अंग्रेजी की ओर बच्चों की दौड़ ने हिन्दी के सम्मुख खड़ा किया बड़ा संकट

अंग्रेजी की ओर बच्चों की दौड़ ने हिन्दी के सम्मुख खड़ा किया बड़ा संकट
एनयूजे लखनऊ की 'हिन्दी पत्रकारिता की चुनौतियां एवं संभावनाएं' विषयक संगोष्ठी में बोले संपादक सुधीर मिश्रा

- पाठकों के मन और रुचि को समझने वाले हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का निरंतर बढ़ रहा प्रसार और लोकप्रियता

- एमएलसी पवन सिंह चौहान ने कहा- हिन्दी पत्रकार ही वास्तविक अर्थों में करते हैं देवर्षि नारद की भूमिका का निर्वहन

- प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम और के रविंद्र नायक बोले- डिजिटल क्रांति के बाद भी हिन्दी पत्रकारिता का भविष्य उज्ज्वल

लखनऊ। अंग्रेजी की ओर बच्चों की दौड़ ने हिन्दी के सम्मुख बड़ा संकट खड़ा किया है। अंग्रेजीदां स्कूलों ने हिन्दी को दोयम दर्जे पर धकेल दिया है। हिन्दी पत्रों के सम्मुख चुनौतियां थोड़ी कम इसलिए हैं कि वह समाचारों को समग्रता में प्रस्तुत करते हैं। चैनल, सोशल मीडिया और यूट्यूब आज हिन्दी पत्रकारिता के लिए चुनौती जरूर हो सकते हैं। उक्त उद्गार नवभारत टाइम्स के संपादक सुधीर मिश्रा ने व्यक्त किए। वह 'हिन्दी पत्रकारिता दिवस' पर एनयूजे, लखनऊ की ओर से कैंट रोड स्थित होटल दीप पैलेस में 'हिन्दी पत्रकारिता की चुनौतियां एवं संभावनाएं' विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे।


उन्होंने आगे कहा कि पाठकों के मन के भाव और रुचि को समझने वाले हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का प्रसार और लोकप्रियता निरंतर बढ़ रही है। पाठकों के स्तर पर भी बदलाव की आवश्यकता है। एमएलसी पवन सिंह चौहान ने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता का भविष्य उज्ज्वल था, है और रहेगा। देवर्षि नारद की भूमिका का निर्वहन वास्तविक अर्थों में हिन्दी पत्रकार ही करते हैं। हिन्दी पत्रकारों के लिए समाज को भी सहयोग का भाव रखना होगा। प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने कहा कि चुनौतियों का अध्ययन करते समय ही संभावनाएं निकलती हैं। हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य, हिन्दी पत्रकार और हिन्दी पत्रकारिता पर बिलकुल संकट नहीं है। हिन्दी के प्रति प्रेम और समर्पण सदैव बना रहेगा। साधन और साध्य के मध्य अंतर को बनाए रखना होगा। प्रशासनिक सुधार एवं लोकसेवा प्रबंधन के प्रमुख सचिव के. रविंद्र नायक ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया की क्रांति के बावजूद भी हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के लिए अपार संभावनाएं हैं। अच्छे पत्रकारों के प्रति पाठक वर्ग में अभी भी बहुत आदर और सम्मान का भाव रहता है। राज्य सूचना आयुक्त स्वतंत्र प्रसाद गुप्ता ने भी विचार व्यक्त किए।

अमृत विचार के स्थानीय संपादक अनिल त्रिगुणायत ने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता के लिए यह सुखद पहलू है कि हालिया रीडर सर्वे के अनुसार हिन्दी अख़बारों का प्रसार निरंतर बढ़ रहा है। पाठक आज भी पत्र-पत्रिकाओं को खोजकर पढ़ना चाहता है, शर्त यह है कि आपके कॉन्टेक्ट में वो बात होनी चाहिए। यूनाइटेड भारत के संपादक मनोज मिश्रा ने कहा कि समय के साथ पत्रकारिता में सहजता आई है। क्षेत्रीय भाषा-भाषी क्षेत्रों में हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं को स्थापित करना अब उतना मुश्किल नहीं है। सदियों के संघर्ष के बाद हिन्दी पत्रकारिता के लिए वर्तमान में इतनी सर्वाधिक सुगम स्थितियां हैं, इससे यह तय है कि हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का भविष्य सुखद है। राष्ट्रीय सहारा के समाचार संपादक रामेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि सबसे बड़ा संकट है सीखने-सिखाने की परंपरा का ख़त्म होना है। पत्रकारिता में अभ्यास से लेखनी में धार आती है। बीबीएयू में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की प्रो.रचना गंगवार ने कहा कि न्यू मीडिया, भाषा की समझ का कम होना और सिटीजन जर्नलिस्ट की उपस्थिति हिन्दी पत्रकारिता के लिए बड़ी चुनौती है। जीने के लिए खाना और खाने के लिए कमाने की चुनौती आज के हिन्दी पत्रकारों के सम्मुख सर्वाधिक है।

जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड मास कम्युनिकेशन के निदेशक उपेंद्र पाड़ेय ने कहा कि हिन्दी पत्रकारों में भाषा, शिल्प, कथ्य और विषय की समझ कमजोर होना बड़ी समस्या है। संभावना यह है कि हिंदुस्तान में हिन्दी रहेगी, हिन्दी पत्रकारिता रहेगी, हिन्दी को प्रेम-स्नेह करने वाले लोग रहेंगे, इसलिए अधिक निराश होने की आवश्यकता नहीं है। हिन्दी संस्कार की भाषा है और संस्कार किसे प्रिय नहीं होगा। एलपीसी में पत्रकारिता एवं जनसंचार के हेड डॉ.नीरज सिंह ने कहा कि पत्रकारिता की चुनौतियों को जब आप देखेंगे तो उसमें ही संभावनाएं निकलेंगी। आज की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हिन्दी की कमाने और खाने वाले लोग भी बच्चों को हिन्दी पढ़ने के लिए प्रेरित नहीं करना चाहते हैं। मीडिया के छात्र मुख्यधारा के बजाय वैकल्पिक मीडिया में भविष्य खोज रहे हैं।

अध्यक्षता कर रहे वीरेंद्र सक्सेना ने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता पर सामयिक संगोष्ठी में सहभागिता के लिए सबका आभारी हूं। इस मौके पर एनयूजे-आई के राष्ट्रीय संगठन मंत्री प्रमोद गोस्वामी, एनयूजे, उत्तर प्रदेश के संरक्षक द्वै के. बक्श सिंह एवं सुरेंद्र कुमार दुबे, एनयूजे-आई स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन के उपाध्यक्ष अजय कुमार, वॉयस ऑफ लखनऊ के संपादक मनोज वाजपेयी, दैनिक भास्कर डिजिटल के स्टेट हेड गौरव पांडेय, रेडक्रॉस सोसाइटी की प्रदेश महासचिव डॉ.हेमा बिंदु नायक, वरिष्ठ पत्रकार श्रीधर अग्निहोत्री, उमेश सिंह, विवेक पाण्डेय ने भी विचार व्यक्त किए।

इस दौरान प्रदेश महामंत्री संतोष भगवन, कोषाध्यक्ष अनुपम चौहान, मीडिया प्रभारी डॉ.अतुल मोहन सिंह, उपाध्यक्ष हिमांशु सिंह, कार्यकारिणी सदस्य अरुण शर्मा 'टीटू', जिलाध्यक्ष आशीष मौर्य, महामंत्री पद्माकर पांडेय, कोषाध्यक्ष अनुपम पांडेय, उपाध्यक्ष अभिनव श्रीवास्तव, मीनाक्षी वर्मा, मनीषा सिंह, मनीष श्रीवास्तव, अनिल सिंह, मीडिया प्रभारी शिव सागर सिंह चौहान, संगठन मंत्री अश्विनी जायसवाल, मंत्री पंकज सिंह चौहान, नागेंद्र सिंह, संगीता सिंह, गरिमा सिंह, कार्यकारिणी सदस्य श्यामल त्रिपाठी, धीरेंद्र मिश्रा, डॉ.संजीव पांडेय, मोहन वर्मा, अखिलेश मयंक समेत सैकड़ों पत्रकार मौजूद रहे।

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