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लखनऊ: कोरोना को हराने के बाद श्मशान घाट पर शव पहुंचा रहे पूर्व पार्षद रणजीत सिंह
लखनऊ: कोविड 19 की वजह से लोगों में ऐसा भय व्याप्त है कि वे अपने सगे रिश्तेदारों का अंतिम संस्कार करने से कतरा रहे हैं। जहां चारों तरफ से ये समाचार आ रहे हैं कि लोग शव को छोड़कर भाग रहे हैं। उनका अंतिम संस्कार भी करने से कतरा रहे हैं। ऐसे में कुछ लोग आगे बढ़कर कोविड संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। लखनऊ के पूर्व पार्षद कुछ ऐसी ही मिसाल दे रहे हैं। पहले वह खुद कोरोना से संक्रमित थे। होम आइसोलेशन में रहकर इलाज करा रहे थे।
रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद एक सप्ताह तक क्वारंटाइन रहे और पूर्ण स्वस्थ होते ही निकल पड़े जरूरतमंदों की मदद के लिए। काम भी वह चुना, जो सामान्यतया हर कोई नहीं कर सकता। वह शव को श्मशान घाट तक निश्शुल्क पहुंचाकर शोक संतप्त परिवारजन के दुख को बांट रहे हैं। सुबह 10 से रात 10 बजे तक उनका यह काम चलता रहता है।
मनकामेश्वर मंदिर वार्ड से पार्षद रहे रंजीत सिंह की पत्नी रेखा रोशनी वर्तमान में पार्षद हैं। सामाजिक कार्यों में लगे रहने वाले रंजीत सिंह ने अपने वार्ड के एक-एक घर को डोर-टू-डोर कलेक्शन योजना से भी जोड़ा था। रंजीत कहते हैं कि वह कई दिन से यह खबर पढ़ रहे हैं कि कोरोना संक्रमित शवों को वाहन नहीं मिल रहा है। घर से शव ले जाने वाला कोई नहीं है।
ऐसे में उन्होंने अपनी जिप्सी गाड़ी को इस कार्य में समर्पित कर दिया और खुद ही अपनी गाड़ी लेकर उस घर पहुंच जाते हैं, जहां कोरोना संक्रमण से किसी की मौत हुई हो। इसके अलावा नॉन कोविड शवों को भी वह श्मशान घाट पहुंचा रहे हैं। गुरुवार को भी दो शव को भैंसाकुंड कोविड श्मशानघाट पहुंचाया था। पूर्व पार्षद का कहना है कि अगर कोई सक्षम है तो उसे वर्तमान समय में किसी न किसी तरह से परेशान लोगों की मदद में आगे आना चाहिए।
फेंकी गई मूर्तियों का विसर्जन करते हैं रणजीत :
पूर्व पार्षद रणजीत सिंह पहली बार किसी सामाजिक सेवा में दिखाई नहीं पड़े हैं। उन्होंने अपनी जिप्सी गाड़ी को फेंकी गई मूर्तियों को सम्मानजनक तरीके से विसर्जन करने का अभियान चलाते हैं। रणजीत सिंह बताते हैं कि सनातन धर्मावलंबियों द्वारा देवी-देवताओं के ऐसे चित्र, लक्ष्मी-गणेश सहित अन्य विखंडित मूर्तियां फेंक दी जाती हैं। उन्हें उनकी टीम उठकर और गोमा के किनारे गड्ढा खोदकर विसर्जित करते हैं। इधर-उधर कूड़े-कचरे के ढेर में पड़ी हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां उनकी आस्था को कचोटती थीं, इसलिए उन्होंने इसे अपने जीवन का मिशन बना लिया। रणजीत अपने वार्ड की सफाई और सैनीटाइजेशन की जिम्मेदारी खुद निभाते हैं। कोरोना कालखण्ड में भी वह लगातार अपने वार्ड के लोगों के बीच रहकर उनकी जरूरतें पूरी कर रहे हैं।