासन को एफ आई आर दर्ज कराने हेतु निर्देशित किया लेकिन मामला लटकता रहा। डॉ. अनिल यादव शासन में पत्राचार करते रहे और अंत में मंडलायुक्त द्वारा कराई गई जांच 7/ 11/ 17 के आधार पर उत्तर प्रदेश शासन ने पत्रांक संख्या 815/ 70/1/2020 दिनांक 16/7/20 में रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए अवध विश्वविद्यालय प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिए। जिसके आधार पर कुलानुशासक प्रोफ़ेसर अजय प्रताप सिंह ने कोतवाली नगर में एफ आई आर संख्या 491 दर्ज कराई. दर्ज एफआइआर में भारतीय दंड संहिता 1807 अधिनियम के 419 420 467 468 471 409 व 120 बी की धाराएं शामिल हैं।
दर्ज एफआईआर के आधार पर उत्तर प्रदेश शासन के अनुसचिव मनोज वर्मा ने 12 अक्टूबर 2020 को पुलिस महानिदेशक, आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन को पत्र भेजकर निर्देशित किया है कि 3 माह में जांच पूरी कर आख्या प्रस्तुत करें। यहां से भी जांच लटकती रही। अदालत के संज्ञान में आने पर अदालत ने छः सप्ताह में जांच करके रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। अनिल यादव का कहना है कि भंडार विभाग के लिपिक को सेवा विस्तार दिए जाने के पीछे 3 करोड़ के टेंडर आदि की फाइल के साक्ष्यों को छुपाना है। विश्वविद्यालय के कुलसचिव उमानाथ ने बताया कि वित्त अधिकारी ने अनुरोध किया था कि भंडार में कोई लिपिक अनुभवी नहीं है इसलिए इन्हें सेवा विस्तार दे दिया जाए। कुलसचिव ने कहा कि घपले से संबंधित सभी पत्रावली सामान्य प्रशासन विभाग के अधीन है और सील हैं।
पूर्व कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित के समय में विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित किया। तमाम सुधारों के साथ विश्वविद्यालय के साथ जुड़े अवैध तमगे को हटाने में सफलता पाई लेकिन अब विश्वविद्यालय फिर अवैध के रास्ते पर बढ़ रहा है।
विश्वविद्यालय प्रशासन की मनमानियों पर अंकुश ना लग सके इसलिए कार्यपरिषद का चुनाव नहीं करा रहा है। कुलपति, मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल तक से इस संबध में स्नातक प्रतिनिधियों ने गुहार लगाई है। विश्वविद्यालय में शिक्षकों की भर्ती जोरों पर है। लगभग सौ से ज्यादा शिक्षक भर्ती होगें। सामान्य सीटों पर भी पिछड़े वर्ग से भर्ती हो रही है। ऐसे मामलों में शिक्षक डॉक्टर अनिल यादव की चुप्पी चर्चा में है।
विश्वविद्यालय के खेलकूद विभाग में भी लाखों का घपला है। घपले की फाइल पूर्व कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित खोजते रह गए। थक हार कर उन्होंने कार्यकाल समाप्त होने के चंद दिन पूर्व एक जांच समिति बना दिया। वर्तमान कुलपति प्रो रविशंकर सिंह ने सबकुछ सही कर देने की घोषणा तो किया लेकिन समय के साथ वो भी ढर्रे पर हैं। खेल सामग्री खरीद का घोटाला सामने ही नहीं आया। क्रीड़ा परिषद व केन्द्र से मिले पैसों से बन रहा खेलकूद भवन और अन्य निर्माणों में जमकर धांधली है। मोंरग की जगह बालू का प्रयोग तो विश्वविद्यालय में सामान्य सी बात है।
विश्वविद्यालय का केन्द्रीय पुस्तकालय भी भ्रष्टाचार का जनक है। ईओडब्ल्यू की जांच में यह भी मुद्दा है। पूर्व कुलपति जीसीआर जायसवाल ने निष्प्रयोज्य, रद्दी के भाव बिकने वाली पुस्तकों की खरीद करवा कर करोड़ों कमाया। जाहिर सी बात है इस खेल में कुलपति अकेल नहीं शामिल होगा। पांच साल पसले तक लाइब्रेरी की हालत यह थी कि नाममात्र के छात्र यहां पढ़ने जाते थे। पूर्व कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने इस लाइब्रेरी का भी कायाकल्प किया तो अब रोज सैकड़ों की संख्या में छात्र पढ़ते दिखाई पड़ते है। कायाकल्प में करोड़ों खर्च हुआ तो दबी जुबान भ्रष्टाचार के आरोप उनपर भी लगे।