UP Election 2022: विद्रोही तेवर के मिल्कीपुर में सिर्फ दो बार खिल सका कमल, इस बार कौन मारेगा बाजी?
अयोध्या (ओम प्रकाश सिंह)। मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर इस बार भाजपा की राह आसान नहीं है। भाजपा और सपा ने अपने पुराने चेहरों पर दांव लगाया है। बसपा ने एक तांत्रिक तो कांग्रेस ने महिला को प्रत्याशी बनाया है। मुख्य मुकाबला सपा और भाजपा में है। प्रादेशिक और राष्ट्रीय मुद्दों से इतर स्थानीय समस्याएं इस चुनाव को प्रभावित करेंगी।
कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ रहा है मिल्कीपुर
मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र का चरित्र विद्रोही होने के साथ कम्युनिस्ट का गढ़ रहा है। सामंतवाद के खिलाफ लड़ने के कारण मित्रसेन यादव शोषितों पीड़ितों की आवाज बन गए थे। यही कारण रहा कि पांच बार वो यहां से विधायक रहे और उनके पुत्र आनंद सेन भी दो बार। मंडल कमंडल के राजनीतिक दौर में मित्रसेन समाजवादी हो गए तो मिल्कीपुर विधानसभा भी उनकी हमराह हो गई। सन् 2012 के परिसीमन में यह सीट सुरक्षित कर दी गई तो मित्रसेन यादव ने बीकापुर विधानसभा को अपना लिया। वहां से भी वे और उनके पुत्र विधायक चुने गए थे।
सिर्फ दो बार ही खिला है कमल
सुरक्षित होने के पहले सन 91 की राम लहर में भाजपा ने यहां खाता खोला था फिर पच्चीस साल बद पिछले चुनाव में कमल खिला था। रामलहर में भी भाजपा के मथुरा तिवारी 415 वोट से ही जीत सके थे। मुकाबले में थे कम्युनिस्ट पार्टी के कमलासन पांडेय। सीट सुरक्षित होने के बाद पच्चीस साल के अंतराल पर सन् 2017 में भाजपा के बाबा गोरखनाथ ने सपा उम्मीदवार अवधेश प्रसाद को हराकर दोबारा कमल खिलाया था। पिछले विधानसभा के चुनाव में भाजपा को 86960 व समाजवादी पार्टी को 58684 वोट मिले थे। बसपा को 46027 वोट मिले थे। भाजपा की जीत में बसपा का अहम रो था। लगभग 28000 जीत का अंतर था। सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर थी। भाजपा के लल्लू सिंह विजई हुए थे लेकिन मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा 7599 वोट से हार गई थी।
भाजपा प्रत्याशी पर लग रहे गंभीर आरोप
प्रादेशिक और राष्ट्रीय मुद्दों से इतर इस बार के चुनाव में स्थानीय जन समस्याएं हावी हैं। छुट्टा सांडों से फसल बचाने की समस्या प्रमुख है। सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद इस.मुद्दे पर कई बार धरना प्रदर्शन कर चुके हैं। इसका लाभ उन्हें मिलता दिख रहा है। भाजपा प्रत्याशी निवर्तमान विधायक बाबा गोरखनाथ पर ठेकेदारों व भूमाफियाओं को संरक्षण का आरोप लग रहा है। गांव की खराब सड़कों से ग्रामीणों में रोष है। रायबरेली रोड के चौड़ीकरण से उपजी स्थितियों ने भी भाजपा की किरकिरी कराया है।
बसपा ने नए चेहरे पर खेला दांव
बसपा ने एकदम नए चेहरे संतोष कुमार पर दांव खेला है। जिसकी पहचान राजनीति के क्षेत्र में ना होकर एक तांत्रिक के रुप में है। कमजोर प्रत्याशी होने कारण बसपा के मतदाताओं का रूझान सपा की तरफ है। सवर्ण जातियों मे भी परिवर्तन की सुगबुगाहट है। कांग्रेस ने महिला उम्मीदवार नीलम कोरी को जरुर मैदान में उतारा है लेकिन उनकी भी राजनीतिक पहचान नहीं है। कुल मिलाकर अभी तक जो जमीनी रिपोर्ट है उसमें भाजपा की राह कठिन है।