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जीव जन्तुओं की आह ही भूकंप, तूफान, महामारी बनकर लेती है बदला
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मनोज तोमर
मथुरा। महर्षि कपिल ने कहा था कि मनुष्यों के कुल वजन से 20 गुना से अधिक वजन पशुओं जलचर नभचर व सांप आदि का होना चाहिए तभी मनुष्य पृथ्वी पर रह सकता है। इस अनुपात के गड़बड़ाते ही खुद प्र.ति आपदा द्वारा मनुष्य का विनाश रच देती है। इसलिए पशु हिंसा इस पृथ्वी को गहरा आघात पहुँचाती है। पृथ्वी को इसीलिए गौ कहा गया है क्योंकि गौ अत्याचार सीधा पृथ्वी पर अत्याचार है।
गाय की हत्या कितनी घातक होती है यह बताने की जरूरत नहीं है। हत्या किए जा रहे पशुओं की आह से ही सारी समष्टि चेतना चीत्कार करती है। शास्त्रों में साफ-साफ आया है कि यह आह ही भूकंप, तूफान और महामारी बन कर अपना बदला लेती है। सभी देवी देवताओं के वाहन भी पशु हैं और पशुओं के प्रति अपनत्व सिखाते हैं।
सर्पों का इस संसार में बहुत ही गहरा रोल होता है। इन्हीं विषधर नागों से पृथ्वी स्थिर है। महादेव भी यूं ही सर्पों को गले में लिपटा कर नहीं रखते एवं विष्णु जी यूं ही शेषनाग की छाया में नहीं रहते। पुराणों में भी पृथ्वी को शेषनाग के फन पर टिका हुआ बताया गया है। नाग धर्म को स्थिर बनाए रहता है, इसलिए सारे देव मंदिरों की रक्षा का भार भी नागों पर ही रहता है। नाग की हत्या हजार वर्ष तक भी पीछा नहीं छोड़ती। जिसको सर्प दोष होता है, उसे असहनीय कष्ट होता है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। सर्प को खुश रखने का हमेशा हिंन्दुओं ने यत्न किया है जबकि चीन जैसा पाशविक देश सर्पों की हत्या कर उन्हें खाकर अपनी बर्बादी को निमंत्रण दे रहा है।
सर्प हत्या, गौ हत्या और पशु वध के वीभत्स पाप का घड़ा भर रहा हो तो वह बिना आहट किए काल बनकर निगल जाता है। अब इससे स्पष्ट प्रमाण पृथ्वी हमें कभी नहीं दे सकती है। पृथ्वी एफिडेविट बनाकर कोर्ट में जमा नहीं करेगी कि इन पशुओं की क्रूर हत्या की एवज में मैं महामारी बन कर आई हूँ। प्रभु से विनती है कि सभी प्राणियों की रक्षा करें।