स्वयं को समझना ही सबसे कठिन कार्य : शंकराचार्य

स्वयं को समझना ही सबसे कठिन कार्य : शंकराचार्य
एमएलसी पवन सिंह चौहान के आवास पर हुई दिव्य संदेश धर्म सभा, एक हजार से अधिक शिक्षाविदों से हुआ प्रश्नोत्तर
गोवर्धन मठ पुरी के श्री जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के प्रवचन सुनकर भाव-विभोर हुए श्रद्धालु

लखनऊ। जगन्नाथ पुरी के जगतगुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज मंगलवार सुबह एसआर ग्रुप के चेयरमैन और सीतापुर के एमएलसी पवन सिंह चौहान के जानकीपुरम स्थित आवास पर आगमन हुआ। जगतगुरु शंकराचार्य ने सुबह साढ़े छह बजे से ग्यारह बजे तक पूजा साधना में अपना समय बिताया। गयारह बजे से एक बजे तक श्रद्धालुओं से प्रश्न-उत्तर किए। इस दौरान एक हजार शिक्षाविदों ने अपने प्रश्नों का उत्तर पाया। हिंदुत्व, हिन्दू, हिंदुस्तान के पुनः सर्जन करने के लिए संकल्प करवाया।


जगत गुरु शंकराचार्य का दो दिवसीय प्रवास में बुधवार शाम साढ़े पांच बजे तक दर्शन के लाभ लिया जा सकता है। इस अवसर पर परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह, एमएलसी सीतापुर पवन सिंह चौहान, सीतापुर सांसद राजेश वर्मा, पूर्व विधयाक भरत त्रिपाठी, भाजपा नेता अपर्णा यादव ने शंकराचार्य से आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रश्न उत्तर कार्यक्रम में भक्तों ने अनेकों प्रकार के सवाल किए और सबके उत्तर शंकराचार्य ने बहुत ही सरल और भक्ति भाव से दिए। इसके बाद बड़ी संख्या में भक्तों ने शंकराचार्य महाराज से दीक्षा और आशीर्वाद प्राप्त किया। गोवर्धन मठ पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि हर व्यक्ति को यह जानना जरूरी है कि हमारी आखिरी सिद्धि क्या है। इसका जवाब यह है कि हम अपना गंतव्य स्वयं हैं, लेकिन हमको हम तक पहुंचने के लिए जो रास्ता है, वही सबसे कठिन व दुर्गम रास्ता है। इस रास्ता पर जो सिद्धि पा लेता है, उसका जीवन सफल रहता है।

श्रद्धालुओं से खचाखच भरे माहेश्वरी सेवा सदन में प्रवचन देते हुए उन्होंने कहा कि भागवत गीता में तीन चक्षु यानी नेत्र का वर्णन है। इनमें पहला चक्षु स्व चक्षु है, जबकि दूसरा चक्षु दिव्य चक्षु तथा तीसरा चक्षु ज्ञान चक्षु होता है। इस समय हम स्व चक्षु निर्वहन करते हैं। उन्होंने कहा कि इन तीनों चक्षुओं से हम परिचित हैं, इस पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि स्वप्न अवस्था में तीनों चक्षु एक साथ परिलक्षित नहीं होते, लेकिन दिव्य चक्षु व अज्ञानता में ज्ञान चक्षु परिलक्षित जरूर होते हैं। उन्होंने धर्म की परिभाषा को समझाते हुए कहा कि विज्ञान का अध्यापक विद्यार्थियों को जो यह पढ़ाता है कि हाइड्रोजन और आक्सीजन के मिलने से पानी बनता है, तो उस पर विश्वास दिलाने के लिए वह विद्यार्थियों को प्रयोगशाला में ले जा कर प्रयोग कर दिखाता है।

उन्होंने अपने प्रवचन में धर्म, विज्ञान व व्यवहार तीनों दृष्टिकोण से सनातन धर्म को सटीक बताते हुए लोगों से इस पर अमल करने की सलाह दी। उनके प्रवचन के उपलक्ष्य में जब 'हरे कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, ओम नाथ नारायण वासुदेव' तथा 'जय गोविंद हरि, जय गोपाल हरि' भक्ति गीत बजे तो श्रद्धालु गाते-झूमते नजर आए।

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