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कोराना का कोहराम, गैर जरूरी सामान जरूरी से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है
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विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। शासन और प्रशासन ने डौंड़ी पिटवा रखी है कि केवल खानपान के जरूरी सामान की दुकानें कुछ समय के लिए खुलेंगी, लेकिन क्या खान-पान ही जरूरी होता है यदि किसी के घर में शार्ट सर्किट से बिजली के तारों में आग लग गई है और उसके घर में तमाम उपकरण जल गए हैं और बाजार में कोई सामान नहीं मिल रहा तो क्या वह महीनों तक बगैर बिजली और पंखों के बैठा रहेगा?
ऐसा तांडव मच रहा है कि चारों ओर हाहाकार ही हाहाकार मच रहा है, लोग जीते जी मरे जा रहे हैं, क्या दूध, राशन व दवाइयों के अलावा और चीजों की दुकानों को भी थोड़ी देर के लिए नहीं खुलना चाहिए। घर में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है और उनकी पेंसिल काॅपी खत्म हो गई है, लेकिन स्टेशनरी की दुकानें बंद है। किसी की साइकिल पंचर पड़ी है और उसे जुड़वाने का कोई जुगाड़ नहीं।
अरे भाई मंदिर, स्कूल, माॅल, रेल, बस, मेले, डेले आदि भले ही बंद कर दिए लेकिन छोटे-मोटे सामान जो जरूरी से भी ज्यादा जरूरी हैं उनकी व्यवस्था कैसे होगी? क्या किसी को इस बात की परवाह है? मोदी जी ने जो निर्णय देश हित में लिया उसका दुरुपयोग किस प्रकार हो रहा है। बड़ी शर्मनाक बात है महिलाएं प्रसव के लिए बीमार इलाज के लिए छटपटा रहे हैं और निरंतर दम भी तोड़ रहे हैं। शायद कोरोना का प्रकोप यहां फैलता तब भी इतने न मरते अब तो बगैर कोरोना के ही महा कोरोना ने सितम ढा रखा है।
उदाहरण के लिए सुविख्यात विद्वान स्व. वासुदेव कृष्ण चतुर्वेदी के पुत्र नरदेव चतुर्वेदी को डायलिसिस के लिए नयति अस्पताल ने दो टूक मना कर दी। जैसे तैसे जयसिंहपुरा स्थित सरस्वती अस्पताल ने डायलिसिस की अनुमति दे दी किन्तु पुलिस वालों ने गंभीर हालत के मरीज को डायलिसिस हेतु नहीं जाने दिया तथा घर लौटने को विवश कर दिया जबकि सभी कागजात उनको दिखा दिए थे।
अंत में जब जान पर बन आई तब दूसरे दिन नरदेव के पिता हरदेव चतुर्वेदी जो लगभग चार दशक तक जिलाधिकारियों के निजी सहायक रहे हैं द्वारा उच्च अधिकारियों से गुहार की और चारों तरफ हाथ-पांव मारे तब कहीं जाकर उन्हें घर से मात्र दो किलोमीटर दूर सरस्वती अस्पताल तक जाने दिया और डायलिसिस हुई।
उल्लेखनीय है कि हरदेव जी के एक पुत्र का कई वर्ष पूर्व निधन हो चुका है जिसकी वजह से वह वैसे ही बहुत दुखी रहते हैं तथा अनेक बीमारियों से ग्रस्त हैं। यदि कोई ज्यादा दिक्कत बढ़ जाती तो क्या होता? नरदेव के बाबा डाॅ. वासुदेव कृष्ण चतुर्वेदी मथुरा की नाक थे तथा विद्वता में उनका कोई जोड़ नहीं था। देश की बड़ी-बड़ी हस्तियां उनके सामने नतमस्तक रहती थीं। एक नहीं कई राष्ट्रपति उन्हें अक्सर परिवार सहित राष्ट्रपति भवन में बुलाकर आवभगत करते थे। जब ऐसे लोगों के परिजनों के साथ यह हो रहा है तो साधारण लोगों की क्या गति होगी आप स्वयं समझ सकते हैं।
कोरोना के वायरस से कहीं ज्यादा विषैला अराजकता का यह वायरस है जिसकी वजह से लोग जीते जी मरे जैसे हो रहे हैं। कल की ही घटना को ले लो, आवश्यक वस्तुओं की खरीद के समय में ही जब लोग नवल नलकूप पर पानी भरने आ रहे थे, तब कुछ खिसियाने पुलिसकर्मियों ने उन्हें खदेड़ कर भगाया और जो पानी भर कर वापस जा रहे थे तो उनका पानी सड़क पर फैलवा दिया। भगवान भला करे शैलजाकांत जी का जो उन्होंने हस्तक्षेप करके पुलिस वालों की इस नालायकी को रुकवा दिया।
उदाहरण के रूप में चुटकुले नुमा एक किस्सा बताना चाहूंगा जो इस समय कोरोना की महामारी से जनता को बचाने के लिए किया जा रहा है, उस पर सटीक बैठता है। एक नई बहू घर में आई और ससुर से घुंघट करती थी, एक दिन अचानक ससुर सामने आ गए और वह केवल ब्लाउज और पेटीकोट में बैठी हुई थी। बहू बेचारी सिटपिटा गई, घबराहट और इज्जत बचाने की जल्दबाजी में आव देखा न ताव उसने पेटीकोट उठाकर अपना घूंघट कर लिया। यह हंसने की बात नहीं समझने की है। ठीक यही हाल कोरोना से निपटने हेतु जल्दबाजी और घबराहट में प्रशासन द्वारा किया जा रहा है। मतलब साफ है मोदी जी के आदेशों के अनुपालन में जबरदस्त खामियां हैं, इन्हें दूर किया जाना चाहिए।