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जब राम किशोर जी बने अप्रैल फूल
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विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। उड़ती चिड़िया के पर गिनने और बंद लिफाफे का मजमून भांप लेने की महारत रखने वाले डाॅ. रामकिशोर अग्रवाल एक बार ऐसे अप्रैल फूल बने कि चारों खाने चित जा गिरे।
बात लगभग पांच-छः वर्ष पुरानी है। एक बार उन्होंने मुझसे कहा था कि गुप्ता जी जब भी कभी तुम्हें मेरी जरूरत हो तो बताना, चाहो ले जाना दस, बीस, पच्चीस, पचास तक जितना। यह बात उन्होंने मुझसे प्रेम वश कहीं। वह हमारे अंतरंग मित्र हैं तथा हर मौके पर उन्होंने मित्रता निभाई और हमेशा मेरी बात रखी।
मैंने उनसे कहा कि रामकिशोर जी मैं इस स्वभाव का नहीं हूं यदि कभी मैं पचास लाख तो दूर पचास रूपये भी मांगने आ गया तो फिर मुझे जिंदा होते हुए भी मरे के समान समझना। रामकिशोर जी बोले कि हां यह बात तो मैं जानता हूँ। मैंने मन ही मन में कहा कि जब जानते हो तो फिर कह क्यों रहे हो? और फिर मैंने उन्हें मजा चखाने की ठान ली।
एक डेढ़ महीने बाद एक अप्रैल का दिन आया, मैंने सोचा कि इससे अच्छा मौका कब मिलेगा। मैंने एक सादा कागज लिया और उस पर लिखा अप्रैल फूल, फिर उस कागज को मोड़कर एक लिफाफे में रखकर उसे स्टैपलर पिन से बन्द कर दिया। स्टैपलर भी दस बारह जड़ दिये ताकि कोई उसे जल्दी से न खोल सके।
फिर मैंने रामकिशोर जी को फोन किया और कहा कि मुझे आपके सहयोग की सख्त जरूरत है। वे बोले कि बताओ क्या सहयोग करूं? तब मैंने कहा कि मैं आपके पास आकर बताऊंगा। इस पर उन्होंने कहा कि आ जाओ, मैं केडी डेंटल काॅलेज में बैठा हुआ हूं। मुझे पता था कि उस समय वह डेंटल काॅलेज में ही रहते हैं, क्योंकि केडी मेडिकल की अपेक्षा केडी डेंटल ज्यादा नजदीक है। इसीलिए मैंने उसी समय फोन किया, मैंने कहा ठीक है अभी थोड़ी देर में पहुँचता हूँ।
मैंने अपना स्कूटर उठाया और थोड़ी देर में केडी डेंटल पहुंच गया। पहुँचते ही मैंने फोन करके कहा कि मैं आ गया हूं, इतना सुनते ही वे तुरन्त अपने कक्ष से निकल कर बाहर आ गए और मुझे अलग से एक अन्य कमरे में ले गए और बोले कि गुप्ता जी बताओ क्या परेशानी है। मैंने बनावटी घबराहट दिखाते हुए कहा कि रामकिशोर जी मैं बड़ी भारी मुसीबत में फंस गया हूं। मुझे दस लाख रुपयों की तत्काल आवश्यकता है। वे बोले कि ऐसी क्या बात हो गई? मैंने कहा कि सारी बात मैंने लिखकर इस लिफाफे में रख दी है। वे बोले कि लाओ लिफाफे को। मैंने कहा कि मैं चला जाऊं तब इत्मीनान से पढ़ लेना। वे बोले क्यों? तब मैंने कहा कि मामला कुछ ऐसा ही है। इसे आप को पढ़वाने के बाद मैं आपको फेस नहीं कर पाऊंगा।
खैर कुछ मिनट तक जद्दोजहद होती रही। वह बार-बार मेरे हाथ से लिफाफा लपकने को हाथ बढ़ाएं और मैं दूं नहीं। अंत में उन्होंने लिफाफा लेकर कहा कि ठीक है, कल व्यवस्था कराता हूँ और फिर लिफाफे से स्टैपलर पिनों को नोचने की कोशिश करने लगे। तब मैंने झल्ला कर उनसे कहा कि तुम्हें मेरी कसम है इसे मत खोलो और साफ-साफ बताओ कि कल कितने की व्यवस्था करा दोगे? मेरे पैरों के नीचे की जमीन खिसकने लगी कि कहीं यह पूरी रकम देने की ना कह दें, वर्ना मेरा पासा ही उल्टा पड़ जाएगा। मैं चाहता था कि वह अपने हाथ खड़े कर दें।
मैंने उनसे कहा कि रामकिशोर जी मैं इस समय जल्दी में हूँ। आप केवल यह स्पष्ट बता दो कि कल क्या करा दोगे? ताकि मैं फिर बाकी का इंतजाम और कहीं करूं। बताओ एक कराओगे, दो कराओगे या और ज्यादा। इस पर वे बोले कि अरे गुप्ता जी एक-दो क्या ज्यादा ही कराऊंगा, तीन-साढ़े तीन तो ले ही जाना। मुझे यह प्रतीत हो रहा था कि वह कम से कम पांच तो देने की सोच ही रहे हैं और हो सकता है ज्यादा की भी हां हो जाए जो मैं चाहता नहीं था।
खैर जब उन्होंने मेरी ओर से ही एक दो की आवाज सुनी तो फिर उन्होंने भी तीन-साढ़े तीन की कह दी। मैंने लिफाफा उनके पास छोड़ा और भागकर बाहर आया तथा अपने मोबाइल का स्विच आॅफ कर दिया और जल्दी से स्कूटर उठा कर भाग लिया। क्योंकि मुझे डर था कि वह एक-दो मिनट में लिफाफे को खोल कर देख ना लें और बाहर आकर मुझे पकड़ ना लें।
मैं दौड़ा-दौड़ा घर आ गया। घर आते ही मैंने पसीने में तरबतर हो रहे कपड़े उतारे और पंखा चला कर सुस्ताने लगा। इसी मध्य मैंने मोबाइल का स्विच भी खोल दिया, जैसे ही स्विच खोला फौरन रामकिशोर जी का फोन आ गया। मेरे फोन उठाते ही बोले कि आज हमारे अलावा और कौन-कौन को मूर्ख बनाया तथा बोले कि वाह गुप्ता जी वाह, तुमने तो कमाल कर दिया। कैसी गजब की एक्टिंग की। मान गया आपको। मैंने भी जवाब दिया कि रामकिशोर जी तुम्हारे जैसे छटे छटाऐ शातिर बदमाश को कब्जे में लेना कोई हंसी मजाक नहीं है।
फिर वह बोले कि भाई मैं तो पांच की सोचे बैठा था क्योंकि कल किसी जरूरी काम के लिए 60-65 लाख का इंतजाम करना था वर्ना पूरे ही करा देता। मैंने कहा कि मुझे इससे कोई मतलब नहीं मुझे तो सिर्फ आपको शीशा दिखाना था। रामकिशोर जी ने मेरे इस नालायकी भरे नाटक को कई दिन तक अपने पास आने वाले तमाम लोगों को हंस-हंसकर खूब सुनाया।
खैर जो भी हो रामकिशोर जी की मोहब्बत को मैं तहे दिल से सलाम करता हूं। वह एक नहीं अनेक बार मेरी नालायकियों को नजर अंदाज करते रहे हैं तथा हर दुख सुख में मेरे साथ खड़े रहे हैं। उनके प्यार को एक नहीं अनेक बार नमन। ईश्वर उन्हें शतायु करें।