- Home
- /
- देश
- /
- उत्तरप्रदेश
- /
- मथुरा
चारों की भांति बाकी हजारों को भी फांसी दी जाये

विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। निर्भया मामले में चारों दरिंदों को आखिर फांसी पर लटका ही दिया गया जो स्वागत योग्य है। इसके साथ ही बाकी उन हजारों दरिंदों को भी शीघ्र ही फांसी पर लटकाया जाए जिनको फांसी की सजा तो सुना दी गई है लेकिन अदालती पेचों में बचे हुए हैं या वे जिनके बारे में देशभर की विभिन्न अदालतों में वर्षों से मामले लंबित चल रहे हैं और निर्भया जैसी अनेक अबलाऐं उन राक्षसों को सजा मिलने की बाट जोह रही हैं।
साथ ही पांचवा दरिंदा नाबालिगी की आड़ में आखिर क्यों बचा हुआ है? यह प्रश्न देश भर की जनता के मन में बार-बार कौंध रहा है। लोगों का कहना है कि वह चांडाल दुष्कर्म को अंजाम दे सकता है तो फिर उसे नाबालिग मानने का कानून हास्यास्पद है।
सबसे ज्यादा खराब बात यह है कि अदालत ने उसे सजा तो दी नहीं क्योंकि कानून उसे बालिग नहीं मानता, यह अदालत की मजबूरी थी लेकिन उस नरपिशाच को सुरक्षा और प्रदान की गई। यह बात लोगों को बहुत नागवार गुजरी। लोगों का कहना है कि पीड़ित से ज्यादा आरोपी को सुरक्षा देना कौन सी न्याय व्यवस्था है? ऊपर से अरविंद केजरीवाल ने उसे सिलाई मशीन उपहार में देने का जो निम्न कार्य किया उससे सिर शर्म से झुक जाता है। केजरीवाल से पूछा जाए कि तुम्हारी बहन या बेटी होती तो क्या तब भी तुम उसे पुरस्कृत करते?
चारों नरपिशाचों को फांसी पर लटकाए जाने पर प्रलाप करने वालों की निर्भया यदि बहन या बेटी होती तो भी वह मानवाधिकार की आड़ में उन्हें बचाने की कोशिश करते? शायद नहीं बल्कि शायद क्या बिल्कुल नहीं क्योंकि जब अपने ऊपर आती है तब और रूप होता है और जब दूसरे पर बीतती है तब दूसरा स्वरूप बन जाता है। एक कहावत है कि जाके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई।
इस संबंध में एक सच्चा किस्सा बताना चाहता हूं। काफी पुरानी बात है। एक व्यक्ति अपने घर पर बैठा था कि किसी ने उससे आकर कहा कि अरे भाई अभी एक लड़का रेल से कटकर मर गया है। इस पर उसने जवाब दिया कि अरे मर गया तो मर जाने दो भाई। यह तो मरा गिरी चलती ही रहती है और वैसे भी पब्लिक बहुत बढ़ गई है। जब लोग मरेंगे नहीं तो जनसंख्या कम कैसे होगी? बात चल ही रही थी तभी दूसरा एक और व्यक्ति भागा-भागा आया और बोला कि अरे भाई तुम्हारा लड़का साइकिल से जा रहा था और साइकिल का पहिया रेल की पटरी में फंस गया तथा तेज रफ्तार से आ रही रेल से कटकर मर गया। बस फिर क्या था, वह दहाड़ मार-मार कर रोने लगा और बोला के अरे मैं तो बर्बाद हो गया। हे भगवान तूने यह क्या किया, क्षणभर में रूप बदल गया।
ऐसा कानून बनना चाहिए कि ऐसे नराधमों को तत्काल फांसी पर लटकाया जा सके और फांसी भी सार्वजनिक रूप से दी जाए ताकि लोगों में दहशत बने और वह ऐसी नीचता करने से पहले हजार बार सोचें लेकिन ऐसा कानून कौन बनाएगा? कानून बनाने वाले सांसदों और विधायकों में भी तो ऐसे लोग बैठे हैं। कुलदीप सेंगर को ही देख लो। कुलदीप सेंगर ही नहीं ऐसे न मालूम कितने लोग है। कुलदीप तो ना मालूम कैसे कानून के शिकंजे में आ गया, वरना कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता।
राजनैतिक पार्टियां भी ऐसे लोगों को ही टिकट देती है तथा बाद में ऐसे लोग मंत्री पद तक पर भी पहुंच जाते हैं। चिन्मनयानंद जीती जागती मिसाल है। हम सभी को इस ओर गहनता से सोचना होगा वरना इन अबलाओं पर ऐसे ही अन्याय होता रहेगा।